जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) छात्रसंघ चुनाव 2025 के नतीजे जारी कर दिए गए हैं। स्टूडेंट यूनियन को लेफ्ट की अदिति मिश्रा के रूप में नया अध्यक्ष मिला गया। लेफ्ट गठबंधन ने सेंट्रल पैनल की चारों पोस्टों पर जीत दर्ज की है।
JNUSU के पूर्व अध्यक्ष क्या कर रहे हैं वर्तमान में?
पिछले कुछ सालों से JNU की छात्र राजनीति राष्ट्रीय राजनीति तक जाने का रास्ता बनती आई है। छात्रसंघ के कई पूर्व अध्यक्ष वर्तमान में राष्ट्रीय राजनीति का चेहरा हैं। दशकों से, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ (JNUSU) को भारत के राजनीतिक नेतृत्व के सबसे प्रभावशाली केंद्रों में से एक माना जाता रहा है। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के महासचिव सीताराम येचुरी से लेकर केंद्रीय मंत्री निर्मला सीतारमण और एस जयशंकर तक बड़े नाम इसी यूनिवर्सिटी की देन हैं। ऐसे में आइए आपको बताते हैं कि पिछले एक दशक में JNU के अध्यक्ष रहे 8 चेहरे वर्तमान में क्या कर रहे हैं?
जेएनयू छात्रसंघ चुनाव के नतीजे जारी, लेफ्ट यूनिटी ने जीती चारों सीट; ABVP का सूपड़ा साफ
नीतीश कुमार (2024-25), AISA
बिहार के अररिया जिले से आने वाले नीतीश कुमार 26 साल की उम्र में जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष बने थे। नीतीश कुमार जेएनयू वामपंथी विरासत की निरंतरता के प्रतीक रहे। वर्तमान में वह पीएचडी स्कॉलर, सेंटर फॉर पॉलिटिकल स्टडीज़, जेएनयू हैं।
नीतीश कुमार जेएनयू में अपने समय के बाद भी चुनावी राजनीति करना चाहते हैं। इंडियन एक्सप्रेस के साथ बातचीत में उन्होंने दृढ़ता से कहा है, “ज़ाहिर है, हम राजनीति में बने रहना चाहते हैं और हम राजनीति में बने रहेंगे।” शोध और सक्रियता के बीच संतुलन बनाते हुए, उन्होंने कहा, “मेरे पास ढाई साल की पीएचडी बाकी है। उसके बाद मैं राजनीति में एक्टिव रहना चाहूंगा। देखते हैं पार्टी उन्हें कहां और कैसे संगठित करती है।
धनंजय (2023–24, AISA)
2023-24 सेशन में JNU छात्रसंघ के अध्यक्ष बने धनंजय एक रिटायर्ड पुलिसकर्मी के बेटे हैं। उनकी मां गृहिणी हैं। धनंजय JNU छात्रसंघ के पहले दलित अध्यक्ष बने थे। वर्तमान में वह बिहार विधानसभा चुनाव में CPI-ML के उम्मीदवार हैं। वह भोरे विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। पिछले साल अपने चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने कहा था, “जब आप मेरी जैसी पृष्ठभूमि से आते हैं, तो राजनीति एक करियर विकल्प नहीं, बल्कि एक ज़िम्मेदारी होती है।” धनंजय राष्ट्रीय राजनीति में आइशी घोष और कन्हैया कुमार के बाद आने वाले तीसरे पूर्व अध्यक्ष हैं।
आइशी घोष (2019–23, SFI)
जेएनयू छात्रसंघ में 2019 से लेकर 2023 तक अध्यक्ष रहीं आइशी घोष वर्तमान में SFI की राज्य सचिव और अखिल भारतीय संयुक्त सचिव हैं। इसके अलावा JNU की पीएचडी स्कॉलर भी हैं। 2021 में आइशी घोष ने CPI (M) के टिकट पर पश्चिम बंगाल का विधानसभा चुनाव लड़ा था। पार्टी ने उन्हें जमुरिया से टिकट लिया था। हालांकि वह चुनाव जीत नहीं पाई थीं। 31 साल की आइशी अभी भी पार्टी के कामकाज के लिए ग्राउंड लेवल पर काम कर रही हैं। उनका कहना है कि हम भले कन्हैया कुमार की तरह मीडिया लाइमलाइट में नहीं हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर हम राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय हैं और लोगों को साथ लाने का काम कर रहे हैं।
एन. साई बालाजी (2018–19, AISA)
33 साल के एन. साई बालाजी 2018-19 में JNUSU के अध्यक्ष रहे थे। वर्तमान में वह CPI-ML के संसदीय कार्यालय में पॉलिटिकल रिसर्चर हैं। बालाजी राष्ट्रीय राजनीति में फ्रंट पर रहने वाले फेस नहीं हैं। अपने चुनाव नहीं लड़ने पर वह कहते हैं कि राजनीति का मतलब सिर्फ चुनाव लड़ना नहीं होता बल्कि पार्टी के लिए संगठनात्मक स्तर पर काम करना भी होता है। उनका कहना है कि जो व्यक्ति चुनाव लड़ता है वह सिर्फ़ चेहरा होता है। उसके पीछे एक पूरा स्ट्रक्चर काम करता है। कूटनीति और निरस्त्रीकरण में पीएचडी पूरी करने के बाद एन. साई बालाजी पार्टी के पूर्णकालिक कार्यकर्ता बन गए हैं। उनकी तुलना कई बार सीताराम येचुरी से की जाती रही है।
कन्हैया कुमार (2015-16, AISF)
इस नाम को आज कौन नहीं जानता। JNU छात्रसंघ के अध्यक्ष बनने के बाद कन्हैया कुमार के राजनीतिक जीवन में एक अहम मोड़ आया था। 2016 में राजद्रोह के एक मामले में उनकी गिरफ्तारी ने उन्हें घर-घर में लोकप्रिय बना दिया और जेएनयू की ओर राष्ट्रीय ध्यान आकर्षित किया। छात्रसंघ राजनीति से ही कन्हैया काफी फेमस हो गए थे और आज वह देश की सबसे पुरानी पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के फायरब्रांड नेता हैं। साथ ही वह NSUI के प्रभारी भी हैं।
2016 में CPI में शामिल होने के बाद उन्होंने 2019 का लोकसभा चुनाव बेगूसराय से लड़ा, लेकिन हार गए। बाद में उन्होंने कहा, “जीतना या हारना संघर्ष की परिभाषा नहीं है। सवाल यह है कि क्या आप अभी भी लड़ाई में हैं?” उन्होंने 2021 में कांग्रेस का दामन थाम लिया और दो साल बाद उन्हें एनएसयूआई का प्रभारी नियुक्त किया गया।
आशुतोष कुमार (2014-15, AISA)
वर्तमान: ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, बिहार में राजनीति विज्ञान के सहायक प्राध्यापक
38 साल के आशुतोष कुमार वर्तमान में बिहार की ललित नारायण मिथिला यूनिवर्सिटी में पॉलिटिकल साइंस के असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। सुबह वह पॉलिटिकल साइंस पढ़ाते हैं और शाम को AISA पब्लिकेशन के लिए लिखते हैं। उनका कहना है, “मैं पार्टी से जुड़ा हुआ हूं, हालाँकि पूर्णकालिक सदस्य के रूप में नहीं। मेरा योगदान शिक्षक संघ के माध्यम से बौद्धिक कार्यों और मार्गदर्शन के माध्यम से है।” उन्होंने कहा कि JNUSU का नेतृत्व करने वाले हर व्यक्ति का संसद पहुंचना जरूरी नहीं है बल्कि हमारा काम जागरूकता फैलाना और संगठित करना है।
अकबर चौधरी (2013-14, AISA)
साल 2013-14 में JNUSU के अध्यक्ष रहे अकबर चौधरी वर्तमान में प्रशांत किशोर के ‘बिहार बदलाव’ अभियान के राजनीतिक सलाहकार हैं। जब अकबर चौधरी ने अपनी पीएचडी जमा की तो उन्होंने सोचा कि वे शिक्षा जगत में ही रहेंगे, लेकिन अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में बिताए दो सालों ने इसे बदल दिया। उन्होंने कहा, “मुझे एहसास हुआ कि ज्यादातर राजनीतिशास्त्री लोकतंत्र पर चर्चा तो करते हैं, लेकिन उसमें शायद ही कभी भाग लेते हैं।” इसी एहसास ने उन्हें चुनाव प्रचार अभियान में धकेल दिया।
