दरवाजे से दवाई
कोरोना काल में जहां सरकारी अस्पतालों की ओपीडी में बैठने वाले डॉक्टर इन दिनों करीब आठ फीट की दूरी से मरीजों को देखकर दवाएं लिख रहे हैं। तापमान, बीपी, मधुमेह, पैर-पेट में दर्द जैसी बीमारियों को बगैर देखे लिखना कितना मददगार साबित होगा, इसे कोई नहीं बता पा रहा है। बढ़ती ठंड में सांस, सर्दी, दर्द जैसी बीमारियां बढ़ गई हैं, लेकिन एक-एक कमरे में कई सुरक्षाकर्मियों से घिरे डॉक्टर एक जैसी दवा तमाम तरह की बीमारियों के लिए लिख रहे हैं।
कई घंटे लाइन में लगकर यहां इलाज कराने के लिए पहुंचने वाले खुद इससे संतुष्ट नहीं हैं, लेकिन निजी डॉक्टरों के महंगे शुल्क के चलते यहां पहुंचते हैं। दरवाजे से खड़े होकर मरीज से मर्ज के बारे में पूछने और एक जैसी दवाई ज्यादातर मरीजों को लिखे जाने की शिकायत पर जिला अस्पताल प्रशासन ने पूरी तरह से चुप्पी साधी हुई है।
पुराने हिसाब
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट मांगने की तैयारी कर रहे नेताओं में अबकी बार पुरानी योजनाओं को लेकर बड़ी चिंता है। यही वजह है कि सालों पुरानी योजनाओं को लेकर अब भाजपा के वरिष्ठ नेता यह चिंता लेकर पहुंच रहे हैं।
हाल ही में हुए केंद्रीय स्तर की एक बैठक में पार्टी के नेताओं को नसीहत दी गई है कि पुरानी योजनाओं को लागू करने के लिए कुछ काम होना जरूरी है वरना केवल प्रधानमंत्री के चेहरे पर चुनाव लड़कर इस बार दिल्ली में चुनावी दंगल में उतरना उनकी मुश्किलें बढ़ा सकता है क्योंकि जनता भी पुराने हिसाब मांगने की तैयारी कर रही है।
बड़ी कुर्सी
दिल्ली भाजपा में हाल ही में हुई एक बैठक में पार्टी के बड़े नेता प्रदेश अध्यक्ष आदेश गुप्ता से बड़ी कुर्सी पर नजर आए। दरअसल प्रदेश स्तर की यह बैठक संगठन की तैयारियों की मंत्रालय के लिए बुलाई गई थी। जहां पार्टी के वरिष्ठ महामंत्री प्रदेश अध्यक्ष से बड़ी कुर्सी पर बैठे नजर आए। ऐसा लगा मानो अध्यक्ष नहीं खुद महामंत्री ही इस बार पार्टी की रणनीति बनाने पर काम कर रहे हैं।
आंदोलन और यादें
राजधानी की विभिन्न सीमाओं पर किसानों को एक महीने से अधिक वक्त आंदोलन करते हुए हो गया है। किसान रात के वक्त भी सीमा पर डटे रहते हैं। ऐसे में किसानों के सामने समय काटना एक बड़ी समस्या बन कर उभरी है। हालांकि, कुछ किसानों ने इसका तोड़ निकाल लिया है। सीमा पर बैठे बुजुर्ग किसान अपने पूराने वक्त को याद कर वक्त काट रहे हैं तो युवाओं को बुजुर्ग अच्छी बातें पढ़ा रहे हैं। शुरूआती दौर में किसानों के दिन अच्छे कटे।
दिनभर किसी ना किसी पदाधिकारी का भाषण होता था। फिर सरकार से बातचीत का दौर शुरू हुआ, लेकिन बीते कुछ दिन ऐसे भी रहे, जब पदाधिकारियों के नाम भाषण होते थे, जिसमें पहली कही गई बातों का दोहराव अधिक होता था। भाषण सुन कर किसान भी उकता गए थे। वहीं, सरकार से बातचीत के कोई आसार दिखाई नहीं दे रहे थे। ऐसे में बुजुर्ग किसानों ने अपनी पूरानी यादों के सहारे ही आंदोलन में वक्त काटने का रास्ता खोज निकाला।
खाकी में शालीनता नहीं
कोविड के दौरान दिल्ली पुलिस सबसे ज्यादा परेशान हुई। कई जाबांजों को खोने के बाद भी वह अपनी ड्यूटी में कोताही करती दिखाई नहीं दी। लेकिन दुख तब होता है जब वह अपने इसी खोए हुए जवानों के परिजनों के प्रति अपना व्यवहार उदासीन सा बना लेती है।
रविवार को दिल्ली पुलिस महासंघ के एक कार्यक्रम में ड्यूटी के दौरान दिवंगत एक पुलिस वाले के परिजनों की आपबीती सुनने के बाद मन को झकझोर दिया। सम्मानित करने के लिए बुलाई गई उस महिला के कहने का लब्बोलुआब यह था कि चारों तरफ से मदद की गुहार करना बेअसर रहा और अंत में यही कहा जा सकता है कि शालीनता खाकी वर्दी के व्यवहार में नहीं है। चाहे वे अपनों के साथ हो या फिर पराए के साथ।
बुजुर्गों पर चुप्पी
इस बार राजपथ पर होने वाले गणतंत्र दिवस परेड के प्रदर्शन आयोजन में कई बदलाव हुए हैं। बदलाव के पीछे कोविड-19 ही वजह है। सारी एहतियातों को लोग खूब सराह भी रहे हैं। लेकिन एक बात लोगों के गले नहीं उतर रही। दरअसल परेड में शामिल होने पर 15 साल से कम उम्र के बच्चों को तो रोक लगा दी गई है, लेकिन बुजुर्गों के बारे में चुप्पी साध ली गई है।
जैसे ही लोगों को यह पता चला कि बुजुर्गों को लेकर चुप्पी है, कटाक्ष का मानो दौर सा शुरू हो गया। पूछने वाले ने ठीक तो पूछा ही कि कोरोना को लेकर बच्चों व बुजुर्गों के साथ जब एक जैसी सावधानियां बरती जाती रही हैं, फिर इस परेड में क्यों नहीं? जवाब देने वालों की भी चुटकी अनूठी थी। जवाब था-परेड में शिरकत करने वाले ज्यादातर वीवीआइपी तो बुजुर्ग ही हैं। खासकर ‘नेतागण’। परेड से बुजुर्गों को बेदखल करने पर मामला घुमा फिर कर ‘वहीं’ आ जाता है। अब ‘उन्हें’ तो नाराज नहीं किया जा सकता। नहीं तो आयोजकों को कोरोना से कम नुकसान का खतरा इन लोगों से नहीं था। शायद तभी इस मुद्दे पर चुप्पी है।
रूखा व्यवहार
थाने में शिकायत करने आने वालों का स्वागत मेहमानों की तरह फिल्टर वाला पानी और चाय से किया जाएगा। इसके अलावा, थाने के एसएचओ और हेल्पडेस्क पर बैठे ड्यूटी अफसर समेत थाने के दूसरे पुलिसकर्मियों को अदब के साथ बोलने का पाठ कराया जाएगा।
दिल्ली पुलिस के एक कार्यक्रम में आए तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने 2018 में पुलिस आयुक्त अमूल्य पटनायक से इस बाबत चर्चा की थी और तब इस संवाद को जोर से फैलाया गया था। गृह मंत्री और आयुक्त के बीच के इस संवाद को सुनने में तब जितना मजा आया था, अगर उसका एक अंश भी आज पुलिस वाले खुद में अख्तियार कर लेते तो शायद दिल्ली पुलिस विश्व की सबसे शालीन पुलिस बन जाती, लेकिन दुर्भाग्य देखिए कि नई दिल्ली जिले के थाने में ही जहां कोरोना के दौरान बड़ी-बड़ी डींगें हांकी गर्इं, वहां इस समय चाय और पानी तो दूर, हेल्पडेस्क पर बैठे ड्यूटी अफसर तो इस तरह का रूखा व्यवहार करते हैं जैसे उन्हें ऐसा करने का ही विशेष प्रशिक्षण दिया गया हो।
-बेदिल
