किस्सा 1965 का है। 21 जनवरी को मुंबई के बाणगंगा श्मशान में फिल्म स्टार गीता बाली की चिता जल रही थी, जिसके नजदीक ही वह मंदिर था जहां लगभग दस साल पहले सुबह के साढ़े चार बजे शम्मी कपूर ने लिपस्टिक से उनकी मांग भरी थी। मगर एक और चिता जल रही थी, जिसके बारे में जमाने को पता नहीं था। यह चिता जला रहे थे राजेंद्र सिंह बेदी अपनी पंजाबी फिल्म ‘रानो’ की पटकथा की। ‘रानो’ में गीता बाली पैसे लगा रही थीं और वह इसकी हीरोइन भी थीं, हीरो थे धर्मेंद्र। गीता बाली के निधन के बाद ‘रानो’ बंद हो गई, जो दरअसल बेदी की साहित्य अकादमी से पुरस्कृत ‘एक चादर मैली सी’ पर बन रही थी।
किस्सा मशहूर है कि मात्र तीन महीने में ‘एक चादर मैली सी’ लिखने के बाद बेदी ने इसे मशहूर लेखक कृश्न चंदर के पास भेजा। कृश्न चंदर ने इसे देर शाम पढ़ना शुरू किया और देर रात खत्म करने के तुरंत बाद सीधे बेदी के पास पहुंच गए। कहानी से प्रभावित कृश्न चंदर ने कहा कि यह तो ‘मास्टरपीस’ (श्रेष्ठ कृति) है। ‘एक चादर मैली सी’ पंजाब के एक परिवार की कहानी थी जिसमें बड़े भाई की मौत के बाद समाज और परिवार छोटे भाई पर दबाव डालते हैं कि वह अपने बड़े भाई की विधवा से शादी कर ले। छोटा भाई किसी और लड़की से प्यार करता है। बेदी की इस कहानी पर गीता बाली ने पंजाबी फिल्म ‘रानो’ शुरू की थी। वे खुद इस फिल्म की निर्माता थीं। मगर फिल्म बनने के दौरान ही गीता बाली चिकन पॉक्स से पीड़ित हुर्इं और उन्हें पंजाब से मुंबई लौटना पड़ा। सारा शरीर बुखार में तप रहा था। शरीर में सूजन थी। उभर आए दानों के कारण वे आंख भी नहीं खोल पा रही थीं। बेदी अपनी फिल्म की हीरोइन को बेबस और लाचार देखते रहे। जब गीता बाली का निधन हुआ तो बेदी ने ‘रानो’ की पटकथा की अंत्येष्टि कर फिल्म बंद कर दी।
मगर लोग मरते हैं, कहानियां नहीं। लिहाजा 1978 में किसी फीनिक्स पक्षी की तरह यह कहानी चिता की राख से जी उठी। पाकिस्तान में संगीता, नदीम और गुलाम मोहिउद्दीन को लेकर बेदी की कहानी पर ‘मुट्ठी भर चावल’ बनी। संगीता ने इसका निर्देशन भी किया था। सौ से ज्यादा पाकिस्तानी फिल्में कर चुकी संगीता आज 70 साल के आसपास हैं। उनका असली नाम परवीन रिजवी है और उनकी बड़ी बहन कविता (नसरीन रिजवी) भी पाकिस्तानी फिल्मों की अभिनेत्री रहीं हैं। रिजवी बहनें ‘निशब्द’ में अमिताभ बच्चन के साथ काम कर चुकीं जिया खान की रिश्तेदार हैं।
बेदी की कहानी पाकिस्तान ही नहीं हिंदुस्तान में भी परदे पर पहुंची। वक्त का खेल निराला है। बेदी के निधन के दो साल बाद 1986 में सुखवंत ढड््डा ने ‘एक चादर मैली सी’ नाम से ही हिंदी फिल्म बनाई। यह भी संयोग है कि इस फिल्म में हेमा मालिनी के साथ गीता बाली के भतीजे (राज कपूर के पुत्र) ऋषि कपूर ने मुख्य भूमिका निभाई। यह नियति का खेल था कि बेदी अपनी लिखी कहानी को खुद पेपर से परदे पर नहीं पहुंचा पाए, लेकिन मुंबई फिल्मजगत में माना जाता है कि हर कहानी अपना भाग्य लेकर पैदा होती है। ‘एक चादर मैली सी’ को पेपर से परदे पर पहुंचना था, सो वह पहुंच गई।