दिल्ली भाजपा ने आरोप लगाया है कि केजरीवाल सरकार ने दिल्ली की जनता को न सिर्फ अपने चुनावी वायदों से धोखा दिया है बल्कि केंद्र से मिलने वाली योजनाओं को बाधित कर दिल्ली का विकास भी रोका है। सांसद डॉ उदित राज, प्रदेश भाजपा महामंत्री कुलजीत सिंह चहल व राजेश भाटिया और उपाध्यक्ष राजीव बब्बर ने सोमवार को एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि केजरीवाल ने एक बार फिर चुनाव आयोग की निष्पक्षता और ईवीएम में गड़बड़ी की बात की है जोकि उनके अराजक स्वभाव व संवैधानिक संस्थाओं के प्रति असम्मान को पुनर्स्थापित करता है। भारतीय चुनाव आयोग अपनी निष्पक्षता के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है, अनेक देशों में चुनाव कराने में इसके अधिकारियों की मदद ली जाती है। इसी तरह ईवीएम मशीनें समय-समय पर न्यायिक जांच से गुजरी हैं, इसी ईवीएम ने अरविंद केजरीवाल को 2013 और 2015 में सत्ता सौंपी और इसी के सहारे वह हाल में पंजाब में दूसरी बड़ी पार्टी के रूप में उभरे।
उन्होंने कहा कि हम मीडिया के माध्यम से चार प्रमुख योजनाओं का जिक्र रखना चाहते हैं जिनके अनुपालन में केजरीवाल सरकार की देरी के कारण जहां दिल्ली की जनता को सुविधाओं से वंचित रहना पड़ा, वहीं दिल्ली में इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास में भी बाधा आई है। इन सभी योजनाओं के लिए केंद्र सरकार ने आर्थिक सहयोग भी दिया। स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत केंद्र सरकार ने दिल्ली में शौचालयों के निर्माण के लिए 29.97 करोड़ रुपए जारी किए। इस योजना के अंतर्गत दिल्ली सरकार को 11,128 शौचालयों के निर्माण के आवेदन मिले, लेकिन आज तक दिल्ली में केवल 22 शौचालयों के निर्माण का काम शुरू हुआ है। इसी तरह ठोस कचरा प्रबंधन के लिए केंद्र ने दिल्ली के लिए 63.11 करोड़ रुपए जारी किए हैं और 200 करोड़ रुपए की राशि लंबित है। केजरीवाल सरकार ने आज तक इस पैसे का उपयोग नहीं किया है, जिसका प्रमाण है कि 31 मार्च तक दिल्ली सरकार ने इस मद के एक भी रुपए का उपयोग सार्टिफिकेट केंद्र सरकार में वापस जमा नहीं किया है।उन्होंने कहा कि दिल्ली में पीने के पानी की बड़ी समस्या है, लेकिन केजरीवाल सरकार ने इस पर कोई गंभीरता नहीं दिखाई। केंद्र सरकार ने इससे संबंधित कार्यों के लिए 900 करोड़ रुपए की योजनाएं 2016-17 में दीं, लेकिन दिल्ली सरकार ने उन पर कोई कार्य शुरू नहीं किया। दिल्ली मेट्रो प्रशासन ने मेट्रो के चौथे चरण के विस्तार की योजना 7 अक्टूबर, 2014 को दिल्ली सरकार को सौंपी, जिसकी स्वीकृति फरवरी, 2015 में बनी केजरीवाल सरकार को अपनी पहली कैबिनेट बैठक में दे देनी चाहिए थी, लेकिन सरकार ने उसे 21 जून, 2016 तक रोका।