सुरेंद्र सिंघल

सियासी बाजी को एकबार फिर जीतने के लिए हर दांव खेलने की जुगत के तहत भाजपा अपनी गोटी सेट करने में लगी है। परिणाम क्या होगा, इसके बारे में अभी कुछ भी कहना संभव नहीं है। हां, इतना जरूर है कि राह आसान नहीं है। इसके लिए विविध समीकरणों के बल पर चुनावी गणित को हल करना होगा। उसके लिए तमाम रणनीतियों पर काम करने की कोशिशें जारी हैं। इसी के अंतर्गत जातीय समीकरणों को भी साधने का प्रयास चल रहा है।

आपको बता दें कि भाजपा को पश्चिमी उत्तर प्रदेश के पांच मंडलों सहारनपुर, मेरठ, अलीगढ़, आगरा और मुरादाबाद की 22 सीटों में से आठ सीटों (सहारनपुर, मुरादाबाद, अमरोहा, संभल, धामपुर, नगीना, बिजनौर और मैनपुरी) पर हार मिली थी। पश्चिमी यूपी के लिहाज से 2019 का चुनाव भाजपा के लिए ठीक नहीं रहा। इस बार उसे दुरुस्त करने की पुरजोर कोशिशें चल रही हैं। इसके लिए जातीय समीकरणों के भरोसे सियासत की नैया को पार लगाने के लिए जीतोड़ मेहनत की जा रही है। भाजपा ने चुनावों में हारी बिजनौर समेत दो सीटें रालोद को दी हैं।

रालोद प्रमुख जयंत चौधरी ने अपने कोटे की बिजनौर सीट से युवा राष्ट्रीय लोकदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं मुजफ्फरनगर की मीरापुर सीट से विधायक युवा चंदन चौहान को और बागपत सीट से जाट बिरादरी के नए उम्मीदवार राजकुमार सांगवान को उम्मीदवार घोषित कर दिया है। चंदन चौहान के पिता संजय चौहान इसी सीट से और इसी गठबंधन से 2009 में सांसद चुने गए थे और उनके बाबा चौधरी नारायण सिंह 1978 में उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री बाबू बनारसी दास गुप्ता के साथ उपमुख्यमंत्री रहे।

यह परिवार पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गुर्जरों का सबसे सम्मानित परिवार माना जाता हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गुर्जर मतदाताओं की संख्या भी ठीकठाक है। इसलिए समझा जा रहा है कि चंदन के बिजनौर से उम्मीदवार बनने के कारण इसका लाभ भाजपा को अन्य सीटों पर मिल सकता है।

भाजपा ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सहारनपुर, मेरठ, गाजियाबाद और मुरादाबाद के सीटों के प्रत्याशी अभी घोषित नहीं किए हैं। इन सीटों पर नए उम्मीदवार उतारे जाने की संभावना है। भाजपा ने जो उम्मीदवार घोषित किए हैं उसमें उसने जातीय संतुलन पर खास ध्यान दिया है।