भारतीय पुरुष बैडमिंटन कभी किसी परिचय का मोहताज नहीं रहा। अस्सी के दशक में प्रकाश पादुकोण के कारनामे और 2001 में आल इंग्लैंड में पुलेला गोपीचंद की सफलता मील के दो बड़े पत्थर रहे। जब इंडोनेशिया की विश्व बैडमिंटन में तूती बोलती थी तब प्रकाश पादुकोण ने आल इंग्लैंड जीतकर भारत की धाक कायम की। बाद में पुलेला गोपीचंद ने यह करिश्मा किया। इसके बाद भारतीय बैडमिंटन की पहचान महिलाओं से हो गई। सबसे पहले साइना नेहवाल ने 2006 में धमाकेदार प्रदर्शन किया।

उन्होंने 20 से अधिक बड़े अंतरराष्ट्रीय खिताब जीते। 2010 राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण जीतकर देश का नाम दुनिया में रोशन किया। इतिहास उन्होंने तब बनाया जब वे 2012 में ओलंपिक में पदक जीतने वाली पहली भारतीय शटलर बनीं। अगले ही साल 17 साल की पीवी सिंधू ने विश्व बैडमिंटन में कांस्य पदक जीतकर सबका ध्यान खींचा। यह एक भारतीय महिला की पहली उल्लेखनीय उपलब्धि रही और भारत के लिए 30 साल के अंतराल के बाद दूसरी उपलब्धि थी। उन्होंने जल्द ही साइना को पीछे छोड़ दिया और भारतीय बैडमिंटन की नई तारिका और ध्वजवाहक बन गईं।

इस दौरान, पुलेला गोपीचंद अकादमी में इन लड़कियों के साथ प्रशिक्षण ले रहे छह लड़कों ने दोनों की सफलताओं को बारीकी से देखा। उन्होंने लड़कियों की तरह प्रदर्शन करना शुरू किया लेकिन उनकी उपलब्धियों में निरंतरता नहीं आई। साइना से शादी करने वाले पारुपल्ली कश्यप ने 2014 में राष्ट्रमंडल खेल में जीत पाई थी। श्रीकांत ने 2017 में चार सुपर सीरीज खिताब जीतकर सभी को चौंकाया था। वे इन खिताबों की वजह से दुनिया के नंबर एक खिलाड़ी बन गए थे। यह ऐसी उपलब्धि रही, जिसे पीवी सिंधू भी अभी तक हासिल नहीं कर पाई हैं। साई प्रणीत ने 2019 में विश्व कांस्य जीता।
इन कुछ उपलब्धियों को छोड़ दिया जाए तो इनके साथ के पुरुष खिलाड़ियों ने बहुत विश्वसनीय प्रदर्शन नहीं किया।

हालांकि, भारतीय पुरुष खिलाड़ियों की क्षमता में कहीं कोई कमी नहीं है और हकीकत यह है कि उनमें से तीन विश्व मुकाबलों के क्वार्टर फाइनल में भी पहुंचे और उनमें से दो पोडियम पर भी खड़े हुए। पुरुष खिलाड़ियों के प्रदर्शन में बराबर सुधार होता गया। एचएस प्रणय, श्रीकांत और साई 2024 के ओलंपिक के आसपास मजबूत दावेदारों में शुमार हो सकते हैं, जबकि लक्ष्य सेन, प्रियांशु राजावत, प्रणव राव गंडम, मैसनम मीराबा की युवा फसल बहुत अधिक उम्मीद जगाती है।

ये लगभग सभी खिलाड़ी गोपीचंद अकादमी के हैं। हालांकि, यहां यह उल्लेख करना जरूरी होगा कि कई वर्षों के बाद एक और बैडमिंटन अकादमी से एक बड़ा खिलाड़ी उभरा है। इसका नाम है लक्ष्य सेन। गोपीचंद और प्रकाश पादुकोण अकादमी के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा भारतीय बैडमिंटन के लिए शुभ संकेत है।

मुख्य कोच पुलेला गोपीचंद का कहना है कि अब समय आ गया है कि हम इन प्रतिभाओं का बखूबी इस्तेमाल करें। बहुत सारे युवा हैं, जिनमें बड़ी क्षमता है। यह समय है कि हम इन प्रतिभाओं का उपयोग करें और भारतीय बैडमिंटन को शिखर चूमने की ओर ले जाएं। लेकिन हमारे पास इस प्रतिभा की देखभाल करने के लिए कोई प्रणाली नहीं है। हमें इसे जल्द से जल्द स्थापित करने की जरूरत है।

पूर्व अंतरराष्ट्रीय और लक्ष्य सेन के प्रशिक्षक यू विमल कुमार ने कहा कि इस युवा खिलाड़ी का प्रदर्शन सुनहरी उम्मीद जगाता है। विमल ने पुरुष एकल में भी भविष्य के सितारों की पहचान की। विमल ने कहा, लक्ष्य अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धाओं में बेहतर कर रहे हैं। उनका शीर्ष स्तर पर पहचान बनाना निश्चित रूप से एक अच्छा संकेत है। हमारे पास किरण जार्ज, प्रियांशु, मीराबा जैसे खिलाड़ी हैं। वे सभी अच्छे एकल खिलाड़ी हैं जो भारत को विश्व बैडमिंटन में एक प्रमुख शक्ति के रूप में स्थापित कर सकते हैं।

बस जरूरत है इन खिलाड़ियों का निरंतर अच्छा प्रदर्शन करने की। इन युवाओं को अगले साल तक शीर्ष 50 में पहुंचने के लिए सही प्रतियोगिताओं में उतारने की जरूरत है। हाल में खत्म हुई विश्व चैंपियनशिप ने हमारे पुरुष एकल खिलाड़ियों के निराशाजनक प्रदर्शन के तीन साल बाद फिर से आशा जगाई है। मुझे यकीन है कि युवा लक्ष्य बड़ा कारनामा करेंगे। विमल ने कहा कि श्रीकांत ने अपने करिअर के तीन अच्छे साल खो दिए। श्रीकांत का फार्म में लौटना बहुत खुशी की बात है। मुझे लगता है कि समीर वर्मा भी आने वाले वर्षों में अच्छा कर सकते हैं।