देश भर के मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस, बीडीएस और मेडिकल के पीजी कोर्सेज में दाखिले के लिए एक ही परीक्षा NEET (नेशनल एलिजबिलटी एंट्रेंस टेस्ट) कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को मंजूरी दी थी। अब महाराष्ट्र सरकार और केंद्र सरकार ने इस फैसले का विरोध करते हुए कोर्ट में याचिका लगाई है।
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अब क्या कह रही है केंद्र और महाराष्ट्र सरकार?
>महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फडणवीस ने ट्वीट करके कहा कि आखिरी वक्त पर लिए गए इस फैसले से इस साल काफी संख्या में स्टूडेंट्स को मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा।
>केंद्र का मानना है कि इस फैसले की वजह से बहुत सारा कन्फ्यूजन है। सरकार ने कहा है कि राज्य सरकारों और निजी कॉलेजों को इस साल अलग से एग्जाम कराने का मौका दिया जाए।
>सरकार की ओर से अटॉर्नी जनल मुकुल रोहतगी ने कहा कि दो चरणों में एग्जाम कराने में कुछ व्यवहारिक दिक्कतें होगीं, इसलिए फैसले में बदलाव की जरूरत है। उन्होंने सुझाव दिया है कि दो चरणों के बजाए एक चरण में एग्जाम हो। एक मई वाली परीक्षा को रद्द कर दी जाए।
पूरा मामला क्या है?
>देश के अलग अलग राज्य अलग अलग मेडिकल प्रवेश परीक्षाएं कराते थे। यहां तक कि कुछ संस्थान भी अपनी अलग प्रवेश परीक्षाएं आयोजित करवाते थे।
>मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया ने एक ही परीक्षा कराने का नोटिफिकेशन जारी किया। 2013 में तत्कालीन चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया अलतमश कबीर की अगुआई वाली तीन सदस्यों वाली बेंच ने इस व्यवस्था को खत्म कर दिया। उन्होंने कहा कि एमसीआई को यह फैसला लेने का हक नहीं है।
>इस साल 11 अप्रैल को पांच सदस्यों वाली बेंच ने तीन सदस्यों वाली बेंच के फैसले को वापस ले लिया।
>गुरुवार को कोर्ट ने केंद्र और मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के उस शेडयूल को मंजूरी दे दी, जिसमें इस परीक्षा को दो चरणों में कराने की बात कही गई थी।
>सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले के मुताबिक, अब एनईईटी की परीक्षाएं दो चरणों में होंगी। पहला चरण एक मई को, जबकि दूसरा चरण 24 जुलाई को होगा। नतीजा 17 अगस्त को घोषित होगा।
>पहले फेज में साढ़े छह लाख छात्र शामिल होंगे। NEET का दूसरा फेज़ 24 जुलाई को होगा, जिसमें करीब ढाई लाख छात्र भाग लेंगे।
>फैसले के मुताबिक, एक मई को जो ऑल इंडिया पीएमटी की परीक्षा होने वाली थी, अब उसे ही एनईईटी का पहला फेज मान लिया जाएगा। जो इसमें एग्जाम नहीं दे पाएंगे, वे 24 जुलाई को एग्जाम दे सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा फैसला क्यों लिया?
>जिस याचिका पर कोर्ट ने एनईईटी को मान्यता दी है, उसमें कुछ स्टडीज का हवाला देते हुए कहा गया था कि अलग अलग परीक्षाएं कराने से न केवल पैसे और वक्त की बर्बादी है, बल्कि बच्चों और उनके परिजनों को भी दिक्कतें होती हैं। क्योंकि उन्हें न केवल अलग अलग परीक्षाएं देनी पड़ती हैं, बल्कि फॉर्म भरने में बहुत ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ते हैं।
>मेडिकल प्रवेश परीक्षाओं में भ्रष्टाचार और पेड सीट्स को लेकर आरोप लगते रहे हैं। आरोप हैं कि कुछ कालेज प्रशासन मेडिकल की सीट बेचते हैं। इससे काबिल कैंडिडेट्स को मौका नहीं मिलता।
कौन से राज्य क्यों कर रहे हैं विरोध
>तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, यूपी, महाराष्ट्र।
>तमिलनाडु का कहना है कि उनके यहां प्रवेश परीक्षा की कोई परंपरा ही नहीं रही रही है। वे मेरिट पर ही दाखिला देते रहे हैं। यहां 2007 में ही परंपरा खत्म हो चुकी है।
>कुछ राज्य कह रहे हैं कि आल इंडिया लेवल की परीक्षाएं आम तौर पर हिंदी और अंग्रेजी में होती है। ऐसे में गैर हिंदीभाषी राज्यों के परीक्षार्थी को स्थानीय भाषा का विकल्प न होने पर दिक्कत होगी। इतने कम वक्त में बच्चों को अंग्रेजी में टेस्ट की तैयारियां करने में मुश्किल आएगी।
>कुछ का कहना है कि उनकी अपनी परीक्षाएं कराने की तैयारी पूरी हो चुकी है। इसमें काफी पैसे खर्च हुए हैं। कर्नाटक की ओर से कहा गया कि प्राइवेट मेडिकल कालेज एसोसिएशन की तरफ से 8 मई को टेस्ट रखा गया है। इसमें करीब डेढ़ लाख छात्र भाग लेंगे। इसकी तैयारियों पर 8 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं। इसी तरह की दलीलें यूपी की ओर से भी दी गईं।
>आंध्र प्रदेश का कहना है कि उनके यहां राज्य संयुक्त प्रवेश परीक्षा सिर्फ मेडिकल की नहीं, बल्कि इंजीनियरिंग, एग्रीकल्चर और अन्य स्ट्रीम के लिए भी होती है। ऐसे में उनके लिए एग्जाम कैंसल करना मुमकिन नहीं है।
केंद्र सरकार का क्या रुख है?
>केंद्र मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया इस फैसले से राजी है, वे बस इसे तुरंत लागू करने से हिचकिचा रहे हैं। हेल्थ मिनिस्ट्री ने तो इस फैसले को ऐतिहासिक बताया था।