मुंबई में स्नातक होने के बाद विनोद खन्ना ने जब कारोबारी पिता कृष्णचंद्र खन्ना से कहा कि वह फिल्मों में काम करेंगे, तो उन्हें झटका लगा। पिता टेक्सटाइल डाइंग और केमिकल के कारोबार में सक्रिय थे और चाहते थे कि बेटा उनका हाथ बटाए, पैसा और समाज में प्रतिष्ठा कमाए। अभिनय में भविष्य अनिश्चित था, सो पिता चिंतित थे। विनोद खन्ना इतने हैंडसम, इतने आकर्षक थे कि किसी के भी मन में ईर्ष्या पैदा हो जाए। कॉलेज में लड़कियां उनकी दीवानी हुआ करती थीं। इस माहौल ने विनोद खन्ना में सहज ही फिल्मों में अभिनय की चाह पैदा कर दी थी। जब सुनील दत्त ने 1968 में उन्हें ‘मन का मीत’ का प्रस्ताव दिया तो खन्ना ने अपने दिल की बात अपने पिता को बताई। पिता जब नहीं माने तो एक दिन सुनील दत्त ने खुद कृष्णचंद्र से मिलकर उन्हें समझाया कि विनोद के लिए फिल्मजगत बिलकुल सही जगह है।
सुनील दत्त नामीगिरामी कलाकार थे। उनकी ‘मदर इंडिया’, ‘साधना’, ‘सुजाता’, ‘गुमराह’, ‘वक्त’ और ‘हमराज’ जैसी फिल्में बॉक्स आॅफिस पर धूम मचा चुकी थीं। दत्त के कहने पर कृष्णचंद्र नरम पड़े, तो विनोद खन्ना ने पिता से वादा किया कि उन्हें दो साल का समय दिया जाए। दो साल के बाद लगा कि उन्होंने गलत क्षेत्र चुना है तो वह फिल्में छोड़ पिता के कारोबार में हाथ बटाएंगे। न चाहते हुए भी उन्होंने बेटे की बात मान ली। दूसरी ओर एक वचन सुनील दत्त ने भी अपनी मां को दिया था। सुनील दत्त के पिता के निधन के बाद परिवार की जिम्मेदारी उनकी मां कुलवंती देवी पर आ गई थी।
1947 में विभाजन के बाद अपना गांव खुर्द (जो अब पाकिस्तान में है) छोड़कर उन्हें हरियाणा और उत्तर प्रदेश होते हुए मुंबई आना पड़ा। सुनील दत्त ने पहले नौकरी और बाद में फिल्मों में काम कर अपनी जगह बना ली थी। कुलवंती की चिंता बेटे सोम दत्त को लेकर थी। वह चाहती थीं कि उसका भविष्य भी बन जाए। मां ने सुनील दत्त से कहा कि वह सोम दत्त को भी फिल्मों में हीरो बनाएं। मां को दिए वचन के कारण ही सुनील दत्त ने अजंता आटर््स कंपनी बनाई और ‘मन का मीत’ शुरू की। इसमें हीरोइन के रूप में एक सैन्य अधिकारी की बेटी लीना को मौका दिया गया। यही लीना बाद में लीना चंदावरकर के रूप में जानी गई जिन्होंने किशोर कुमार से शादी की थी।
‘मन का मीत’ 1969 में रिलीज हुई। इसके दो साल बाद 1971 में विनोद खन्ना की विलेन के रूप में ‘मेरा गांव मेरा देश’ और हीरो के रूप में ‘हम तुम और वो’ रिलीज हुई। गुलजार की ‘मेरे अपने’ में भी उनका काम पसंद किया गया। इन दो सालों में यह तय हो गया था कि विनोद खन्ना फिल्मों में ही काम करेंगे। इसके बाद विनोद खन्ना ने ‘हेराफेरी’, ‘मुकद्दर का सिकंदर’, ‘खून पसीना’, ‘अमर अकबर एंथनी’ ‘कुर्बानी’ जैसी हिट फिल्में देकर फिल्मजगत में हंगामा मचा दिया। वह 70 के दशक में चोटी के सितारे थे, उनके लाखों प्रशंसक बन गए। उन्हें अमिताभ बच्चन को टक्कर देने वाला कलाकार कहा जा रहा था। बेटे की प्रतिष्ठा और कामयाबी ने धीरे-धीरे पिता कृष्णचंद्र का हृदय परिवर्तन कर दिया। और 20 साल बाद वह पहली बार सार्वजनिक तौर पर बेटे की फिल्म ‘दयावान’ (1987) के प्रीमियर में शामिल हुए। उन्होंने जब अपनी आंखों के सामने लोगों को बेटे की तारीफें करते देखा तो उनकी आंखें भर आईं। सालों से कारोबार करने और पैसा कमाने के बावजूद उन्हें जितने लोग जानते थे उससे कहीं ज्यादा लोग उनके बेटे को जानते ही नहीं मानते भी थे। उन्हें खुशी हुई कि बेटे ने अपना वादा पूरा किया। इसे समझने और जाहिर करने में उन्हें दो नहीं बीस साल लग गए।
