हाल के एक शोध में पता चला है कि दुनिया में 90 फीसद आक्रामक घटनाएं क्रोध के कारण होती हैं। कुछ शोधकर्ताओं ने क्रोध को ‘कंबल-भावना’ नाम दिया है। यह नाम इसलिए दिया गया है क्योंकि क्रोध कंबल की तरह का एक माध्यम है, जिसके नीचे कुछ न कुछ छिपा रहता है।‘अमेरिकन साइकोलाजिकल एसोसिएशन’ क्रोध को एक नकारात्मक भावना मानती है।
एक ऐसी नकारात्मक भावना जो हमारे जीवन को अवनति के रास्ते पर ले जाती है। गैलप की एक वैश्विक भावना रिपोर्ट के अनुसार कुछ वर्षों की तुलना में आज लोग ज्यादा दुखी, क्रोधित, चिंतित और तनावग्रस्त हैं। अनेक मनोवैज्ञानिक काफी वर्षों से यह अध्ययन कर रहे हैं कि क्रोध किस तरह शरीर में जहर का तरह काम करता है। स्टैनफोर्ड के मनोचिकित्सा और व्यवहार विज्ञान विभाग के प्रोफेसर एमेरिटस हैंस स्टेनर के अनुसार महामारी ने क्रोध को बढ़ाने में ज्यादा योगदान दिया है।
पहले यह माना जाता था कि कमजोर व्यक्ति को गुस्सा ज्यादा आता है, लेकिन यह बात पूरी तरह सच नहीं है। कमजोर व्यक्ति शारीरिक या आर्थिक किसी भी रूप से कमजोर हो सकता है। कटु सत्य तो यह है कि जब व्यक्ति किसी भी तरह से मजबूत होता है तो उसे भी उतना ही गुस्सा आता है। बल्कि मजबूत व्यक्ति को तो और भी ज्यादा गुस्सा आता है या फिर वह ज्यादा गुस्सा करने का अभिनय करता है। मजबूत व्यक्ति का मतलब जो शारीरिक या आर्थिक रूप से सबल हो। यानी अगर किसी व्यक्ति में शारीरिक या आर्थिक रूप से मजबूत होने का अहं है तो उसके अंदर गुस्सा करने की प्रवृति बढ़ जाती है।
गुस्सा कमजोर और मजबूत दोनों ही तरह के व्यक्तियों को अपनी चपेट में ले लेता है। कमजोर व्यक्ति का गुस्सा अलग कारणों से होता है जबकि मजबूत व्यक्ति का क्रोध की वजह अलग होती है। कमजोर व्यक्ति को अभावों के कारण गुस्सा आता है। किसी भी तरह की मजबूरी उसके गुस्से का कारण बन जाती है। हालांकि उसे यह पता होता है कि उसके गुस्से से समस्याओं का हल होने वाला नहीं है, फिर भी वह क्रोध करता है। इस गुस्से में एक तरफ दु:ख का भाव समाहित रहता है तो दूसरी तरफ कुछ न कर पाने की छटपटाहट भी होती है।
ऐसे समय में धैर्य रखने की सलाह दी जाती है लेकिन कई बार धैर्य रखना व्यावहारिक रूप से संभव नहीं हो पाता। जब इंसान किसी भी रूप से परेशान होता है तो किताबी बातें और उपदेश धरे रह जाते हैं और वह अपने ऊपर ही गुस्सा करने लगता है। हमें यह पता रहता है कि गुस्सा अंतत: हमारा ही अहित करेगा लेकिन हम इस चक्रव्यूह में फंसते चले जाते हैं। यह केवल आम आदमी की ही बात नहीं है, जिन लोगों को हम समझदार मानते हैं, वे भी क्रोध करते हैं। दूसरी तरफ मजबूत व्यक्ति समृद्ध होने के कारण गुस्सा करता है।
ऐसे व्यक्ति को कई बार गुस्सा नहीं आता है तो वह जानबूझकर समृद्धि के कारण आए अहं की वजह से गुस्सा करने का अभिनय करता है। पद, पैसा, प्रतिष्ठा या शारीरिक सौष्ठव के कारण भी गुस्सा हमारी नाक पर रखा रहता है। यानी किसी भी तरह का अभिमान भी हमें गुस्से की तरफ ले जाता है। हालांकि यह गुस्सा स्वाभाविक नहीं लगता है। समाज या फिर कार्यालय में ऐसे व्यक्तियों को लोग आसानी से पहचान लेते हैं।
ऐसे व्यक्ति समाज या फिर कार्यालय में रोब गालिब करने के लिए ही अनावश्यक रूप से बनावटी गुस्सा करते हैं। कभी-कभी किसी कार्यालय में प्रवेश करने पर उस कार्यालय के अधिकारी का चेहरा देखकर यह अहसास होता है कि वह कई सालों से मुस्कुराया नहीं है। ऐसा लगता है कि कई सालों से उसके चहरे पर मात्र गुस्सा ही विद्यमान है। क्या ऐसे अधिकारी अपने कार्यालय के कर्मचारियों या फिर जनता के साथ न्याय कर सकते हैं?
अगर हम किसी भी रूप में समृद्ध हैं तो हमें और विनम्र होना चाहिए। पद, पैसे, प्रतिष्ठा या शारीरिक सौष्ठता का इस्तेमाल हम जनकल्याण के लिए भी कर सकते हैं। इन गुणों के आधार पर गुस्सा करने से हम अंतत: दूसरों की निगाहों में गिर जाते हैं। हमें यह समझना होगा कि गुस्सा करने से हमें कुछ नहीं मिलता है बल्कि हमारा अहित ही होता है।