सुनील दत्त पांडेय
उत्तराखंड में आजकल राज्य की पुलिस के ‘ग्रेड पे’ के मामले को लेकर जमकर राजनीति हो रही है। कांग्रेस और भाजपा इस मुद्दे को लेकर आमने-सामने हैं। वहीं, इस मसले को लेकर राज्य के पुलिस महकमे में भीतरखाने जमकर असंतोष है जिसका प्रभाव राज्य की कानून व्यवस्था पर भी पड़ रहा है। इसको देखते हुए राज्य की पुष्कर सिंह धामी सरकार ने मंत्रिमंडलीय उपसमिति का गठन किया है और यह समिति मंत्रिमंडल में अपनी रिपोर्ट रखेगी। उसके बाद राज्य सरकार इसमें अंतिम फैसला लेगी।
कई सालों से पुलिस ‘ग्रेड पे’ राज्य सरकार के लिए सिरदर्द बना हुआ है। पिछली सरकारों के वक्त इस मुद्दे को लेकर पुलिस का असंतोष सोशल मीडिया पर भी दिखाई दिया था और पिछले दिनों पुलिस के परिवारजनों ने इस मुद्दे पर सोशल मीडिया में अभियान भी चलाया था। इस असंतोष की चिंगारी कहीं आग में ना बदल जाए इसको देखते हुए मुख्यमंत्री धामी ने इस मामले को निपटाने के लिए तेजी दिखाई और मंत्रिमंडल की उपसमिति को यह मामला जल्दी ही निपटाने के लिए जिम्मेदारी सौंपी। मंत्रिमंडल की इस उप समिति का अध्यक्ष राज्य सरकार के शासकीय प्रवक्ता और कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल को बनाया गया है जिन्होंने इस मामले में अब तक तीन बैठकें की हैं। राज्य के पुलिस और प्रशासन के विभिन्न अधिकारियों से बातचीत कर बीच का रास्ता निकालने के प्रयास किए हैं।
कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल का कहना है कि जल्दी ही इस मामले में राज्य सरकार अंतिम निर्णय लेगी और सब की राय के बाद यह मामला निपटा दिया जाएगा ताकि किसी के साथ अन्याय ना हो, प्रदेश में पुलिसकर्मियों के 4600 ग्रेड पे के मामले पर जल्द ही मंत्रिमंडल की यह उप समिति रिपोर्ट तैयार करेगी और कैबिनेट में रखेगी।
प्रदेश में पुलिसकर्मियों ने 4600 ग्रेड पे देने की मांग की है। माना जा रहा है कि अब तक मंत्रिमंडल की उपसमिति ने जितनी भी बैठकें की हैं, उन सभी में पुलिसकर्मियों के 4,600 ग्रेड पे को लेकर बात नहीं बन पा रही है। विभिन्न परेशानियों के चलते पुलिसकर्मियों को 4,600 ग्रेड पे मिलना कठिन दिखाई दे रहा है। सूत्रों के मुताबिक यदि पुलिस महकमे के लिए राज्य सरकार 4,600 ग्रेड पे लागू करती है तो राज्य के अन्य विभागों से भी बढ़े हुए ग्रेड पे की मांग जोर पकड़ने लगेगी और राज्य सरकार के लिए बढ़ने वाले वित्तीय बोझ को उठाना भारी पड़ जाएगा। इसी वजह से राज्य सरकार पुलिसकर्मियों को 4,600 ग्रेड पे को देने से पीछे हट रही है।
राजनीतिक विश्लेषक अवनीत कुमार घिल्डियाल का कहना है कि जो पुलिस 24 घंटे पसीना बहाकर राज्य में कानून व्यवस्था कायम करने के लिए दिन रात लगी रहती है। राज्य में विभिन्न विभागों के कर्मचारियों और विभिन्न संगठनों के प्रदर्शनों को रोकने में जुटी रहती है, वह खुद ही अपने साथ आर्थिक अन्याय को न्याय में बदलने के लिए प्रदर्शन का सहारा ले, इससे ज्यादा राज्य के लिए दुर्भाग्य का विषय और कोई नहीं हो सकता है।
नौ नवंबर 2000 को उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ था और 2001 में राज्य की अंतरिम नित्यानंद स्वामी सरकार ने राज्य में पहली बार 2001 में पुलिसकर्मियों की भर्ती शुरू की थी। तब पुलिसकर्मियों की पदोन्नति के लिए तय सीमा 8,12 और 22 साल रखी गई थी।
उत्तराखंड पुलिस में भर्ती के समय पुलिसकर्मियों का ग्रेड पे 2,000 होता था। इसके आठ साल बाद उन्हें 2,400, 12 साल बाद 4,600 और 22 साल की सेवा के बाद 4,800 दिए जाने का प्रावधान था।
अब 2013 में पहले बैच के सिपाहियों को 4,600 रुपए के ग्रेड पे का लाभ मिलना था। लेकिन उससे पहले ही सरकार ने समय-सीमा में बदलाव कर दिया और 2013 में तत्कालीन कांग्रेस की सरकार ने ग्रेड पे को लेकर नई नीति बनाई थी। इसके तहत अब यह लाभ उन्हें 10,16 और 26 साल के आधार पर मिल रहा है। ऐसे में पहले बैच के पुलिसकर्मियों को 2017 में 4,600 ग्रेड पे का लाभ मिलना था, लेकिन उससे पहले ही समय-सीमा का ढांचा बढ़ाकर 10, 20 और 30 कर दिया गया।
इस हिसाब से साल 2001 बैच के पुलिस को 4,600 ग्रेड पे का लाभ दिया जाना था, परंतु पिछले दिनों शासन ने ग्रेड पे की समय सीमा को ही घटा दिया। जब-जब पुलिसकर्मियों का ग्रेड पे बढ़ने की बारी आई, तब राज्य सरकार ने नियम बदलकर उनके साथ धोखा किया 2001 के पहले बैच के सभी पुलिसकर्मियों की 20 साल की सेवा पूरी हो चुकी है। हालांकि उन्हें पहले ग्रेड पे 2,400 का लाभ तो 11 साल पहले ही मिल गया था। लेकिन जैसे ही उनके 20 साल पूरे हुए तो अब उन्हें 4,600 की जगह 3,800 ग्रेड पे के हिसाब से वेतन मिल रहा है। इस तरह यदि उन्हें 2,800 ग्रेड पे दिया जाता है तो उन्हें वेतन में भारी आर्थिक हानि उठानी पड़ेगी।