वर्तमान में बदलती आदतों के कारण से लोगों के शरीर में कई तरह की समस्याएं उत्पन्न हो रहे है। शरीर के दर्द की समस्या की कई वजह हो सकती हैं जिनमें टीवी, कंप्यूटर या लैपटाप के सामने गलत स्थिति में बैठे रहना, व्यायाम या खेल के दौरान शरीर में खिंचाव आदि होता है। इसके इलाज के लिए अधिकतर लोग फिजियोथेरेपिस्ट या भौतिक चिकित्सक के पास जाते हैं।

इस परिदृश्य में फिजियोथेरेपी (भौतिक चिकित्सा) प्रभावी चिकित्सा विधा के रूप में लोकप्रिय हो रही है। लोग भी आजकल स्वास्थ्य संबंधी मामलों को लेकर काफी जागरूक हो गए हैं। भौतिक चिकित्सा का संबंध अब केवल बीमारियों से उपचार तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि यह स्वस्थ जीवनशैली का अनिवार्य हिस्सा बन गई है। हर व्यक्ति शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रूप से स्वस्थ रहना चाहता है। इसके लिए भौतिक चिकित्सा एक मंच का काम करती है।

भौतिक चिकित्सा का इतिहास प्राचीन मिस्र साहित्य में मिलता है। यह कई तरह के शारीरिक रोगों के उपचार की प्राचीनतम विधाओं में से एक है। इसे चिकित्सा विज्ञान में की एक शाखा माना जाता है। यह चिकित्सा विज्ञान रोगों, चोटों और शारीरिक विकारों के उपचार के लिए विशेषज्ञ द्वारा संचालित की जाती है। यह शारीरिक दक्षता, संतुलन, संयोजन, मजबूती और चिकित्सा संचालन को सुधारने के लिए अभ्यास, व्यायाम, मालिश, विधियां और उपचारिक उपकरणों का उपयोग करती है।

भौतिक चिकित्सक के कार्य

किसी दुर्घटना, बीमारी या बढ़ती उम्र के कारण से चलने-फिरने में अक्षम लोगों की समस्या को जानना और उसका उपचार करना फिजियोथेरेपिस्ट या भौतिक चिकित्सक का कार्य होता है। इसके लिए वह मरीजों की समस्या और उसकी शारीरिक स्थिति का अध्ययन करते हैं। फिर उसके अनुसार वह इलाज की विधि चुनते हैं।

इसमें व्यायाम, मसाज, ‘डीप हीट’, ‘इलेक्ट्रोथेरेपी’ आदि विधियां शामिल हैं। भौतिक चिकित्सक मानव शरीर के विभिन्न अंगों (मस्तिष्क, तंत्रिका तंत्र, कोशिका, जोड़, हड्डियों, हृदय, फेफड़े आदि) की स्थिति को देखते हुए बीमारी की जड़ तक पहुंचते हैं। जब किसी व्यक्ति को चलने-फिरने में परेशानी होती है तो आमतौर पर चिकित्सक उसे भौतिक चिकित्सक के पास जाने की सलाह देते हैं।

भौतिक चिकित्सक कई तरह की बीमारियों से ग्रस्त लोगों का उपचार करते हैं। उनके रोगियों में खेल के दौरान लगी चोटों से परेशान, अंग गवां चुके, पक्षाघात के शिकार लोग, शारीरिक अक्षमताओं से ग्रस्त बच्चे और मनोरोग से पीड़ित लोग भी शामिल हो सकते हैं। इसलिए भौतिक चिकित्सक का कार्यक्षेत्र काफी बड़ा होता है। भौतिक चिकित्सक खेल, बाह्य रोगी विभाग (ओपीडी), गहन चिकित्सा इकाई (आइसीयू), हड्डी रोग विभाग, आक्यूपेशनल हेल्थ, बाल चिकित्सा विभाग, मानसिक बीमारी विभाग आदि क्षेत्रों में काम करते हैं।

योग्यता

भौतिक चिकित्सा में पाठ्यक्रम के करने के लिए जीवविज्ञान में रुचि का होना जरूरी है। इसके साथ ही मानवता की सेवा के लिए तत्पर रहने की भावना का होना भी आवश्यक है। जो विद्यार्थी सत्रह साल के हो चुके हैं और भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, जीवविज्ञान और अंग्रेजी विषय के साथ बारहवीं पास हैं, वह बैचलर आफ फिजियोथेरेपी (बीपीटी) पाठ्यक्रम में प्रवेश ले सकते हैं।

शिक्षण संस्थान बीपीटी में अलग-अलग माध्यम से दाखिले देते हैं। कुछ बारहवीं में आए अंकों के आधार पर बीपीटी में प्रवेश देते हैं जबकि अधिकतर संस्थान प्रवेश परीक्षा के आधार पर दाखिला देते हैं। वहीं, कुछ संस्थान राष्ट्रीय परीक्षा एजंसी की ओर से आयोजित की जाने वाली मेडिकल प्रवेश परीक्षा नीट के आधार पर भी दाखिला देते हैं।

मास्टर आफ फिजियोथेरेपी (एमपीटी) में दाखिले के लिए 50 फीसद अंकों के साथ बीपीटी डिग्री और छह महीने की इंटर्नशिप का होना आवश्यक है। स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम से संबंधित पढ़ाई शोध कार्य से जुड़ी होती है। इसलिए इस तरह के काम में रुचि भी होनी चाहिए।

अवसर

भौतिक चिकित्सक बनने के बाद किसी अस्पताल, क्लिनिक, पुनर्वास केंद्र, स्कूल, दफ्तर, कारखाने, स्वास्थ्य केंद्र, खेल क्लब आदि में काम किया जा सकता है। इसके अलावा स्वास्थ्य देखभाल कंपनियों में भी कार्य किया जा सकता है। इन कार्यों से अलग पाठ्यक्रम करने के बाद किसी निजी कंपनी या शोध केंद्र में अनुसंधान विशेषज्ञ, परामर्शदाता या कंसल्टेंट के रूप में भी कार्य कर सकते हैं।

ज्यादा अनुभव होने पर किसी चिकित्सा संस्थान के प्रबंधन का हिस्सा बनने के अलावा बड़ी शोध परियोजनाओं का निदेशक भी बना जा सकता है। उच्च शिक्षण संस्थानों में इस विषय के अध्यापन में भी काफी अवसर मौजूद हैं। शहरी जीवनशैली और कसरत से दूर होने के कारण लोग मांसपेशियों से जुड़ी कई तरह की बीमारियों (पीठ दर्द, कमर दर्द, जोड़ों में दर्द आदि) के शिकार हो रहे हैं। इनसे निजात पाने के लिए उन्हें भौतिक चिकित्सक की जरूरत होती है।
आशीष झा (करिअर परामर्शदाता)