हमारे देश में अधिकतर युवा पीएचडी की डिग्री प्राप्त करने के बाद या तो रिसर्च करते हैं या फिर एक फैकल्टी के रूप में किसी उच्च शिक्षण संस्थान में असिस्टेंट प्रोफेसर की नौकरी पाते हैं, लेकिन जेएनयू की छात्रा अनघा किंजावडेकर ने ऐसी धाराणाओं को तोड़ने का काम किया है। 32 साल की अनघा ने किसी कॉलेज या यूनिवर्सिटी में ग्रेजुएशन के छात्रों को पढ़ाने की बजाए नर्सरी के बच्चों को पढ़ाने का फैसला किया।
अनघा की पढ़ाई-लिखाई
बेंगलुरु में रह रहीं अनघा किंजावडेकर ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से इतिहास विषय में बैचलर और मास्टर की डिग्री प्राप्त की थी। इसके बाद उन्होंने इसी विषय में जेएनयू से एमफिल की डिग्री प्राप्त की और इसके बाद उन्होंने जेएनयू में ही पीएचडी की भी पढ़ाई शुरू की। वहां उन्होंने “History of Pilgrimage in Varanasi till 13th century” विषय पर रिसर्च शुरू की।
क्यों बनीं नर्सरी टीचर?
अनघा के जीवन में उस वक्त एक बड़ा मोड़ आया जब साल 2020 में कोविड महामारी की पहली लहर में उन्होंने एक बच्चे को जन्म दिया। इसके बाद उन्हें अपनी पीएचडी की पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी। इसके बाद वह परिवार के साथ बेंगलुरु शिफ्ट हो गईं। अनघा ने कुछ समय पहले ही अपने बच्चे के लिए एक ऐसे स्कूल की तलाश शुरू की जहां तेज और खेल आधारित एजुकेशन सिस्टम मिले, लेकिन उन्होंने पाया कि बुनियादी स्तर पर ही अच्छे शिक्षकों की काफी कमी है और इसलिए उन्होंने नर्सरी टीचर बनकर इस समस्या के समाधान में योगदान देने का सोचा।
कभी नहीं सोचा था कि नर्सरी के बच्चों को पढ़ाऊंगी- अनघा
एक्सप्रेस के साथ बातचीत में अनघा ने कहा है, “शुरू में मैंने मास्टर्स या पीएचडी के बाद यूजीसी नेट लेने के बारे में सोचा था। फिर अपनी ग्रेजुएशन के दौरान मैंने दिल्ली में कई जगहों पर फ्रीलांसर के तौर पर पढ़ाना शुरू किया। मैंने विदेशी बच्चों को भी पढ़ाया और संस्कृत प्रमोशन फाउंडेशन (एसपीएफ) में नौकरी की, जहां मेरा काम टीचिंग मटेरियल तैयार करना था। हालांकि मैंने ये कभी नहीं सोचा था कि मैं नर्सरी के बच्चों को पढ़ाऊंगी।”
प्रेग्नेंसी के दौरान चाइल्ड एजुकेशन में उनकी रूची पैदा हुई थी। अनघा ने कहा कि अपनी डिलीवरी से पहले उन्होंने पेरेंटिंग के बारे में पढ़ना शुरू किया था उसी वक्त उन्होंने यह सोच लिया था कि वह अपने बच्चे के लिए कैसी शिक्षा चाहती हैं। उन्होंने कहा कि अपने बच्चे के लिए मैं एक ऐसा शिक्षक चाहती थी कि जो मेरे बच्चे पर गहरा प्रभाव डाल सके, उसके साथ व्यवहार कर सके और उसे एक व्यक्ति की तरह चीजें समझा सके। यहीं पर मुझे एक अंतर दिखाई दे गया था। तभी मैंने सोचा था कि मैं अपनी पढ़ाई-लिखाई का यहां इस्तेमाल कर सकती हूं।