अयोध्या की विवादित बाबरी मस्जिद विध्वंस की घटना को 25 साल पूरे होने के बाद आज (6 दिसंबर) एक संगठन ने बाबरी विध्वंस को लेकर पोस्टर लगवाए हैं। न्यूज-18 की खबर के अनुसार पोस्टर्स पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) ने लगवाए हैं। संगठन के सदस्य मोहम्मद शाकिफ ने बताया, ‘हमने ये पोस्टर लगवाए हैं क्योंकि बाबरी मस्जिद की आज 25वीं बरसी। है।’ शाकिफ ने आगे कहा, ‘हम किसी को उत्तेजित नहीं कर रहे। पिछले 25 वर्षों से हम उत्तेजित हैं। हम सुप्रीम कोर्ट से इंसाफ चाहते हैं। हमें अदालत पर पूरा भरोसा है।’ ये बात पीएफआई सदस्य ने सीएमएम-न्यूज18 से बाबरी विध्वंस के 25 साल पूरे होने के बाद कही है। संगठन जो पोस्टर्स लगवाए हैं उसमें बाबरी मस्जिद की 25वीं बरसी को ‘धोखे के 25 साल’ बताया गया है। पोस्टर्स में लिखा है कि कहीं हम भूल ना जाएं, बाबरी मस्जिद को दोबारा तामीर करो।
बता दें कि बाबरी मस्जिद विध्वंस की घटना को आज (6 दिसंबर) पूरे 25 साल हो गए। ये एक ऐसी घटना थी जिसने पूरे देशे के धार्मिक सौहार्द को हिलाकर रख दिया था। 6 दिसंबर 1992 को हिंदू कार सेवकों की लाखों की भीड़ ने बाबरी मस्जिद के ढांचे को ढहा दिया। इस घटना के बाद देश के कई हिस्सों में हिंसक घटनाएं हुईं। खुद उत्तर प्रदेश में भी जगह-जगह बड़े पैमाने पर दंगे हुए। इस घटना में सैकड़ों लोगों ने अपने अजीज (प्रिय) लोगों को खो दिया।
#RamMandirDebate — We have put up these posters because today is 25th anniversary of Babri demolition: Mohammad Shakif, Member, PFI to CNN-News18 on 25 Years of Babri Demolition pic.twitter.com/6a7TqUDd1E
— News18 (@CNNnews18) December 6, 2017
#RamMandirDebate — We are not provoking anyone. From the last 25 years, we are agitated. We want justice from Supreme Court and we have full faith on the Court: Mohammad Shakif, Member PFI to CNN-News18 on 25 Years of Babri Demolition
— News18 (@CNNnews18) December 6, 2017
इनमें से एक हैं सुभाष पांडे, जिनके पिता की मौत पुलिस की गोली लगने से हो गई। तब सुभाष महज दस साल के थे जब उन्होंने अपने पिता रमेश पांडे के मृत शरीर को देखा। सुभाष बताते हैं, ‘मैं नहीं जानता की क्या ढांचे (बाबरी मस्जिद) की चोटी पर चढ़ने की कोशिश के कारण उन्हें गोली मारी गई थी या मौत की कोई और वजह थी। ये बात मैं कभी पता नहीं कर सका। मुझे याद के उनके अंतिम संस्कार के दौरान प्रदर्शन किया जा रहा था। उनके शरीर पर गोलियों के निशान थे।’
ऐसे ही एक पीड़ित बाबरी मस्जिद के इमाम हाजी अब्दुल गफ्फार के पोते मोहम्मद शाहिद हैं। जिनके दादा ने 22 दिसंबर, 1949 को बाबरी मस्जिद में आखरी बार नमाज पढ़ाई थी। शाहिद उस दर्दनाक हादसे को याद करते हुए बताते हैं कि कैसे उस हैवान भीड़ ने उनके पिता और चाचा को दौड़ा कर मार डाला। तब शाहिद रोज की तरह अपनी साइकिल पर सवार होकर रोजगार की तलाश में घूम रहे थे।
गौरतलब है कि इससे पहले मंगलवार (5 दिसंबर) को जूलरी डिजाइनर फराह खान अली ने बाबरी विध्वंस को लेकर भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी पर तंज कसा था। उन्होंने ट्वीट करते हुए लिखा, लाल कृष्ण आडवाणी, जिसने अयोध्या की दिशा में अपनी यात्रा के दौरान भारत को विभाजित करने की दिशा में आग लगा दी थी, उसके बाद बाबरी मस्जिद को तोड़ दिया, जिसने भारत का प्रधानमंत्री बनने का सपना देखा था, वह कुछ भी नहीं बल्कि एक बूढ़ा आदमी है जो टूटे हुए सपनों के साथ रहता है। जब आप अच्छा नहीं करते हैं तो आपके साथ भी अच्छा नहीं होता। #बुरा कर्म।’