जमाने के बहुत आगे बढ़ जाने की बात तमाम लोगों के मुंह से अकसर सुनने में आती है। और यह बात कहते हुए संचार क्रांति से लेकर अंतरिक्ष में बढ़ती पहुंच तक, जाने कितनी चीजों के हवाले दिए जाते हैं। पर इन सारे हवालों के बावजूद हमें कई बार ठिठक कर सोचना पड़ता है कि क्या वाकई जमाना बहुत आगे निकल आया है, या अब भी अंधेरे मुकाम पर ठहरा हुआ है? तंग जेहनियत से पैदा होने वाली क्रूरता की खबरें रोज आती रहती हैं। कभी किसी सांप्रदायिक घटना के रूप में, कभी व्यक्तिगत आजादी पर हमले के रूप में। तंग जेहनियत का सोच में डाल देने वाला एक वाकया जम्मू-कश्मीर के पहलगाम जिले में हुआ है। एक निजी स्कूल में काम करने वाले एक युगल को स्कूल प्रबंधन ने शादी के दिन बर्खास्त कर दिया। युगल का गुनाह यह था कि शादी के पहले से उनके बीच प्यार था। यानी उन्हें स्कूल प्रबंधन ने प्यार की सजा दी। वह भी तब, जब उन्होंने शादी कर ली। प्रबंधन का कहना है कि शादी से पहले दोनों रोमानी रिश्ते में थे और उनका रोमांस छात्रों पर खराब प्रभाव डाल सकता है। छात्रों के मन पर जाने कितने तरह के प्रभाव पड़ते होंगे। आखिर वे टीवी देखते होंगे, मोबाइल और इंटरनेट भी इस्तेमाल करते होंगे, यहां-वहां घूमते भी होंगे। लेकिन प्रबंधन को बच्चों के बिगड़ जाने का डर लगा तो एक प्रेमी युगल से, जब वे पति-पत्नी बन गए!
पहलगाम के त्राल शहर के रहने वाले तारीक भट मुसलिम एजुकेशनल इंस्टीट्यूट की बाल इकाई में काम करते थे और सुमाया बशीर इसी संस्थान की बालिका इकाई में काम करती थीं। एक ही जगह काम करते हुए दोनों का आपसी संपर्क धीरे-धीरे प्यार में बदल गया तो यह न किसी के लिए हैरानी की बात होनी चाहिए न एतराज की। फिर, प्यार के इस रिश्ते को उन्होंने वहीं तक रहने नहीं दिया, उसे एक दूसरे के प्रति आपसी कर्तव्य और सामाजिक मर्यादा में भी बांधने का फैसला कर लिया। कुछ महीने पहले उनकी मंगनी हुई थी, तब उन्होंने सहकर्मियों को दावत दी थी। एक महीने पहले उन्होंने शादी के मद््देनजर छुट््टी के लिए अर्जी दी थी, और स्कूल प्रबंधन ने छुट््टी मंजूर की थी। फिर शादी के दिन, उन्हें सेवामुक्त क्यों कर दिया गया? उनकी बर्खास्तगी एक निहायत अवैध और क्रूर कार्रवाई है जिसका संज्ञान राज्य के शिक्षा महकमे को लेना चाहिए।
एक निजी संस्थान का मामला कह कर छोड़ देना ठीक नहीं होगा। निजी शैक्षिक संस्थान खोलने के लिए सरकार से अनुमति लेनी पड़ती है। पाठ्यक्रम, पढ़ाई, परीक्षा जैसी बहुत सारी चीजों में सरकार के बनाए नियम-कायदों का पालन करना होता है। फिर, कोई निजी संस्थान ही क्यों न हो, वह अपने कर्मचारी के नागरिक अधिकार का हनन कैसे कर सकता है? लेकिन प्यार के दुश्मनों की कुंठा और क्रूरता का यह कोई पहला या अकेला मामला नहीं है। आॅनर किलिंग और जाति-पंचायतों के गैर-कानूनी फरमानों से लेकर हादिया प्रकरण तक जाने कितने मामले मिल जाएंगे, जिन पर सोचते हुए मन में बरबस यह सवाल उठता है कि तमाम तकनीकी प्रगति और अत्याधुनिक कही जाने वाली चीजों की भरमार के बावजूद समाज कहां खड़ा है? समाज किधर जा रहा है? तंगमिजाजी क्यों बढ़ती जा रही है?