उत्तर प्रदेश के रायबरेली और अमेठी में इस बार कांग्रेस के लिए चुनौतियों का अंबार खड़ा है। जिन दो सीटों पर एक जमाने में कांग्रेस का जीत का परचम पक्का माना जाता था, इस बार यहां भी मुश्किल स्थिति बनती दिख रही है। जब से सोनिया गांधी ने रायबरेली से चुनाव लड़ने से इनकार किया है और जब से राहुल गांधी ने खुद अमेठी से लड़ने पर सस्पेंस बना रखा है, जमीन पर कार्यकर्ताओं के लिए प्रचार करना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है।
अमेठी में तो अभी भी कांग्रेस के नेता भरोसा जता रहे हैं कि राहुल गांधी ही यहां से चुनाव लड़ेंगे। उन्हें महसूस हो रहा है कि स्मृति ईरानी ने कोई काम नहीं किया है, ऐसे में जनता फिर कांग्रेस पर ही भरोसा जताने वाली है। लेकिन भरोसा जताने के लिए भरोसे लायक चेहरा चाहिए। कई सालों तक अमेठी में वो भरोसा राहुल गांधी की वजह से था, इसके ऊपर उनका गांधी परिवार से आना एक भावनात्मक रिश्ते को भी जन्म दे रहा था। लेकिन अब जमीन पर स्थिति बदल चुकी है, राहुल खुद पिछले लोकसभा चुनाव में अमेठी से हार चुके हैं।
बड़ी बात ये है कि चुनाव हारने के बाद अमेठी से राहुल गांधी का मोह भंग सा भी हुआ है। ऐसा इसलिए क्योंकि उन्होंने पिछले पांच सालों में सिर्फ चार बार अमेठी का दौरा किया है। दूसरी तरफ बात जब सिटिंग सांसद स्मृति ईरानी की होती है तो उन्होंने अमेठी में ही अपना एक और घर बनवा लिया है। लेकिन कांग्रेस अभी भी उस पुराने नेरेटिव से वापसी करना चाहती है जहां कहा जा रहा है कि अमेठी की जनता के लिए गांधी परिवार ने क्या कुछ नहीं किया है।
कांग्रेस अभी भी अमेठी के लोगों को बता रही है कि गांधी परिवार ने यहां पर इंदिरा गांधी राष्ट्रीय अर्बन अकाडमी बनाई है, राजीव गांधी नेशनल एविएशन यूनिवर्सिटी बनी है, राजीव गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ पेट्रोलियम टेक्नोलॉजी का निर्माण हुआ है। लेकिन समझने वाली बात ये है कि ये सबकुछ इतिहास की बाते हैं, ये सारी विगत की सफलताएं हैं, सवाल ये है कि इस बार किस विजन के साथ कांग्रेस अमेठी की जनता के सामने जाने वाली है, आखिर किस चेहरे को वो आगे करने पर विचार कर रही है?
अमेठी जिला कांग्रेस अध्यक्ष प्रदीप सिंघल कहते हैं कि उन्हें अभी भी राहुल गांधी से ही उम्मीद है। वे मानकर चल रहे हैं कि फिर वे यहां से चुनाव लड़ेंगे। लेकिन जब दूसरा सवाल आता है कि अब तक क्यों ऐलान नहीं हुआ, उनका तर्क है कि वायनाड में चुनाव होने के बाद फैसला हो जाएगा। जानकारी के लिए बता दें कि वायनाड में 26 अप्रैल को वोटिंग होनी है, वहीं 20 मई को अमेठी में मतदान है। अब कांग्रेस के लिए एक चुनौती ये भी सामने आ रही है कि उसकी तरफ से उम्मीदवार का ऐलान तो हुआ ही नहीं है, इसके अलावा पार्टी दफ्तर में भी कोई हलचल नहीं दिख रही।
अब यहां बात अमेठी की हुई है, लेकिन अगर रायबरेली चला जाए तो वहां पर मुकाबला फिर भी काटे का दिखाई देता है। ऐसा इसलिए क्योंकि रायबेरली से ना बीजेपी ने उम्मीदवार उतारा है और ना ही कांग्रेस ने। दोनों ही एक दूसरे की रणनीति के खुलने का इंतजार कर रहे हैं। पिछली बार तो एक लाख से भी ज्यादा के अंतर से सोनिया गांधी ने रायबरेली सीट कांग्रेस की झोली में डलवाई थी, लेकिन इस बार हालात अलग हैं। सोनिया खुद राज्यसभा का रास्ता तय कर चुकी हैं, जमीन पर अटकलें हैं कि प्रियंका गांधी का यहां से सियासी डेब्यू हो सकता है। लेकिन क्योंकि स्पष्टता अभी भी नहीं दिख रही, ऐसे में कार्यकर्ता भी खुलकर प्रचार नहीं कर पा रहे।
रायबरेली से कांग्रेस के पक्ष में सिर्फ ये बात जाती है कि यहां जनता सोनिया को इस बात का दोष नहीं दे रही है कि उनकी तरफ से क्षेत्र का ज्यादा बार दौरा नहीं किया गया। उल्टा जनता खुद समझ रही है कि उम्र और खराब स्वास्थ्य की वजह से सोनिया पिछले पांच सालों में सिर्फ एक बार ही रायबरेली का दौरा कर सकीं। यानी कि इस सीट पर कांग्रेस को नदारद ना रहने का आरोप नहीं झेलना पड़ेगा। दोनों अमेठी और रायबरेली के मुद्दों की बात करें तो यहां राम मंदिर या फिर जातिगत जनगणना का ज्यादा शोर नहीं है। इससे इतर बात बेरोजगारी की हो रही है, केंद्र सरकार की फ्री राशन स्कीम की हो रही है और ईडी-सीबीआई के सियासी इस्तेमाल पर भी मंथन होता दिख रहा है।