हिमाचल के बाद छह महीने के भीतर कांग्रेस को कर्नाटक में दूसरी सफलता हाथ लगी है। कांग्रेस वहां पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में लौटी है। राजनीति में दक्षिण के द्वार कर्नाटक की नतीजों का असर आने वाले विधानसभा चुनावों और 2024 के लोकसभा चुनाव पर पड़ सकते हैं। इसी साल मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ के चुनाव होने हैं।
कर्नाटक में वर्ष 2004, 2008 और फिर 2018 में किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला था। 2013 में कांग्रेस ने 122 सीटें जीतकर सरकार बनाई थी। इस बार कांग्रेस की सीटें और मतों में काफी इजाफा हुआ। भ्रष्टाचार और आरक्षण के मुद्दों पर कांग्रेस ने भाजपा नीत सरकार को जमकर घेरा, आरक्षण के मुद्दे पर सवाल उठाए। साथ ही, घोषणापत्र में पांच वादे। कांग्रेस ने शहरी, अर्ध शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के समीकरण बखूबी साधा और लिंगायत, वोक्कालिगा, मुस्लिम, युवा और महिला मतों का नया गणित तैयार कर लिया।
कांग्रेस के दो दिग्गजों डीके शिवकुमार और सिद्दरमैया के बीच अरसे से नहीं बनी। लेकिन इस बार के चुनाव में कांग्रेस के नेताओं ने कलह को सतह पर नहीं आने दिया। पांच वादों के जरिए युवा और महिलाओं को भाजपा से तोड़ने में मदद मिली। बजरंग दल के मुद्दे से मुस्लिम मतों के ध्रुवीकरण में मदद मिली।
कांग्रेस ने अपने मत प्रतिशत में पांच फीसद का इजाफा किया है। उसे लगभग 43 फीसद मत मिले हैं। जनता दल (सेकु) की हिस्सेदारी 13 फीसद तक सिमट गई है। क्षेत्रवार कई इलाकों में भाजपा का मत प्रतिशत कम हुआ और कांग्रेस को फायदा मिल गया। कांग्रेस के मत अर्ध शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़े हैं। इन इलाकों में कांग्रेस 44 और 46 फीसद मत पा गई। जबकि, भाजपा 29.1 और 36.6 फीसद मत ही पा सकी। दूसरी ओर, शहरी इलाकों में कांग्रेस को 43 फीसद और भाजपा को 46.3 फीसद मत मिले।
कांग्रेस ने सभी पांच क्षेत्रों में अपने मतों में वृद्धि की और निर्णायक रूप से उनमें से तीन पर कब्जा कर लिया। मुंबई/कित्तूर कर्नाटक और मध्य कर्नाटक क्षेत्र में 2018 के विधानसभा चुनावों की तुलना में कांग्रेस 62 में से 40 सीटों पर 44.9 फीसत मतों के साथ 20 सीटों ज्यादा ले गई। भाजपा के मत 39.1 फीसद तक गिरे और 21 सीटें कम हो गर्इं। जगदीश शेट्टर और लक्ष्मण सावदी जैसे नेताओं के जरिए कांग्रेस को भाजपा के लिंगायत गढ़ को तोड़ने में मदद मिली।
कांग्रेस ने दक्षिण कर्नाटक और मलनाड क्षेत्र (पुराने मैसूरु क्षेत्र सहित) में भी अच्छा प्रदर्शन किया। इनमें पार्टी 39 सीटों पर फायदे में रही। भाजपा ने तटीय कर्नाटक क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन किया। इनमें से 14 सीटों पर 49.1 फीसद की ठोस हिस्सेदारी भाजपा की रही। बंगलुरु क्षेत्र में भाजपा, कांग्रेस से आगे थी। 45 फीसद बनाम 41.4 फीसद, 16 बनाम 11 सीटें)। अमूल बनाम नंदिनी विवाद का फायदा कांग्रेस को मिला। शीर्ष पांच दुग्ध उत्पादक जिलों बेलागवी, तुमकुर, हासन, मैसूरु और मांड्या में प्रभाव स्पष्ट दिखा। इन पांच जिलों की 54 सीटों में से कांग्रेस ने 29 जीतीं। 2018 में 15 सीटें जीत पाई थी।
भाजपा की अंदरूनी लड़ाई का कांग्रेस को फायदा मिला। दूसरे, कर्नाटक चुनाव में भाजपा ने चार फीसद मुसलिम आरक्षण खत्म करके लिंगायत और अन्य वर्ग में बांटने का फैसला किया था, जो अदालत तक पहुंच गया। ऐन वक्त पर कांग्रेस ने चुनावी घोषणा पत्र में आरक्षण का दायरा 50 फीसद से बढ़ाकर 75 फीसद करने का एलान कर दिया। आरक्षण के वादे ने कांग्रेस को बड़ा फायदा पहुंचाया।
लिंगायत मतदाताओं से लेकर अन्य पिछड़ा वर्ग दलितों ने कांग्रेस का साथ दिया। कांग्रेस ने ये भी वादा कर दिया कि जो चार फीसद मुस्लिम आरक्षण भाजपा ने खत्म किया है, उसे फिर से शुरू कर दिया जाएगा। इसके चलते कांग्रेस को मुसलमानों का साथ मिला, वहीं लिंगायत, दलित और ओबीसी मतदाताओं को भी जोड़ लिया।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे कर्नाटक से आते हैं। उन्हें पार्टी ने अध्यक्ष बनाया, भावनात्मक तौर पर कांग्रेस को इससे फायदा मिला। खड़गे कर्नाटक के दलित समुदाय से आते हैं। कर्नाटक में पार्टी की जीत के 2024 आम चुनावों से पहले सांकेतिक मायने बताए जा रहे हैं, जहां लोकसभा की 28 सीटें हैं।