Lok Sabha Election 2019: गौतम बुद्ध नगर सीट पर 11 अप्रैल को होने वाले मतदान को लेकर राजनीतिक गहमा-गहमी तेज हो गई है। राजनीतिक दलों के नेता जनता के बीच पहुंचकर दावे और वादों को बताने का तानाबाना बुन रहे हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में किए वादों पर कितना अमल हुआ, राजनीतिक दलों के पदाधिकारी इसके भी आंकड़े तैयार कर रहे हैं। इस तैयारी के बीच हजारों की संख्या में फ्लैट खरीदारों को कब्जा मिलने का बरसों ने अनसुलझा मुद्दा चुनावी गणित को बिगाड़ सकता है। हर राजनीतिक दल के लिए स्थानीय घोषणाओं में इसके सबसे प्रमुख मुद्दे रूप में शामिल होने की उम्मीद है। अलबत्ता फ्लैट खरीदारों के अब तक ‘नो होम-नो वोट’ को बदलकर ‘नो टु नेता, यस टु नोटा’ की मुहिम शुरू कर दी है। माना जा रहा है कि चुनावी गहमागहमी बढ़ने के साथ यह मुहिम भी अपना असर दिखाएगी।
जिले में करीब दो से ढाई लाख फ्लैट खरीदा हैं। इनमें से करीब 50 हजार से ज्यादा को पिछले कुछ सालों में कब्जा तो मिल गया है लेकिन मालिकाना हक यानी रजिस्ट्री कराने के लिए वे अभी भी धक्के खा रहे हैं। हाल ही में नोएडा प्राधिकरण ने 20 हजार से ज्यादा फ्लैटों का अधिभोग (कंप्लीशन) प्रमाणपत्र जारी किए हैं। इनमें से भी करीब 50 फीसद को मालिकाना हक नहीं मिल पाया है। कई जगह पर ऐसे फ्लैटों का कब्जा मिला है, जहां आधी-अधूरी सुविधाएं हैं। 32 हजार से ज्यादा आम्रपाली समूह के खरीदार कोर्ट में अपने हक की लड़ाई लड़ रहे हैं। बजट में भी खरीदारों के लिए ईएमआइ में राहत देने या स्ट्रैस फंड संबंधी कोई राहत नहीं दी गई है। इससे भी फ्लैट खरीदारों का बड़ा वर्ग नाराज है।
जानकारों का मानना है कि पिछले कुछ सालों में खरीदारों की बात सुनी जाने से उन्हें कुछ राहत तो मिली है लेकिन जमीनी स्तर पर बड़ा बदलाव नहीं हो सका है। अलबत्ता इलाके से चुनावी समर में उतरने वाले तकरीबन सभी राजनीतिक दलों ने चुनावों के दौरान फ्लैट खरीदारों के मुद्दे को भुनाने की कोशिश की है। कुछ समय पहले ग्रेटर नोएडा में यूपी रेरा की पीठ स्थापित होने के बाद से खरीदारों के हितों की सुनवाई शुरू हो पाई है। रेरा पीठ में नोएडा और ग्रेटर नोएडा वेस्ट के खरीदारों से जुड़ी करीब छह हजार शिकायतें पहुंची हैं।
खरीदारों के संगठन नोएडा एक्सटेंशन फ्लैट आॅनर्स मैन एसोसिएशन (नेफोमा) अध्यक्ष अन्नू खान के मुताबिक हर चुनाव से पहले राजनीतिक दल खरीदारों को लुभाने के लिए बड़े-बड़े वादे करते हैं। ना तो हमारी बात पहले सुनी गर्इं और ना ही अब सुनी जा रही हैं। समस्या ज्यों की त्यों बनी हुई है। राजनेताओं के आश्वासन के अलावा हकीकत में खरीदारों के पास ना तो मकान हैं और ना ही बिल्डर को देने के लिए रुपए। ‘नो होम, नो वोट’ की मुहिम के चलते राजनीतिक दल खरीदारों को मनाने के लिए किस हद तक जाते हैं, इसका चुनावी समर के दौरान पता चल जाएगा।