उर्दू के लेखक सआदत हसन मंटो दुनिया के बड़े कहानीकारों में शुमार किए जाते हैं। उन्होंने ‘टोबा टेक सिंह’, ‘काली सलवार’, ‘खोल दो’ और ‘ठंडा गोश्त’ जैसी अमर कहानियां लिखी हैं। भारत विभाजन से उपजी त्रासदी पर लिखी गई उनकी ऐसी कई कहानियां हमेशा याद की जाएंगी। मंटो का जीवन भी उनकी लिखी कहानियों से कम नाटकीय नहीं रहा। वे अविभाजित भारत में पैदा हुए और विभाजन के बाद पाकिस्तान चले गए, लेकिन वहां भी सुकून की जिंदगी नहीं जी सके। विभाजन के पहले वे हिंदी सिनेमा के नामी लेखकों में से एक थे। पाकिस्तान जाने पर यह सब पीछे छूट गया। उन पर अश्लीलता के आरोप भी लगे। इसी आरोप की वजह से पाकिस्तान में उन पर मुकदमे भी चले, जिसने उन्हें मानसिक रूप से परेशान किया। 42 साल की उम्र में मंटो का निधन हो गया।
साल 2008 में गुजरात दंगों पर आधारित फिल्म ‘फिराक’ बनाने के दस साल बाद अभिनेत्री व निर्देशक नंदिता दास ‘मंटो’ के साथ फिर दर्शकों के सामने हाजिर हैं। लेखक सआदत हसन मंटो की जिंदगी पर आधारित यह फिल्म उनकी कहानियों में निहित दुख व त्रासदी को भी सामने लाती है। मंटो की जीवन यात्रा दिखाने के साथ-साथ नंदिता उस मनोवृत्ति को भी सामने लाती हैं, जिसके कारण देश का विभाजन हुआ। फिल्म मुंबई (तब के बंबई) के उस माहौल से शुरू होती है, जब हिंदी फिल्मों में अशोक कुमार और श्याम अरोड़ा जैसे सितारों का उदय हो रहा था। बंबई में उस वक्त उर्दू अदब की दुनिया में मंटो के अलावा इस्मत चुगताई और कृशन चंदर भी सक्रिय थे। फिर किन वजहों से मंटो को पाकिस्तान जाना पड़ा और वहां उनकी जिंदगी में कैसी-कैसी मुश्किलें आर्इं, सब कुछ फिल्म में उभर कर आया है।
नंदिता दास की यह फिल्म भारतीय उपमहाद्वीप के एक लेखक के द्वंद्व और उस समय के सामाजिक तनाव को तो सामने लाती है, लेकिन अच्छी शुरुआत के बाद आगे बढ़ते हुए बाद में ढीली और सुस्त होती जाती है। फिल्म का अंत काफी कमजोर है। ‘टोबा टेक सिंह’ कहानी से जुड़ा क्लाइमैक्स तो उन दर्शकों को बिल्कुल भी समझ में नहीं आएगा जिन्होंने मंटो की कहानी नहीं पढ़ी है। बायोपिक फिल्में उन दर्शकों के लिए बनती हैं जो उस शख्सियत की असली कहानी नहीं जानते, जिस पर फिल्म आधारित है। लेकिन जो लोग मंटो के बारे में नहीं जानते या जिन्होंने उनकी कहानियां नहीं पढ़ी है, उन्हें फिल्म कुछ कम समझ में आएगी। अपने अभिनय से किरदारों को जीवंत करने वाले नवाजुद्दीन सिद्दीकी मंटो के किरदार में कमजोर नजर आते हैं। वे मंटो की वाकपटुता को सामने लाते हैं, लेकिन उनके शराबीपन को नहीं। फिल्म के एक-एक दृश्य में ऋषि कपूर और जावेद अख्तर भी नजर आए हैं।