पेंसिल जितना पतला 13 फुट लंबा एक रोबोट तैरकर अंटार्कटिक में ‘डूम्सडे’ यानी प्रलयंकारी हिमखंड कहे जाने वाले हिमखंड के नीचे उस जगह पहुंचा, जहां समुद्र का पानी बर्फ बनना शुरू होता है। वैज्ञानिकों ने यह समझने की कोशिश की है कि क्या है जो इस हिमखंड को इस कदर खाए जा रहा है कि यह लगातार पिघल रहा है।
यह रोबोट बनाया है ध्रुव विशेषज्ञ वैज्ञानिक ब्रिटनी श्मिट ने जो कारनेल यूनिवर्सिटी में काम करती हैं। उनके मुताबिक, वैज्ञानिकों ने ‘डूम्सडे’ ग्लेशियर या ‘थाटीज’ हिमखंड के नीचे वह जगह देखी, जहां यह तेजी से पिघल रहा है और टूट-टूट कर अलग हो रहा है। शोधकर्ता विमान से वहां नहीं जा सकते थे क्योंकि जगह खतरनाक है। बर्फ में छेद नहीं किया जा सकता था, क्योंकि उससे बर्फ के और ज्यादा टूटने का खतरा था।
इससे पहले वैज्ञानिकों ने ‘थाटीज’ पर इस जगह को नहीं देखा था। आइसफिन रोबोट की मदद से वैज्ञानिक 1925 फुट गहरे छेद के नीचे पहुंच गए और देखा कि बर्फ की निचली परत टूट रही है। नेचर पत्रिका में छपे अध्ययन में श्मिट कहती हैं, ‘हिमखंड इस तरह बिखर रहा है। यह पतला होकर टूट नहीं रहा है बल्कि बिखर रहा है।’
बर्फ के व्यवहार को दिखाने के लिए वैज्ञानिक पहले उपग्रह तस्वीरों पर निर्भर थे। इनसे बारीक जानकारी हासिल करना मुश्किल हो गया था। पहले भी कई वैज्ञानिक चेतावनी दे चुके हैं कि दुनियाभर के हिमखंड कल्पना से अधिक तेजी से पिघल रहे हैं। वर्तमान हालात को देखते हुए कहा जा रहा है कि इस सदी के आखिर तक दो तिहाई ग्लेशियर धरती से गायब हो जाएंगे। शोधकर्ताओं का अनुमान है कि 2100 के आखिर तक 83 फीसद हिमखंड दुनिया से गायब हो जाएंगे।
‘नेशनल साइंस फाउंडेशन’ में ‘थाटीज’ के अध्ययन की परियोजना के निदेशक पाल कटलर के मुताबिक, हिमखंड में हो रही टूट से बर्फ की पूरी तह के टूटकर पिघलने की प्रक्रिया तेज हो सकती है। उन्होंने कहा कि अंतत: यह टूटकर बिखरने के रूप में खत्म हो सकता है।
दुनिया के इस सबसे चौड़े हिमखंड को समझने के लिए पांच करोड़ डालर की मदद से बहुवर्षीय शोध परियोजना पर काम हो रहा है। इस हिमखंड का आकार अमेरिका के फ्लोरिडा प्रांत जितना है। इसे ‘डूम्सडे ग्लेशियर’ नाम इसलिए दिया गया था क्योंकि इस हिमखंड में इतनी बर्फ है कि अगर वो पूरी पिघल जाए तो समुद्र का जलस्तर दो फुट से ज्यादा बढ़ जाएगा और प्रलय जैसे हालात हो जाएंगे। हालांकि इस प्रक्रिया में कई सौ साल लग सकते हैं।
दूसरी ओर, ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वेक्षण दल में समुद्र विज्ञानी पीटर डेविस कहते हैं कि थाटीज का पिघलना उसके नीचे हो रही प्रक्रिया का नतीजा है, जहां गर्म पानी बुलबुले बनाता है। इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि हिमखंड से कितनी बर्फ पिघल रही है और जलस्तर पर कितना असर डाल रही है। क्योंकि उसकी मात्रा बदल नहीं रही।
डेविस कहते हैं कि बर्फ का पिघलना बड़ी समस्या नहीं है। समस्या है हिमखंड का पीछे हटते जाना। वह कहते हैं कि ग्लेशियर जितना ज्यादा टूटेगा और पीछे हटेगा, उतनी ही ज्यादा बर्फ पानी पर तैर रही होगी। बर्फ जितनी ज्यादा पानी पर तैरेगी, विस्थापन के कारण जलस्तर उतना ज्यादा बढ़ता जाएगा। टूट थाटीज के पूर्वी हिस्से में हो रही है जो ज्यादा बड़ा और स्थिर हिस्सा है।
