बिहार में आज 78 विधानसभा सीटों के लिए तीसरे और अंतिम चरण का मतदान हो रहा है। पूर्णिया में भी आज ही वोट डाले जा रहे हैं। इसी पूर्णिया के बैरगाछी गांव में बिहार के तीन बार मुख्यमंत्री रहने वाले भोला पासवान शास्त्री का जन्म हुआ था। 1968 में वह पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने थे। उनकी ईमानदारी के किस्से आज भी सुनने को मिलते हैं लेकिन राजनीतिक गलियारों में उनका नाम कहीं खो गया है। जाति के नाम पर वोटों का बंटवारा तो होता है लेकिन एक दलित मुख्यमंत्री का गांव अब भी विकास को तरस रहा है और लोग रोटी कमाने के लिए रोजगार की तलाश में हैं।

यहां पर पिछले चिनाव में जेडीयू की लेशी सिंह ने जीत दर्ज की थी। यहां रहने वाले साइबल पासवान बताते हैं कि वह लगभग 10 साल से बाहर काम कर रहे हैं। 12 साल की उम्र में ही उन्होंने घर छोड़ दिया था। पहले पंजाब में कमाते थे और बाद में दिल्ली चले गए। लॉकडाउन के समय में उनकी नौकरी छिन गई और फिर अपने गांव वापस आ गए। लॉकडाउन में घर वापस लौटे 24 वर्षीय अकाश कुमार ने बताया, ‘शास्त्री जी ने बहुत सारी मुसीबतों के बावजूद काशी विश्वविद्यालय में पढ़ाई की। उनके पीता दरभंगा के राजपरिवार में बहुत छोटी सी नौकरी करते थे। आजकल जो लोग मुख्यमंत्री बन जाते हैं अपनी जड़ों को भूल जाते हैं लेकिन शास्त्री जी हमेशा जमीन से जुड़े रहे।’

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पूर्णिया के एक ईंट भट्टे पर काम करने वाले मनीष कुमार पासवान ने बताया, ‘2015 में यहां अधिकतर लोगों ने वोट जेडीयू को दिया था। यह बड़ा गांव है और यहां हिंदू-मुसलमान दोनों बड़ी संख्या में रहते हैं। पिछली बार सबने नीतीश कुमार को वोट दिया। लेकिन पांच सालों में उन्होंने क्या किया? यहां लोगों के पास जमीन नहीं है। नीतीश ने जमीन के लिए वादी किया था लेकिन आज तक वादे को पूरा नहीं कर पाए।’

उन्होंने कहा, ‘नौकरी नहीं है। स्थिति बहुत खराब हो गई है। पढ़े लिखे बच्चे घर बैठे हैं।’ इस बार मुस्लिम समुदाय के लोग यहां आरजेडी की तरफ शिफ्ट हो रहे हैं। वहीं पासवान लोगों के बीच राम विलास पासवान को लेकर गहरी संवेदना है और वह चिराग पासवान के पक्ष में दिखाई देते हैं। यहा ‘बदलाव’ की बात हो रही है। राम विलास पासवाने के एक पत्र को हाथ में लेते हुए मनीष पासवान ने कहा, ‘वह जो कहते थे वही करते थे और उनका बेटा चिराग बिहार के गौरव की लड़ाई लड़ रहा है।’ लालू प्रसाद का जिक्र करते हुए पासवान ने कहा, वह हमेशा अपनी जड़ों से जुड़े रहे और आज भी उनके घर में गौशाला है। उन्होंने कहा, ‘लालू ठीक था। गरीब के लिए सोचता था। वैसे कोई भी आए बात वही है। अब कोई भोला शास्त्री की तरह नहीं है।’