दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को गिरफ्तार कर लिया गया है। शराब घोटाले मामले में ईडी ने उनके खिलाफ बड़ा एक्शन लिया है। लगातार 9 समन नजरअंदाज कर देने के बाद सियासी गलियारों में चर्चा पहले से चल रही थी कि सीएम केजरीवाल को गिरफ्तार किया जा सकता है। खुद आम आदमी पार्टी के तमाम नेता मीडिया के सामने बोल रहे थे- सीएम को अरेस्ट कर लिया जाएगा।

अब जैसा बोला गया, वैसा हो गया है, अरविंद केजरीवाल गिरफ्तार हैं, चुनाव से ठीक पहले उन्हें इस चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। 19 अप्रैल से देश पूरी तरह चुनावी मोड में आ जाएगा जब पहले चरण का मतदान किया जाना है, लेकिन उससे पहले कई कानूनी चरणों से अरविंद केजरीवाल को गुजरना पड़ेगा। ऐसे में सभी के मन में एक सवाल आ रहा है, आखिर अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी से फायदा किसे होने वाला है- आम आदमी पार्टी को या फिर भारतीय जनता पार्टी को?

बीजेपी को क्या सियासी फायदे दिख रहे?

अब अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी को सबसे पहले बीजेपी के सियासी चश्मे से समझने की कोशिश करते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई साल पहले ही एक नारा दे दिया था- ना खाऊंगा ना खाने दूंगा। मतलब साफ था कि भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति पर आगे बढ़ा जाएगा। इसके बाद जिस तरह से ईडी-इनकम टैक्स विभाग की कार्रवाई में तेजी देखने को मिली, जिस तरह जगह-जगह छापे पड़े, जनता के बीच में एक संदेश गया कि लूटने वालों को जेल में डाला जा रहा है।

इसी कड़ी में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी हुई है। वो केजरीवाल जो आंदोलन से उठकर बड़े नेता बने हैं, जिन्होंने कट्टर ईमानदार सरकार चलाने का दावा किया है। लेकिन इस गिरफ्तारी के बाद दो सबसे बड़ी चुनौतियां आप संयोजक के सामने खड़ी होती हैं- पहली तो उन पर लग रहा भ्रष्टाचार का आरोप और दूसरा जिस मुद्दे को लेकर उन पर ये सारे आरोप लग रहे हैं। अब समाज में शराब कहने को एक आम चलन बन चुका है, कई लोग इसका सेवन करते हैं, लेकिन ये बोल देना कि समाज का एक बड़ा वर्ग इस शराब कारोबार को बहुत अच्छी नजरों से देखता हो, तो ऐसा अभी तक होता नहीं दिखा है।

इसी वजह से अरविंद केजरीवाल का नाम जब शराब घोटाले के साथ जोड़ा जा रहा है, तो एक अलग सा बैगेज उनके ऊपर और चल रहा है। खुद को निर्दोष साबित करने के लिए सिर्फ सभी आरोपों से बरी नहीं होना है, इस शराब करोबार से भी खुद का पीछा छुड़वाना जरूरी है। बीजेपी इस समय ये भी नेरेटिव सेट करने की कोशिश कर रही है कि आम आदमी पार्टी दिल्ली में शराब करोबार को और ज्यादा बढ़ाना चाहती थी, उसे हर गली में दुकान खोलनी थी। ऐसे में इस मैसेजिंग से खुद को अलग करना भी एक चुनौती साबित होगा।

अरविंद केजरीवाल के लिए एक बड़ी मुश्किल ये भी है कि गिरफ्तार होने के बाद अगर उन्हें राहत भी मिल जाती है, इस बात से तो कोई इनकार नहीं कर पाएगा कि एक मामले में उन्हें अरेस्ट किया गया था। यानी कि अगर मान लिया जाए कि सीएम को जमानत मिल जाए या फिर कोर्ट कुछ राहत प्रदान कर दे, फिर भी उससे ये साबित नहीं होने वाला है कि उन्हें शराब घोटाले में क्लीन चिट दे दी गई है। उल्टा ये तमगा और लगा रहेगा कि वे जमानत में बाहर चल रहे हैं। जैसी बीजेपी की रजनीति पिछले कुछ सालों में देखने को मिली है, वो किसी के जेल जाने से ज्यादा उनके जमानत पर बाहर घूमने को मुद्दा बनाती है। उसका कोर वोटर तो उस नेरेटिव को पूरी मजबूती के साथ सपोर्ट भी करता दिख जाता है।

आम आदमी पार्टी को क्या फायदा दिख रहा?

ऐसे में बात चाहे भ्रष्टाचार मुद्दे की हो या फिर शराब कारोबार की, बीजेपी दोनों ही पिच पर आम आदमी पार्टी को घेरने का काम करने वाली है। लेकिन ऐसा नहीं है कि ये सियासी पिच सिर्फ बीजेपी की बैटिंग के लिए मुफीद दिखाई दे रही हो। ये नहीं भूलना चाहिए कि सियासी जानकार तो अरविंद केजरीवाल को भी पीएम मोदी जैसा ही एक दूसरा नेता मानते हैं। ये सही बात है कि अनुभव में कई सालों का अंतर है, लेकिन फिर भी जैसी सियासत दोनों नेताओं की रही है, कई बातें समान दिखाई पड़ जाती हैं।

सबसे बड़ी समानता तो ये है कि दोनों ही नेता चुनौतियों को अवसर में बदलना जानते हैं। अगर नरेंद्र मोदी की सिायसत पर नजर दौड़ाई जाए तो पता चलता है कि उनके करियर में कई ऐसे मौके आए जब लगा कि सबकुछ चौपट हो जाएगा, लेकिन उन्होंने अपनी सूझबूझ से हर चुनौती से पार पाने का काम किया। गुजरात दंगों को लेकर उन पर जितने भी आरोप लगे, उन्होंने सीधे-सीधे गुजराती अस्मिता का मुद्दा उठाया और कई सालों तक उसी इमोशनल पिच पर वोट भी पाए।

अब उस पिच पर खेलने वाली तकनीक को विक्टिम कार्ड कहा जाता है जहां पर जनता के बीच में ऐसा दिखाने की कोशिश होती है कि हर कोई एक ही शख्स के पीछे पड़ा हुआ है। अब अरविंद केजरीवाल की तो वैसे भी ऐसी छवि बनी हुई है जहां पर उन्हें दिल्ली का एक बड़ा वर्ग बतौर अपना नायक देखता है। वे जब भी बोलते हैं कि वे सबसे बड़े कट्टर ईमानदार है, कई लोग उस पर विश्वास करते हैं। ऐसे में उनकी गिरफ्तारी होना उन तमाम लोगों के लिए किसी सदमे से कम नहीं और अगर उन्होंने प्रतिकार करने का फैसला किया तो आने वाले महीनों में आम आदमी पार्टी से ज्यादा बीजेपी को सियासी नुकसान भुगतने के लिए तैयार रहना चाहिए।

यहां समझने वाली बात ये भी है कि देश में सहानुभूति फैक्टर मायने रखता है। कौन भूल सकता है कि इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस ने 400 से ज्यादा सीटें जीतने का रिकॉर्ड अपने नाम कर लिया था। कोई विकास हावी नहीं था, किसी का ऐसा करिश्माई चेहरा भी नहीं था, लेकिन बस एक टीस थी, दर्द था और जनता ने इतना बड़ा जनादेश देने का काम किया। इस समय आम आदमी पार्टी तो उसी जनादेश को अपनी ताकत मानकर चल रही है। उसे लग रहा है कि ये एक गिरफ्तारी अब जनता के बीच में केजरीवाल की छवि को और ज्यादा मजबूत कर देगी।

आम आदमी पार्टी के तमाम नेता जिस प्रकार की बयानबाजी भी कर रहे हैं, इशारा साफ है कि सहानुभूति पाने की पूरी कवायद हो रही है। आतिशी बोल चुकी हैं कि नरेंद्र मोदी अगर किसी से डरते हैं तो वे अरविंद केजरीवाल हैं। सौरभ भारद्वाज बोल चुके हैं कि मोदी को हराने का अगर कोई दम रखता है तो वो केजरीवाल हैं। अब ऐसे बयान भी उस नेरेटिव को हवा देते हैं। इसके ऊपर राष्ट्रीय स्तर पर पूरे इंडिया गठबंधन के सामने भी छवि ये बनती है कि बीजेपी ने सिर्फ अरविंद केजरीवाल को गिरफ्तार करवाने का काम किया है (गिरफ्तारी ईडी ने की है, लेकिन नेरेटिव विपक्ष ही सेट कर रहा है कि बीजेपी के इशारों पर सब हुआ)। मतलब साफ है कि बीजेपी, आप से सबसे ज्यादा डर रही थी।

आम आदमी पार्टी तो हमेशा से ही खुद को इस स्थिति में लाना चाहती है जहां पर विपक्ष के दूसरे नेता भी कहने को मजबूर हो जाएं कि केजरीवाल ही मोदी का मुकाबला कर सकते हैं। अब ये एक गिरफ्तारी वो मौका भी बनाने का काम कर सकती है। बड़ी बात ये भी है कि अरविंद केजरीवाल आंदोलनकारी छवि वाले नेता हैं, आम आदमी पार्टी की पृष्ठभूमि आंदोलन से ही निकली हुई है। ऐसे में इस पिच पर तो वैसे भी वो सबसे मजबूत मानी जाती है। यहां तो जब उनके सबसे बड़े नेता को ही गिरफ्तार कर लिया गया है तो पूरे देश में आंदोलन चलाया जाएगा, पार्टी उम्मीद कर सकती है कि उसे वैसा जनसमर्थन मिले जैसा अन्ना हजारे के समय मिला था।

यानी कि केजरीवाल की गिरफ्तारी का फायदा दोनों बीजेपी और आम आदमी पार्टी हो सकता है। लेकिन बड़ा शब्द यहां पर नेरेटिव है जिसे जो समय रहते बना लेगा, सियासी फायदा भी उसी का होता दिखेगा।