लोकसभा चुनाव 2024 से पहले अखिलेश यादव लगातार दावा कर रहे हैं कि इस बार PDA यूपी से NDA को उखाड़ फेंकेगा। अखिलेश यादव के इस दावे के दौरान ही उन्हें यूपी में दो बड़े झटके लगे हैं। विधानसभा चुनाव 2022 से पहले सपा में शामिल होने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य ने उन्हें ‘टाटा बाय-बाय’ कह दिया है। अखिलेश को दूसरा झटका तब लगा, जब पांच बार के सांसद सलीम शेरवानी ने भी अपने पद से इस्तीफा दे दिया।

इसके अलावा सपा की साथी पार्टी अपना दल कमेरावादी भी उनके राज्यसभा प्रत्याशियों की लिस्ट को लेकर चिंता जता चुका है। अपना दल कमेरावादी की विधायक पल्लवी पटेल ने कहा कि वह राज्यसभा चुनाव में वोटिंग से दूर रहेंगी। उन्होंने अखिलेश से सवाल किया कि उन्होंने पीडीए ग्रुप से लोगों को क्यों नहीं चुना। राज्यसभा के लिए सपा ने रामलाल सुमन (दलित) के अलावा जया बच्चन और अलोक रंजन को चुना है। ये दोनों अपर कास्ट से आते हैं।

स्वामी प्रसाद मौर्य ने भी सपा छोड़ने के पीछे पीडीए समुदाय के साथ हो रहे भेदभाव और अखिलेश द्वारा इस ग्रुप को इग्नोर करना मुख्य कारण बताया। इसी तरह सलीम शेरवानी ने भी अखिलेश से सवाल किया कि सपा और बीजेपी में क्या अंतर है। शेरवानी ने सवाल किया कि सपा की राज्यसभा लिस्ट में किसी भी मुस्लिम चेहरे को जगह क्यों नहीं दी गई।

क्यों हो रही पीडीए की चर्चा?

सपा द्वारा गठित यह शब्द पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यकों के पहले अक्षर से मिलकर बना है। अखिलेश द्वारा पहली बार जब PDA का जिक्र किया गया तो पार्टी के कुछ अपर कास्ट नेताओं ने आशंका जताई कि इससे ऊंची जातियों में गलत संदेश जा सकता है, जिसके बाद उन्होंने A से अगड़े, आदिवासी और आधी आबादी का जिक्र भी किया।

एक अनुमान के मुताबिक यूपी में ओबीसी जातियों की आबादी करीब 43.1% है। 2011 में हुई जनगणना के मुताबिक, यूपी के मुस्लिमों की आबादी करीब 19% आबादी है जबकि दलितों की जनसंख्या करीब 23% है। इसी वजह से सपा लगातार पीडीए की बातें कर रही हैं। सपा का टारगेट प्रदेश की 85% जनसंख्या है। अब क्योंकि यादव और मुस्लिम सपा के वोट बैंक माने जाते हैं, इसलिए अखिलेश का प्रयास है कि गैर यादव ओबीसी और दलितों को भी अब अपने साथ लिया जाए।

पीडीए को एकजुट करने के लिए क्या कर रहे अखिलेश यादव?

अखिलेश यादव अपने हर भाषण में पीडीए की बात कर रहे हैं। यह बात जमीन पर भी हो इसके लिए समाजवादी लोहिया वाहिनी ने पिछले साल 9 अगस्त से  22 नवंबर के बीच राज्य के 29 जिलों में पीडीए यात्रा निकाली। इस दौरान समाजवादी लोहिया वाहिनी के कार्यकर्ताओं ने करीब छह हजार किलोमीटर कवर किए।

सपा लोहिया वाहिनी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अभिषेक यादव ने द इंडियन एक्सप्रेस को बातचीत में बताया कि  उन्होंने याभा के दौरान लोगों को बीजेपी के झूठे वादे याद दिलाए और बताया कि सपा का उनको लेकर क्या विजन क्या है। इसके अलावा सपा ने पीडीए पखवाड़ा, चौपाल, जन पंचायत जैसे अन्य कार्यक्रमों का भी आयोजन किया। इन सभी कार्यक्रमों का मकसद अल्पसंख्यकों, दलितों और ओबीसी लोगों को साथ लाना था।

क्या लोकसभा लिस्ट में पीडीए पर फोकस कर रही सपा

यूपी में सपा अभी तक 41 उम्मीदवारों का ऐलन कर चुकी है। पहली लिस्ट में सपा ने 16 उम्मीदवारों के नाम का ऐलान किया था। इन 16 में से ग्यारह ओबीसी थी कैटेगरी से थे जबकि एक मुस्लिम और एक एक दलित था। सपा की 11 उम्मीदवारों की दूसरी लिस्ट में पांच दलित, चार ओेबीसी, एक मुस्लिम और एक राजपूत कैंडिडेट का नाम था।

लिस्ट की तरह ही सपा राज्य में अपनी कमेटियों को भी पीडीए के आधार पर ही आकार दे रही है। पिछले साल अगस्त में सपा द्वारा घोषित की गई कमेटी में सिर्फ चार यादवों को जगह दी गई। इसमें 27 गैर यादव ओबीसी नेता थे। इसके अलावा 12 मुस्लिम और एक सिख व एक ईसाई नेता को भी जगह दी गई।

क्या सपा ने पहले भी किया है ऐसा प्रयोग?

पिछले विधानसभा चुनाव में सपा ने गैर यादव ओबीसी और मुस्लिमों को साधने की पूरी कोशिश की थी। पार्टी ने छह ऐसी छोटी पार्टियों को साथ लिया था जिनका आधार ओबीसी जातियां थीं। तब सपा को 111 सीट पर जीत मिली जबकि बीएसपी और कांग्रेस क्रमश: एक और दो सीटों पर सिमट गईं। हालांकि अब माहौल ये है कि ओम प्रकाश राजभर और जयंत चौधरी पाला बदल चुके हैं जबकि स्वामी प्रसाद मौर्य सपा छोड़ चुके हैं। ऐसे में अगर सपा को आगे बढ़ना है तो उसे अपना सपोर्ट बेस बढ़ाना ही होगा। पार्टी सूत्रों का कहना है कि अगर पीडीए ने 2024 में फायदा नहीं दिया तो भी अखिलेश को उम्मीद है कि यह उन्हें 2027 में फायदा देगा।