मालदीव के राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने देश में डेढ़ महीने पहले लगाया आपातकाल हटा लिया है। यामीन ने अपनी सत्ता के तख्तापलट के डर से यह कदम उठाया था। मालदीव में हालात उस वक्त गंभीर हो गए थे जब यामीन देश की सर्वोच्च अदालत से टकराव ले बैठे और प्रधान न्यायाधीश सहित दो जजों को गिरफ्तार कर लिया और तीन जजों को बर्खास्त कर दिया। इन जजों ने राजनीतिक विरोधियों को रिहा करने का आदेश दिया था। यामीन ने अपने राजनीतिक विरोधियों को अनिश्चितकाल के लिए जेल में डाल रखा है। सत्ता और न्यायपालिका के बीच इस टकराव ने देश को एक नए संकट में डाल दिया था। मालदीव से आपातकाल हटाया जाना एक अच्छा संकेत जरूर है, लेकिन अब भी तमाम अंदेशे हैं। एक तरफ आपातकाल हटाने की घोषणा हुई है और दूसरी तरफ एक पूर्व राष्ट्रपति और पूर्व प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ मुकदमा चलाने की। इससे इस आशंका को और बल मिल रहा है कि आपातकाल हटाने का एलान कहीं दुनिया की नजरों में धूल झोंकना तो नहीं है! राष्ट्रपति यामीन क्या कानून का शासन सुनिश्चित करेंगे, क्या राजनीतिक विरोधियों को रिहा करेंगे, नागरिक अधिकारों की बहाली होगी? इन्हीं सवालों के मद््देनजर अमेरिका ने कहा है कि आपातकाल हटाने के बाद राजनीतिक विरोधियों की रिहाई और मानवाधिकारों की बहाली होनी चाहिए।

अंतरराष्ट्रीय दबाव में ही सही, आपातकाल हटाया जाना एक सही कदम है, पर यह पर्याप्त नहीं है। ताजा एलान को उसकी तार्किक परिणति तक ले जाने वाले कदम भी शीघ्र उठाए जाने चाहिए। लेकिन यामीन के रवैए से लगता है कि वे चीन के मौन समर्थन के सहारे सारे संकट से पार पा लेना चाहते हैं। जबकि चीन का अपना खेल है। मालदीव में उसके व्यापारिक और सामरिक हित हैं। वह मालदीव में समुद्र निरीक्षण केंद्र बना रहा है। मालदीव में चीन की इस दिलचस्पी से अमेरिका परेशान है। भारत भी मालदीव के हालिया घटनाक्रम को लेकर चिंतित रहा है। हालांकि भारत और मालदीव के रिश्ते हमेशा अच्छे रहे हैं। समय-समय पर भारत ने मालदीव को गंभीर संकटों से निकाला है। साल 1998 में मालदीव में तख्तापलट कोशिश को भारत की मदद से ही नाकाम किया गया था। 2014 में माले में पेयजल का भीषण संकट आ जाने पर भारत ने पानी पहुंचाया था। भारत के लिए मालदीव की राजनीतिक अस्थिरता इसलिए भी चिंताजनक है कि मालदीव अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण सामरिक दृष्टि से बेहद महत्त्वपूर्ण है। बहरहाल, सवाल है कि मालदीव के हालात बिगड़ेंगे या सुधार की कोई उम्मीद बनती है?
राष्ट्रपति यामीन और पूर्व तानाशाह गयूम सौतेले भाई हैं। गयूम ने तीस साल तक राज किया। लेकिन अब दोनों राजनीतिक विरोधी हैं। अब फौजदारी अदालत ने पूर्व राष्ट्रपति गयूम, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व प्रधान न्यायाधीश अब्दुल्ला सईद, न्यायमूर्ति अली हामीद और गयूम के बेटे सहित चार सांसदों और पुलिस के एक आला अफसर पर आतंकवाद से जुड़ी धाराओं के तहत आरोप तय कर दिए हैं। अगर ये लोग दोषी करार दिए जाते हैं तो सभी को पंद्रह साल तक के कारावास की सजा हो सकती है। अगर ऐसा होता है तो यामीन अराजक माहौल के बीच ही सत्ता में बने रह सकते हैं, या शायद वह भी संभव न हो। अच्छा हो कि वे देश पर खुद को जबर्दस्ती थोपने के बजाय आपातकाल हटाने के बाद के तकाजों को पूरा करें।