हिंदू धर्म में हर मास का अपना विशिष्ट होता है और हिंदू पंचांग के अनुसार हर माह किसी ना किसी देवी या देवता को समर्पित होता है। उस माह में संबंधित देवी-देवता के निमित्त पूजा-अर्चना, तप व्रत और साधना आदि की जाती है। हिंदू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ माह तीसरा माह होता है, जो इस वर्ष 17 मई से शुरू हो रहा है और जिस का समापन 14 जून को ज्येष्ठ पूर्णिमा के साथ हो जाएगा।

धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक इस महीने में सूर्य देव, वरुण देव और हनुमान जी की पूजा विशेष फलदायी मानी गई है। ज्येष्ठ माह तप ,व्रत और साधना का प्रतीक है जिस तरह सोना भट्टी में पककर और निखरता है उसी तरह इस मास में सूर्य की तपती हुई गर्मी में साधक लोग कठोर साधना करके अपने तप को और अधिक निखारते हैं और साधना के श्रेष्ठ और उच्च शिखर पर पहुंचते हैं।

ज्येष्ठ माह में सूर्य का ताप चरम पर होता है। इस वजह से इस माह में जल दान का विशेष महत्व माना गया है और लोग धार्मिक मान्यता के अनुसार जेष्ठ मास में शरबत के प्याऊ लगाकर जल दान करते हैं और राहगीरों की पानी की प्यास बुझाते हैं, पुण्य प्राप्त करते हैं। इसलिए इस महीने में जल संरक्षण पर अत्यधिक जोर दिया जाता है। सूर्य को जल देना हमेशा ही शुभ माना जाता है। परंतु ज्येष्ठ मास में सूर्य को अर्घ्य देने का और भी अधिक धार्मिक महत्व माना गया है।

हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार ज्येष्ठ मास में हनुमानजी की भेंट भगवान राम से हुई थी। इस वजह से इस मास में हनुमानजी की उपासना का काफी महत्व है और उन्हें तुलसी चढ़ाना बहुत अधिक पुण्यदायी और शुभ माना जाता है। इस मास में हर मंगलवार को हनुमान जी की पूजा करने का और भी अधिक महत्व है। सूर्य की अत्यधिक ज्येष्ठता के कारण इस माह को ज्येष्ठ कहा जाता है। ज्येष्ठा नक्षत्र के कारण भी इस माह को ज्येष्ठ कहा जाता है। पूर्णमासी के दिन चंद्रमा ज्येष्ठा नक्षत्र में विराजमान होते हैं इसलिए इस मास को ज्येष्ठ नाम दिया गया। इस महीने सूर्य अत्यधिक तपते हैं और कई बैरागी साधु सर्वाधिक गर्मी वाले इस ज्येष्ठ मास में गाय के गोबर के उपलों का घेरा बना कर और उसे अग्नि से प्रज्जवलित कर उस घेरे के मध्य बैठकर कठोर हठयोग क्रिया करते हैं।

वैज्ञानिक मान्यता के अनुसार जितना अधिक ज्येष्ठ मास सूर्य के तप से तपेग, उतना ही यह विभिन्न कृषि उत्पादों जैसे आम, लीची, जामुन और कटहल जैसे फलों और सब्जियों के लिए अत्यधिक लाभकारी होगा। इस महीने में जितनी अधिक गर्मी पड़ेगी उतनी ही वह मानसून के लिए लाभकारी होगी और मानसून का चक्र नियमित होगा। जाने-माने ज्योतिषाचार्य प्रतीक मिश्रपुरी कहते हैं कि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा दशहरा पर्व मनाया जाता है।

उस दिन गंगा जी हिमालय की शिवालिक चोटियों से होती हुई हरिद्वार में मैदानी क्षेत्र में आई थी, इसलिए हर की पैड़ी पर गंगा दशहरा के दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व माना गया है और यहां पर बहुत बड़ा मेला लगता है। वैसे कोई भी श्रद्धालु गंगा दशहरे के दिन गंगा के किसी भी तट गंगा स्नान करता है तो उसे ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों का आशीर्वाद प्राप्त होता है क्योंकि गंगा ब्रह्मा के कमंडल से निकलकर भगवान विष्णु के चरणों का स्पर्श कर और शिव की जटाओं से होती हुई स्वर्ग लोक से पृथ्वी लोक पर जनकल्याण के लिए आई थीं। गंगा दशहरे के दिन गंगा स्नान करने से जिस प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

गंगा दशहरे के दिन गायत्री जयंती भी मनाई जाती है। इस बार गंगा दशहरा 9 जून को मनाया जाएगा। उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र कुमाऊं में गंगा दशहरा के दिन घरों के मुख्य द्वार में गंगा दशहरे का पतडा या द्वार पत्र एक विशेष मंत्र को अभिमंत्रित करके लगाया जाता है। इस मंत्र के प्रभाव से घर में अग्नि चोरी का भय नहीं रहता है। गंगा दशहरा और उसके अगले दिन निर्जला एकादशी के दिन खरबूजा, पंखा, मिट्टी की बनी हुई सुराई, शरबत, चीनी, जल, शहद के दान करने का विशेष महत्व है।

इस ज्येष्ठ मास में हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार दो महान पर्व श्री गंगा दशहरा और निर्जला एकादशी होते हैं निर्जला एकादशी सबसे बड़ी एकादशी मानी जाती है। उस दिन श्रद्धालु जल ग्रहण नहीं करते और निराहार रहकर भगवान विष्णु की साधना करते हैं। भगवान विष्णु अपने भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण कर उन्हें मोक्ष प्रदान करने की राह दिखाते हैं। निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी भी कहते हैं।

यह पर्व 10 जून को मनाया जा रहा है। इस बार 14 जून को ज्येष्ठ पूर्णिमा की पवित्र तिथि पड़ रही है और इसी दिन ज्येष्ठ मास का समापन हो जाएगा। ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान, दान और व्रत का बहुत महत्व है। ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन ही महान संत कबीर दास की जयंती मनाई जाती हैं। इस तरह इस मास का आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व अत्यधिक है।