दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का गिरफ्तार होना लोकसभा चुनाव का एक सबसे बड़ा टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ है। दिल्ली-पंजाब में तो आम आदमी पार्टी को एक बड़ी ताकत के रूप में देखा जा रहा था, उनके पास सबसे बड़ा चेहरा अरविंद केजरीवाल थे। लेकिन उसी चेहरे को भ्रष्टाचार के आरोप में ईडी ने गिरफ्तार कर लिया है। उस एक गिरफ्तारी ने आम आदमी पार्टी के आने वाले सियासी भविष्य को अंधेरे में ला दिया है।
आम आदमी पार्टी के लिए ये ज्यादा बड़ी चिंता इसलिए भी है क्योंकि अरविंद केजरीवाल ने दूसरे विपक्षी नेताओं की तरह इस्तीफा देने का फैसला नहीं किया है। हर बार एक अलग तरह के मॉडल को हवा देने का काम करने वाले केजरीवाल अब जेल मॉडल को भी प्रचलित करने का काम कर रहे हैं। उनकी तरफ से कहा जा रहा है कि वे जेल से ही सरकार चलाने वाले हैं। दो आदेश भी जारी किए जा चुके हैं, ये अलग बात है कि उनको लेकर अलग विवाद छिड़ा हुआ है।
वैसे अगर राजनीति के बड़े गिरफ्तारी कांड को याद किया जाए तो सबसे बड़ा सियासी दांव लालू प्रसाद यादव ने चलने का काम किया था। 1998 में चारा घोटाले में उनकी गिरफ्तारी हुई, सभी को लगा कि उनका उत्ताराधिकारी उनकी पार्टी का ही कोई करीबी होगा, कई नेताओं ने सीएम बनने के सपने भी सजा लिए थे। लेकिन तब लालू ने बड़ा खेल करते हुए अपनी ही पत्नी राबड़ी देवी को सीएम बना दिया। सरकार पूरे पांच साल तक चली, सत्ता से दूर रहकर भी लालू बिहार की राजनीति में सक्रिय रहे।
अब अरविंद केजरीवाल भी ऐसी ही स्थिति में फंसे हुए हैं। भ्रष्टाचार के आरोप उन पर भी लगे हैं, गिरफ्तारी उनकी भी हो चुकी है। इसके ऊपर इस समय उनकी पत्नी सुनीता केजरीवाल चर्चा में चल रही हैं। सभी के मन में सवाल है कि क्या केजरीवाल खुद सीएम पद से इस्तीफा देकर सुनीता केजरीवाल को आगे कर सकते हैं? अब पार्टी के तमाम प्रवक्ता इस संभावना को अभी नकार रहे हैं, लेकिन जिस तरह से सुनीता केजरीवाल का इस्तेमाल किया जा रहा है, एक बड़ी राजनीतिक भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता।
अभी इस समय तो सुनीता केजरीवाल के जरिए अरविंद केजरीवाल के लिए एक बड़ी सियासी पिच तैयार करने की कवायद दिख रही है। अगर सुनीता केजरीवाल को ध्यान से सुना जाए तो पता चलता है कि उनके जरिए सहानुभूति जुटाने की पूरी कोशिश है। अगर केजरीवाल ईडी कस्टडी में हैं तो सुनीता उनके नाम के ही पत्र भावुक अंदाज में पढ़कर दिल्ली की जनता का दिल पिघलाने की कोशिश कर रही हैं। समझने वाली बात ये भी है कि जिस अंदाज में सुनीता इस समय दिल्ली की जनता के सामने पेश आ रही हैं, वैसा ही कुछ अंदाज अरविंद केजरीवाल का ही दिखा है।
अरविंद केजरीवाल की एक बड़ी ताकत जनता से सीधा कनेक्ट है, वे खुद को आम आदमी बताकर जनता का ही एक हिस्सा दिखाने की कोशिश करते हैं। उसी वजह से वे अपने हर संबोधन की शुरुआत ‘मेरे प्यारे दिल्लीवासियों’ से करते हैं। अब कहने को सुनीता केजरीवाल अभी किसी भी पद पर आसीन नहीं हैं, लेकिन दो बातें गौर करने लायक है। पहला तो उनका सीएम केजरीवाल जैसा कॉपी पेस्ट अंदाज, दूसरा उनका उसी सीएम कुर्सी पर बैठना जिस पर केजरीवाल कुछ दिन पहले तक विराजमान हो रहे थे।
अब इसे सिर्फ संयोग माने या कुछ और, लेकिन राजनीति में ऐसे छोटे कदम भी मायने रखते हैं। इसके ऊपर एक गैर राजनीतिक छवि रखने वाली शख्स की तरफ से अगर पहले ही ट्वीट में सीधे प्रधानमंत्री को निशाने पर लिया जाए, ये बताने के लिए काफी है कि उन्हें टाइमिंग का खेल बखूबी समझ आता है। याद रखने वाली बात ये भी है कि सुनीता केजरीवाल कहने को एक्टिव पॉलिटिक्स से दूर रही हैं, लेकिन उन्होंने अपने पति और सीएम अरविंद केजरीवाल के लिए हर बार प्रचार किया है।
केजरीवाल की जो भी सियासी छवि दिखाई पड़ती है, उसको संवारने में एक हाथ सुनीता केजरीवाल का भी है। सुनीता केजरीवाल अन्ना आंदोलन के दौरान से ही केजरीवाल के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी रही हैं। अपना करियर छोड़कर जब अरविंद राजनीति में कदम रखना चाहते थे, सबसे बड़ा और सार्थक समर्थन उन्हें अपनी पत्नी सुनीता से ही मिला था। ऐसे में अगर अरविंद केजरीवाल की राजनीति को कोई बखूबी समझता है तो वो सुनीता ही हैं।
सुनीता को लेकर एक बड़ी बात ये भी है कि वे एक महिला हैं और महिलाओं की राजनीति में एक अलग तरह की सियासत रहती है। ऐसा देखा गया है कि महिलाएं ज्यादा संवेदनशील मानी जाती हैं, दूसरों की परेशानी को वो बेहतर तरीके से समझती हैं। इसी वजह से आम आदमी पार्टी ने भी एक महिला चेहरा आगे करने के लिए सुनीता केजरीवाल को ही चुना है। अब इससे डबल बेनिफिट मिल रहा है- पहला ये कि वे सीएम अरविंद केजरीवाल की पत्नी हैं, दूसरा ये कि इसी के जरिए महिला वोटरों में भी उनके ‘भाई’ अरविंद केजरीवाल को लेकर सहानुभूति बन रही है।
एक सियासी प्वाइंट ये भी है कि अगर आम आदमी पार्टी सुनीता केजरीवाल को आगे करती है, अगर उन्हें मुख्यमंत्री बनाने का फैसला होता है, बीजेपी के लिए उन्हें टारगेट करना काफी मुश्किल होगा। ये बात सभी को पता है कि अभी तक सुनीता एक हाउसवाइफ रही हैं, उन्होंने सिर्फ अपने परिवार की देखभाल की है। ऐसे में ऐसी महिला पर सियासी वार करना बीजेपी के लिए बैकफायर भी कर सकता है। इसके ऊपर सुनीता केजरीवाल के पक्ष में ये बात भी जाती है कि उन्हें प्रशासनिक अनुभव ज्यादा है। एक बार के लिए राबड़ी देवी को लेकर पहले कहा जाता था कि वे ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं है, लेकिन सुनीता केजरीवाल पर ऐसा कोई हमला नहीं किया जा सकता।
सुनीता केजरीवाल इंडियन रेवन्यू सर्विसिस के साथ 20 सालों तक काम कर चुकी हैं। सीरियस फ्रॉड इंवेस्टिगेशन ऑफिस में काम करते हुए सुनीता ने कई बड़े केस खुद देखे थे और सॉल्व भी किए। उनकी मुलाकात अरविंद केजरीवाल से एक ट्रेनिंग प्रोग्राम के दौरान हुई थी। बड़ी बात ये है कि रिटायरमेंट से दो दिन पहले ही सुनीता केजरीवाल ने VRS लेने का फैसला किया।