असम के देबजीत घोष का नाम भी उन 45 शिक्षकों की सूची में शामिल हो जिन्हें राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हाथों राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार 2025 से सम्मानित किया जाएगा। घोष साहब के संघर्ष की कहानी वाकई उन्हें इस सम्मान के काबिल बनाती है। डिब्रूगढ़ जिले के नामसांग टीई मॉडल स्कूल में पढ़ाने वाले देबजीत घोष रोजाना अपने घर से 150 किलोमीटर का सफर तय कर बच्चों को शिक्षित करने के लिए जाते हैं। इस दौरान उनका यह सफर जंगली रास्तों से होता हुआ जाता है जहां अक्सर हाथियों काफिला आता-जाता रहता है। इस खतरे के बावजूद भी 34 साल के देबजीत कई सालों से बच्चों को पढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
स्कूल तक नहीं कोई सीधा पब्लिक ट्रांसपोर्ट
असम के सोनितपुर जिले के रंगपारा में रहने वाले देबजीत घोष नामसांग टीई मॉडल स्कूल में बतौर प्रिंसिपल कार्यरत हैं। जब उनसे पूछा गया कि थका देने वाली यात्रा के बावजूद वह डिब्रूगढ़ में क्यों रहते हैं तो घोष ने कहा, “अगर मैं यहां नहीं रहूँगा तो नामसांग टी एस्टेट मॉडल स्कूल में विकास कार्य करना संभव नहीं होगा। मुझे नियमित रूप से कार्यालय में दस्तावेज भेजने होते हैं और मेरी पत्नी भी डिब्रूगढ़ में काम करती है। इसके अलावा मैं अपनी कार में दो अन्य शिक्षकों को साथ लाता हूं, जबकि बाकी लोग साइकिल से आते हैं, क्योंकि स्कूल तक कोई सीधा सार्वजनिक परिवहन नहीं है।”
2013 में पढ़ाना किया शुरू
घोष के करियर की शुरुआत 2013 में हुई जब उन्होंने डिब्रूगढ़ बंगाली हाई स्कूल में स्नातक शिक्षक के रूप में काम करना शुरू किया। एक बार उनके एक स्टूडेंट अभिषेक के 8वीं कक्षा में साइंस विषय में खराब मार्क्स आए थे। उसके बाद उन्होंने गहराई से खोजबीन की और पाया कि छात्र को लिखना पसंद नहीं है। मार्गदर्शन और प्रेरणा से, छात्र ने न केवल सुधार किया बल्कि असम बोर्ड की कक्षा 10 की मैट्रिक परीक्षा में विज्ञान में 100 और कुल मिलाकर 93 प्रतिशत अंक प्राप्त किए। ऐसे अनुभवों ने केवल अंकों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय जिज्ञासा को पोषित करने में उनके विश्वास को और मजबूत किया।
स्कूल की स्थापना 2022 में हुई
इसके बाद 2022 में उन्होंने नामसांग टी गार्डन मॉडर्न स्कूल की स्थापना की। इस स्कूल की स्थापना से पहले चाय बागान समुदाय के बच्चे अक्सर प्राइमरी एजुकेशन के बाद अपनी पढ़ाई छोड़ देते थे, क्योंकि आसपास कोई माध्यमिक विद्यालय नहीं था, लेकिन अब ऐसे बच्चे नियमित स्कूल आते हैं। पिछले 2 साल में 300 से अधिक ऐसे बच्चे देबजीत के स्कूल में आए हैं जो पढ़ाई छोड़ चुके थे।
पहले ही साल में 271 छात्रों ने लिया था एडमिशन
स्कूल की स्थापना से पहले की स्थिति के बारे में बताते हुए देबजीत घोष ने कहा, “पहले चाय बागान समुदाय के बच्चों को स्कूल छोड़ना पड़ता था क्योंकि 15 किलोमीटर के दायरे में कोई हाई स्कूल नहीं था। सबसे नज़दीकी हाई स्कूल तक पहुंचने के लिए देहिंग पटकाई राष्ट्रीय उद्यान पार करना पड़ता था, जो बेहद जोखिम भरा था, लेकिन हमारे स्कूल ने बच्चों की इस समस्या को दूर कर दिया। 2022 में जब स्कूल की स्थापना हुई तो पहले साल ही 271 छात्रों का एडमिशन हुआ था। इसके अगले साल 326 स्टूडेंट्स ने एडमिशन लिया।