पाकिस्तान से लगी सरहद पर, खासकर नियंत्रण रेखा पर दोनों तरफ के सैनिकों के बीच झड़प हो जाना कोई नई बात नहीं है। ऐसे वाकये अरसे से होते रहे हैं। लेकिन रविवार को जो हुआ उसे एक और झड़प भर मान कर हल्के में नहीं लिया जा सकता। पाकिस्तानी सेना ने पहली बार, शांति काल में- यानी जब घोषित युद्ध की स्थिति न हो- भारतीय सैन्य चौकी को मिसाइल से निशाना बनाया। साथ ही पाकिस्तानी फौज ने जम्मू-कश्मीर के राजौरी और पुंछ जिलों में नियंत्रण रेखा पर भारी गोलाबारी की। इस सब से एक कैप्टन समेत चार भारतीय सैनिक शहीद हो गए। इसके अलावा तीन जवानों सहित पांच लोग घायल हुए हैं। कई बार निश्चित रूप से यह कह पाना मुश्किल होता है कि उकसावा किस तरफ से शुरू हुआ और टकराव के लिए कौन दोषी है। पर पाकिस्तानी फौज की मनमानी इसी से जाहिर है कि उसने भारतीय सैन्य चौकी और भारतीय सैनिकों को लक्ष्य कर गोलीबारी करने से पहले गांवों को भी निशाना बनाया। इससे एक किशोरी और एक जवान घायल हो गए। ऐसे में पाकिस्तान की तरफ से संघर्ष विराम के उल्लंघन में कोई संदेह नहीं रह जाता। इसका कड़ाई से जवाब दिया जाना चाहिए।

वर्ष 2003 में भारत और पाकिस्तान के बीच जो संघर्ष विराम समझौता हुआ था उसका असर एक दशक तक साफ नजर आता रहा। समझौते से पहले के दशक की तुलना में समझौते के बाद के दशक में नियंत्रण रेखा पर झड़प और हिंसा की घटनाएं काफी कम हुर्इं। लेकिन पिछले कुछ बरसों में ऐसी घटनाओं का सिलसिला बढ़ा है और उनकी भयावहता भी बढ़ी है। वर्ष 2016 में पाकिस्तान ने दो सौ इक्कीस बार संघर्ष विराम का उल्लंघन किया था। लेकिन अगले साल यानी 2017 में ऐसी घटनाओं की तादाद आठ सौ साठ पर पहुंच गई। भारतीय सेना ने ऐसी कारगुजारियों का करारा जवाब दिया है। पिछले साल नियंत्रण रेखा पर भारतीय फौज की कार्रवाई में पाकिस्तान के एक सौ अड़तीस सैनिक मारे गए और एक सौ पचपन सैनिक घायल हो गए। पर संघर्ष विराम के उल्लंघन का सिलसिला थमा नहीं है। कहीं ऐसी घटनाओं में बढ़ोतरी, घुसपैठ रोकने के भारत के जोरदार प्रयासों से परेशान पाकिस्तान की हताशा का नतीजा तो नहीं है! जो हो, नियंत्रण रेखा पर बेहद सावधान और किसी भी स्थिति से तत्काल निपटने के लिए तत्पर रहने की जरूरत है।

रूस के ऊफा शहर में शंघाई सहयोग संगठन की बैठक के समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से सीमा पर शांति बनाए रखने के मसले पर बातचीत हुई थी। तय हुआ था कि दोनों तरफ के सैन्य कार्रवाई महानिदेशक समय-समय पर मिलेंगे और कोई भी शिकायत या गलतफहमी आपसी संवाद से दूर करेंगे; बाकी द्विपक्षीय मुद्दों पर भले दुराव और तनाव रहे, सरहद पर शांति बनाए रखी जाएगी। पर ऊफा में बनी इस सहमति की हवा निकल चुकी है। यह साफ दिख रहा है कि पाकिस्तान संघर्ष विराम समझौते को लेकर कतई संजीदा नहीं है। दरअसल, सुरक्षा संबंधी और खासकर भारत से संबंधित मामलों में पाकिस्तान का क्या रुख हो, यह वहां के राजनीतिक नेतृत्व से ज्यादा वहां का सैनिक नेतृत्व तय करता है। कई बार यह भी होता है कि वहां का सैनिक नेतृत्व कहता कुछ है, और उनकी फौज का व्यवहार कुछ और रहता है। ऐसे में, सख्ती से निपटने के अलावा और कोई चारा नहीं बचता