छतीसगढ़ की 90 विधानसभा सीटों के लिए दो चरणों में 7 और 17 नवंबर को वोट डाले जाएंगे। पहले चरण के मतदान से पहले अगर मतदाताओं के मन को टटोला जाये तो उनमें चुनाव में रुचि की साफ कमी है और बदलाव की कोई प्रबल इच्छा दिखाई नहीं दे रही है।

संक्षेप में कहें तो छतीसगढ़ में इस विधानसभा चुनाव में किसी की कोई लहर नहीं है। आम धारणा जहां कांग्रेस के आसानी से जीतने के बारे में है तो वहीं कुछ स्थानों पर टक्कर का मुकाबला है। राज्य सरकार से कुछ लोगों को निराशा है लेकिन भाजपा को सत्ता में वापस लाने की कोई इच्छा व्यक्त नहीं की गई है। रायपुर के एक होटल के सुरक्षा गार्ड से लेकर पाटन के पनतोरा गांव के एक परिवार तक जहां मुख्यमंत्री भूपेश बघेल चुनाव मैदान में हैं, चुनाव को लेकर उत्साह की कमी है।

कांग्रेस के पास हैं भूपेश बघेल

कांग्रेस के लिए सबसे बड़ा फायदा यह है कि प्रतिद्वंद्वी भाजपा के विपरीत, उसके पास भूपेश बघेल जैसे कद का एक नेता है जो आगे से नेतृत्व कर रहा है। मुख्यमंत्री राज्य के एकमात्र नेता हैं जिनका नाम अनौपचारिक बातचीत में कई बार आता है। और वह राज्य भर में बड़े-बड़े कटआउट में व्यापक रूप से दिखाई देते हैं। ऐसा लगता है कि भाजपा के लिए उसका राज्य नेतृत्व अदृश्य हो गया है और निर्वाचन क्षेत्र स्तर पर केवल उसके उम्मीदवार ही चर्चा में हैं।

भाजपा ने नहीं जारी किया चुनावी घोषणापत्र

एक और समस्या जिसका भाजपा को सामना करना पड़ रहा है वह है उसका चुनावी एजेंडा। पार्टी ने अभी तक अपना चुनावी घोषणापत्र जारी नहीं किया है। पहले चरण के मतदान से पहले एक सप्ताह से भी कम समय बचा है लेकिन उसने भ्रष्टाचार को एक बड़ा मुद्दा बना दिया है क्योंकि सीएम के करीबी लोगों को भी ईडी से समन मिला है। हालांकि, यह जमीन पर लागू होता नहीं दिख रहा है।

इसके पीछे कारण यह है कि भ्रष्टाचार विरोधी पिच अब लगभग एक दशक पुरानी है। इसने कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन को उखाड़ फेंकने में मदद की और यह देखते हुए कि पार्टियां इसे हर राज्य में एक मुद्दा बनाती हैं, अब यह मतदाताओं को एक खास मुद्दा नहीं लगता। उनके लिए शासन का अर्थ भ्रष्टाचार के आरोपों के बजाय किए गए काम से होता है।

कृषि प्रधान राज्य है छत्तीसगढ़

प्रशासनिक ढिलाई की शिकायतों के बावजूद कांग्रेस यहीं पर टिकी हुई दिख रही है। मुख्य रूप से कृषि प्रधान राज्य में लोगों के बीच जो बात गूंज रही है, वह कांग्रेस का कृषि ऋण माफी का वादा है, जिससे राज्य के अधिकांश लोग पार्टी के साथ जुड़ गए हैं। यहां तक ​​कि कुछ भाजपा समर्थकों को भी आश्चर्य हो रहा है कि उनकी पार्टी लड़ाई में प्रतिस्पर्धी कांग्रेस को मात देने को अपना प्राथमिक एजेंडा क्यों नहीं बना रही है। गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ की 70% आबादी कृषि में लगी हुई है।

(Story By- Vikas Pathak)