जरूरत इसकी थी कि यूक्रेन और रूस के बीच जारी युद्ध के एक साल पूरे होने पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चिंता बढ़ती और उसे खत्म करने के लिए नए सिरे से कोशिशें शुरू की जातीं। अगर किसी पक्ष के एक कदम पीछे हटने से युद्ध का अंत करने में मदद मिलने की संभावना होती तो उस विकल्प पर भी विचार किया जाता।

लेकिन इसके उलट हुआ यह कि अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने यूक्रेन की अघोषित यात्रा की और वहां के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की के साथ एक तरह से एकजुटता जाहिर की। बाइडेन के इस कदम को यूक्रेन के साथ अब अमेरिका के प्रत्यक्ष रूप से खड़ा होने के तौर पर देखा जा रहा है और संकट में पड़े अपने सहयोगी के प्रति यह किसी भी देश के लिए स्वाभाविक प्रयास है।

लेकिन विडंबना यह है कि बाइडेन का यही कदम रूस और यूक्रेन में चल रहे युद्ध के बीच एक नई जटिल स्थिति बनने के हालात पैदा कर रहा है। दरअसल, बाइडेन की इस यात्रा पर रूस की प्रतिक्रिया का अंदाजा सभी को था, लेकिन यह जिस तेवर में आई है, उससे अब वैश्विक स्तर पर कई तरह की आशंकाएं मंडराने लगी हैं।

अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि बाइडेन के अघोषित और अचानक यात्रा के जरिए यूक्रेन के साथ एकजुटता प्रदर्शित करने के बाद रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने न केवल नाराजगी जाहिर की, बल्कि रूस और अमेरिका के बीच परमाणु संधि को भी निलंबित करने की खबर है। अब अगर मौजूदा स्थिति को संभालने की कोशिश तत्काल शुरू नहीं हुई तो यह समझना मुश्किल नहीं है कि इसके कैसे नतीजे सामने आ सकते हैं।

ताजा संदर्भों में अपने देश को संबोधित करते हुए पुतिन ने यह जरूर कहा कि हम युद्ध को आखिरी विकल्प मानते हैं और बातचीत से इसका समाधान चाहते हैं, लेकिन साथ ही उन्होंने यह टिप्पणी भी की कि अमेरिका सहित पश्चिमी देशों ने काम बिगाड़ दिया; अमेरिका ने यूक्रेन में भी वही खेल खेला है जो उसने इराक और सीरिया जैसे देशों में किया था।

यों विश्व भर में जो भी देश इस युद्ध को खत्म करने की सदिच्छा रखते हैं, उन सबका यह मानना है कि समस्या का हल सिर्फ बातचीत के जरिए किया जा सकता है और रूस-यूक्रेन को इसी ओर कदम बढ़ाने की जरूरत है, लेकिन पुतिन ने भी यह दर्ज किया कि अपनी ताकत में इजाफे के मकसद से युद्ध को हवा देने की पश्चिमी देशों की कोशिशों के बरक्स यूक्रेन अगर बातचीत की मेज पर आ जाता तो इतना नुकसान नहीं होना था।

जाहिर है, अमेरिकी राष्ट्रपति की यूक्रेन यात्रा के बाद जो हालात पैदा हुए हैं, उसने अब नई बहुस्तरीय चुनौतियां खड़ी कर दी हैं। जबकि महामारी के बाद आर्थिक संकट से उबरने के लिए दुनिया भर में जिस तरह के जद्दोजहद चल रहे हैं, उसमें इस युद्ध को खत्म करना भी बेहद जरूरी है। यह छिपा नहीं है कि रूस-यूक्रेन युद्ध का असर किस तरह खाद्यान्न से लेकर तेल या अन्य जरूरी वस्तुओं के आयात-निर्यात पर पड़ा है।

अब अगर दुनिया में मंदी की आशंका गहराती है तो उसमें युद्ध से उपजे हालात पहले से एक बड़ी भूमिका निभाएंगे। ऐसे में अमेरिका हो या रूस या कोई भी अन्य प्रभावशाली देश, सबको मिल कर युद्ध को खत्म करने की दिशा में ही समाधान खोजना चाहिए था। लेकिन कई बार ऐसा लगता है कि वैश्विक ताकतों का मकसद जंग से उपजी जटिलता का हल निकालने के बजाय अपने अहं की तुष्टि या फिर कुछ परोक्ष मकसद हासिल करना है। वरना वे युद्ध की तीव्रता को कमजोर करके उसे खत्म करने की कोशिश करते, न कि नए सिरे उस आग और भड़काते।