Agra Lok Sabha Chunav: यूपी में दो चरण के मतदान में अब तक 16 लोकसभा सीटों पर वोट डाले जा चुके हैं। तीसरे चरण में राज्य की 10 लोकसभा सीटों पर वोटिंग होगी, जिनमें आगरा भी शामिल है। आगरा लोकसभा सीट पर पिछले तीन चुनावों से बीजेपी का कब्जा है जबकि उससे पहले दो बार यह सीट सपा की झोली में गई थी।

आगरा लोकसभा सीट की खास बात ये है कि यहां दलित वोटर्स की अनुमानित संख्या करीब तीस फीसदी होने के बाद भी यहां एक बार भी बसपा को जीत हासिल नहीं हुई है। आगरा के दलित वोटर्स में से एक चौथाई जाटव बिरादरी से आते हैं। इन्हें मायावती का कट्टर समर्थक माना जाता है। पिछले कुछ चुनाव में बसपा के गिरते प्रदर्शन के बाद भी यह समुदाय आज भी मायावती के साथ खड़ा नजर आता है।

आगरा में आने वाली 10 मई को वोट डाले जाएंगे लेकिन बावजूद इसके यहां न तो चाय की टपरियों और दुकानों पर और न ही गली मोहल्लों में चुनावी शोर नजर आ रहे है। इस सीट पर पिछली बार बीजेपी के एसपी सिंह बघेल ने जीत दर्ज की थी। उन्हें यहां पार्टी ने फिर से उतारा है। एसपी सिंह बघेल के सामने सपा और बसपा दोनों ही पार्टियों ने जाटव समुदाय के कैंडिडेट्स पर भरोसा जताया है। बसपा ने यहां पूजा अमरोही तो सपा ने सुरेश चंद कर्दम को अपना प्रत्याशी बनाया है। 

आगरा लोकसभा में बीजेपी ने कैसे जमाई हैट्रिक?

दलितों वोटर्स की अच्छी संख्या होने के बाद भी 1991 से बीजेपी यहां छह बार लोकसभा चुनाव जीत चुकी है। बीजेपी के वरिष्ठ नेता ओम प्रकाश बताते हैं कि बनिया, ब्राह्मण, पंजाबी, नॉन यादव ओबीसी और दलितों का एक वर्ग आगरा में बीजेपी की जीत सुनिश्चित करने में अहम भूमिका निभाता है। वो कहते हैं कि साल 1989 से बीजेपी आगरा का मेयर चुनाव जीत रही है और साल 2022 में आगरा की पांचों लोकसभा सीटें जीतने में सफल रही थी। वो कहते हैं कि आगरा बीजेपी का गढ़ है।

स्थानीय लोगों का क्या रुख है?

आगरा का बसई खुर्द, जो आगरा कैंट विधानसभा का हिस्सा है, यहां जाटव समुदाय से संबंध रखने वाले आकाश कुमार को मायावती से उम्मीदें हैं। उन्हें उम्मीद है कि बीएसपी चीफ मायावती अपनी पार्टी को आगरा में जीत की राह दिखाएंगी। आकाश द इंडियन एक्सप्रेस को बताते हैं कि उन्होंने हाल ही में केक काटकर अंबेडकर जयंती मनाई थी और फिर वो केक बच्चों में बांट दिया था।

वह कहते हैं कि एक दिन मायावती फिर सीएम बन सकती हैं अगर अपर कास्ट और मुस्लिम उन्हें 2007 की तरह सपोर्ट करेंगे। वह कहते हैं कि सिर्फ मायावती ही उनकी चिंताओं पर काम करती हैं जबकि बीजेपी, कांग्रेस और सपा सिर्फ सोशल मीडिया तक सीमित हैं। कई अन्य दलित युवाओं की तरफ आकाश को भी यह मलाल है कि मायावती ने भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर से गठबंधन क्यों नहीं किया। वो कहते हैं कि शाद मायावती को इस बात का डर है कि चंद्रशेखर के साथ आने पर वह बीएसपी से अपना कंट्रोल खो सकती हैं।

बीएसपी के एक कार्यकर्ता श्रीपद जो पेशे से कारपेंटर हैं, को भी भी बीएसपी की जीत की उम्मीद है। वह मायावती के सीएम कार्यकाल को बहुत अच्छा मानते हैं। वो कहते हैं कि लॉ एंड ऑर्डर के मामले में बीजेपी ने अच्छा काम किया था लेकिन दलित के तौर पर वो बहनजी के शासन में सबसे ज्यादा सेफ महसूस करते थे।

ललित वाल्मिकी नाम के एक युवा बताते हैं कि उन्हें मायावती के शासन में नौकरी मिली थी। उनका मानना है कि सिर्फ उनकी सरकार में ही आरक्षण सही से लागू किया किया। सियासी जानकारों का मानना है कि उनका समुदाय बीजेपी का समर्थन करते है लेकिन ललित कहते हैं कि वो बीएसपी के समर्थक हैं। बीजेपी की राजनीति के बारे में बात करते हुए वह कहते हैं जब बीजेपी चुनाव को हिंदू बनाम मुस्लिम बनाती है तो बीएसपी को सबसे ज्यादा नुकसान होता है। वो कहते हैं कि अल्पसंख्यक वर्ग अब सिर्फ बीसपी को समर्थन करेगा क्योंकि उसका मानना है कि वही बीजेपी को हरा सकती है।

आगरा की एत्मादपुर विधानसभा सीट के वोटर रमेश चंद जाटव बीजेपी को सुपर सरकार मानते हैं। वह बताते हैं कि उन्होंने कई केंद्रीय योजनाओं का फायदा लिया है। वह बीसपी का समर्थन करते हैं लेकिन इस बात पर आश्चर्य जताते हैं कि क्यों पार्टी लगातार हार रही है। वह कहते हैं कि हम सभी बीएसपी के लिए वोट करते हैं लेकिन बीजेपी जीतती है। कहीं न कहीं कुछ EVM के साथ कुछ गड़बड़ है। वह कहते हैं कि सही चुनाव के लिए जरूरी है कि बैलेट पेपर के जरिए वोटिंग हो।

आगरा में मुस्लिम वोट भी महत्वपूर्ण

आगरा में सपा और बसपा ने जाटव बिरादरी से जुड़े प्रत्याशी उतारे हैं। यहां मुस्लिम वोटर्स की संख्या करीब दो लाख है, जो काफी महत्वपूर्ण है। माना जा रहा है कि सपा और कांग्रेस का गठबंधन होने की वजह से यहां मुस्लिम इस बार उनके पक्ष में मतदान करेंगे लेकिन बीएसपी भी उन्हें रिछाने की कोशिश कर रही है। आगरा के मोहम्मद सलीम द इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत करते में सवाल करते हैं कि साल 2022 में योगी आदित्यनाथ ने मुगल संग्राहलय का नाम बदलकर छत्रपति शिवाजी महाराज संग्रहालय कर दिया। इससे हमारी भावनाएं आहत हुईं। क्या किसी स्ट्रक्चर का नाम मुस्लिम नहीं हो सकता?

हालांकि आगरा में मुस्लिम समुदाय में बीजेपी को कुछ तारीफ भी मिल रही है। आगरा कैंट की रहने वाली नादिरा कहती हैं कि बीजेपी ने लोगों को धर्म के नाम पर बांटा है लेकिन उनकी ही बहू ट्रिपल तलाक बैन करने के लिए मोदी सरकार की तारीफ करती है। वो अपना नाम छपाने से मना करती हैं, साथ ही ये भी मानती हैं कि बीजेपी के आने के बाद मुस्लिमों के प्रति घृणा बढ़ी है।

किन मुद्दों पर फोकस कर रहे उम्मीदवार?

बीएसपी की प्रत्याशी पूजा अमरोही कांग्रेस की पूर्व राज्यसभा सांसद सत्या बहन की बेटी हैं। वह सोशल जस्टिस से जुड़ी गतिविधियों का हिस्सा रही हैं। वह कहती हैं कि आगरा में मुख्य मुद्दे बेरोजगारी, शिक्षा, सुरक्षा और पीने का साफ पानी है। वह कहती हैं, “मैं आगरा में इलाहाबाद हाई कोर्ट की बेंच स्थापित करने की भी पक्षधर हूं।”

दूसरी तरफ सपा जूता व्यापारी कर्दम के प्रभाव से जीत की उम्मीद कर रही है। वह कहते हैं कि लोग बीजेपी से दुखी हैं क्योंकि उसने आम लोगों ने अपने वादे पूरे नहीं किए, इसलिए अब आम जनता सपा कांग्रेस का समर्थन करेगी। वो कहते हैं कि हालांकि जाटव खुलकर कहते हैं कि वो बीएसपी का समर्थन करेंगे लेकिन यहां वो हमारे लिए वोट करेंगे। 63 साल के सुरेश कर्दम आगरा में नया नाम नहीं है। वह साल 2000 में बसपा के टिकट पर मेयर चुनाव लड़ चुके हैं औऱ दूसरे नंबर पर रहे हैं। 

बीजेपी के प्रत्याशी एसपी सिंह बघेल को इस सीट पर जीत की उम्मीद है। वह कहते हैं कि पिछले कुछ सालों में उन्होंने जो काम किया है और सरकार की जो वेलफेयर स्कीम्स हैं, इससे उन्हें फायदा मिलेगा। वह कहते हैं कि आगरा के लोग उन्हें पर्सनली जानते हैं जबकि सपा और बसपा प्रत्याशियों से अंजान हैं। बघेल दावा करते हैं कि उनके लिए यह चुनाव 2019 के लोकसभा चुनाव से आसान होगा।