सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कई विधायकों, मंत्रियों और अन्य पार्टी के नेताओं के शामिल होने से समाजवादी पार्टी (सपा) के चुनावी अभियान को बढ़ावा मिला है। लेकिन सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव को अब उनके निर्वाचन क्षेत्रों में टिकट-वितरण में चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा क्योंकि उन विधानसभा क्षेत्रों में पहले से ही उनकी पार्टी के कई कार्यकर्ता हैं जो टिकट चाहते हैं।

उदाहरण के लिए सहारनपुर जिले का नकुड़ विधानसभा क्षेत्र लें। सपा में शामिल होने के लिए योगी आदित्यनाथ सरकार के मंत्री पद को छोड़ने वाले धर्म सिंह सैनी नकुड़ से दूसरी बार विधायक हैं और इस बार के विधानसभा चुनावों में भी इस सीट के एक प्रमुख दावेदार हैं।

हालांकि कांग्रेस के पूर्व नेता इमरान मसूद जिन्होंने हाल ही में सपा में जाने के लिए अपनी पार्टी छोड़ दी थी। वे 2017 और 2012 के विधानसभा चुनावों में नकुड़ सीट पर सैनी से चुनाव हार गए थे और दूसरे नंबर पर रहे। इस हफ्ते की शुरुआत में अखिलेश से मिलने वाले इमरान मसूद भी इस सीट से सपा के टिकट के मजबूत दावेदार हैं।

सैनी और मसूद के अलावा कई और स्थानीय सपा कार्यकर्ता भी हैं जो नकुड़ से पार्टी का टिकट चाहते हैं। सपा के कार्यकर्ताओं का दावा है कि वे हमेशा से पार्टी के साथ रहे हैं और उन्होंने जमीनी स्तर पर काम किया है, भले ही पार्टी 2017 से सत्ता से बाहर क्यों न हो। 

यह अकेला मामला नहीं है। अखिलेश को 18 से अधिक विधानसभा सीटों पर इसी तरह की स्थिति का सामना करना पड़ेगा जहां भाजपा और बसपा के मौजूदा विधायक सपा में शामिल हो चुके हैं। इसके अलावा अखिलेश ने सात छोटी पार्टियों के साथ भी गठबंधन किया है, जो अपने-अपने कार्यकर्ताओं को टिकट दिलाने की होड़ में हैं। यह अखिलेश के लिए काफी मुश्किल स्थिति पैदा कर सकता है।

सपा के सहारनपुर जिला अध्यक्ष चंद्रशेखर यादव ने यह स्वीकार किया कि सैनी और मसूद दोनों नकुड़ से टिकट के दावेदार हैं और पार्टी के कई कार्यकर्ता भी टिकट मांग रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि जो लोग सपा में शामिल हुए हैं, वे पहले से ही इस स्थिति से वाकिफ हैं। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष सरकार बनने के बाद उनका ध्यान रखने का आश्वासन देकर सब कुछ संभाल रहे हैं। साथ ही उन्होंने कहा कि ओबीसी नेता सैनी के नकुड़ से चुनाव लड़ने की संभावना है। कद्दावर मुस्लिम नेता इमरान मसूद को सैनी के खिलाफ पिछले दो चुनावों में 5,000 से भी कम मतों से हार मिली।

यूपी के प्रमुख ओबीसी नेता स्वामी प्रसाद मौर्य, जो आदित्यनाथ कैबिनेट और बीजेपी को छोड़कर सपा में शामिल हो गए, वे पडरौना निर्वाचन क्षेत्र से मौजूदा विधायक हैं। सपा 2012 में पडरौना में चौथे स्थान पर थी और 2017 में उन्होंने अपने तत्कालीन गठबंधन सहयोगी कांग्रेस को यह सीट दी थी, जो उन चुनावों में तीसरे स्थान पर रही थी। स्वामी मौर्य पडरौना में सपा के लिए पहली पसंद होंगे। हालांकि मौर्य के बेटे उत्कृष्ट के लिए दूसरे निर्वाचन क्षेत्र से टिकट के दावे को स्वीकार करना अखिलेश के लिए आसान नहीं होगा। उत्कृष्ट 2012 और 2017 के विधानसभा चुनावों में ऊंचाहार में सपा के मनोज पांडे से हार गए थे। उन्होंने 2012 में बसपा उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा था, जबकि 2017 में वे भाजपा के उम्मीदवार थे।

बसपा के दिग्गज नेता और अकबरपुर से मौजूदा विधायक राम अचल राजभर कुछ हफ्ते पहले ही सपा में शामिल हो गए हैं और उन्होंने अपनी ताकत का प्रदर्शन करते हुए एक बड़ी रैली का भी आयोजन किया। 2017 में राजभर ने सपा के राममूर्ति वर्मा को हराया था जो 2012 के चुनावों में वहां से चुने गए थे। द इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए वर्मा ने बताया कि उन्होंने अकबरपुर से पार्टी टिकट की मांग की है और राजभर भी वहां से दावा कर रहे थे। वर्मा ने कहा कि अब पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष तय करेंगे कि कौन चुनाव लड़ेगा।

इसी तरह की स्थिति कटेहरी निर्वाचन क्षेत्र में है, जहां के मौजूदा विधायक लालजी वर्मा बसपा छोड़ सपा में शामिल  हो गए। वे पार्टी के टिकट के प्रमुख दावेदार माने जा रहे हैं। 2017 में इस सीट पर तीसरे नंबर पर रहे सपा के वरिष्ठ नेता जयशंकर पांडे भी टिकट की मांग कर रहे हैं ।

एक अन्य भाजपा विधायक जिन्होंने सपा में शामिल होने के लिए भाजपा छोड़ दी, वो हैं रोशनलाल वर्मा, जो शाहजहांपुर जिले के तिलहर निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। तीन बार के विधायक वर्मा ने 2017 के चुनावों में कांग्रेस के जितिन प्रसाद को हराया था, जब सपा और कांग्रेस का गठबंधन था। सपा के शाहजहांपुर जिला अध्यक्ष तनवीर अहमद ने कहा कि सपा के कम से कम 20 नेता तिलहर से टिकट की मांग कर रहे हैं। लेकिन पार्टी अध्यक्ष जो भी फैसला करेंगे, हर कोई उसका पालन करेगा।