प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दूसरी बार शपथ लेने के 26 महीने बाद किए अपने मंत्रिमंडल के पहले फेरबदल में तरजीह उन राज्यों को ही दी है, जहां अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। इनमें वर्ष की शुरूआत में देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के अलावा उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणीपुर हैं। जबकि वर्ष के अंत में गुजरात और हिमाचल प्रदेश में चुनाव होंगे। प्रधानमंत्री बेशक लोकसभा में नुमाइंदगी उत्तर प्रदेश की करते हैं पर उनका गृह राज्य तो गुजरात ही है। मुख्यमंत्री पद से उनके इस्तीेफे के बाद राज्य में 2017 में जो विधानसभा चुनाव हुए थे, उनमें कांगे्रस से भाजपा को खासी चुनौती मिली थी। इस बार प्रधानमंत्री और गृहमंत्री अमित शाह दोनों ही गुजरात को लेकर ज्यादा सतर्क हैं। इसीलिए विस्तार में इस राज्य को खास तरजीह दी गई है।
उत्तर प्रदेश से जिस इकलौते मंत्री संतोष गंगवार का इस्तीफा लिया गया है, वे स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्री थे। पिछडे़ तबके से नाता रखते हैं। आठ बार लोकसभा चुनाव जीतने वाले गंगवार को हटाकर उनकी भरपाई के लिए एक-दो नहीं बल्कि सात मंत्रियों को शपथ दिलाई गई है। यह बात अलग है कि इनमें कैबिनेट मंत्री कोई नहीं बना है। पर जातीय समीकरण और सोशल इंजीनियरिंग का पूरा ख्याल रखा गया है। योगी सरकार के कामकाज को लेकर काफी समय से पिछडों और दलितों की नाराजगी की बात सामने आ रही थी। इसीलिए सात नए शामिल किए गए चेहरों में दो दलित हैं और बाकी पांच पिछड़े। सवर्ण एक भी नहीं। अनुप्रिया पटेल इनमें भाजपा की नहीं अपना दल की नुमाइंदगी करती हैं। वे पिछड़ी कुर्मी जाति से नाता रखती हैं। मोदी के पहले मंत्रिमंडल में भी वे सबसे युवा मंत्री थीं। लेकिन 2019 में उन्हें मंत्री पद नहीं मिला तो वे तभी से नाराज चल रही थीं। उत्तर प्रदेश चुनाव के दौरान उनका रूठना नुकसानदेह हो सकता था, लिहाजा उन्हें फिर मौका देना पड़ा है। यह बात अलग है कि कैबिनेट मंत्री बनने की उनकी हसरत पूरी नहीं हो पाई है।
उत्तराखंड से रमेश पोखरियाल निशंक केंद्र में इकलौते कैबिनेट मंत्री थे। उन्हें हटाकर उनकी जगह उन्हीं की ब्राह्मण जाति के अजय भटट को राज्य मंत्री बनाया गया है। इस सूबे में ब्राह्मण और राजपूत मतदाता ही ज्यादा हैं। मुख्यमंत्री का पद पार्टी ने राजपूत को दे रखा है। लिहाजा केंद्र में मंत्री तो ब्राह्मण को ही बनाना पड़ता। चूंकि अजय भटट लोकसभा में पहली बार आए हैं लिहाजा उन्हें राज्यमंत्री पद से ही संतोष करना पडेगा। इस बदलाव का विधानसभा चुनाव पर कोई असर होगा, कहना मुश्किल है।
पंजाब से किसी को मंत्री नहीं बनाया गया है। इस सूबे में भाजपा का अकाली दल से गठबंधन था। अब पार्टी एकला चलो की राह पर है। चूंकि पार्टी को इस सूबे से ज्यादा उम्मीद भी नहीं है, इस नाते यहां ध्यान नहीं दिया गया है। बेशक इकलौते सिख मंत्री हरदीप सिंह पुरी को तरक्की देकर कैबिनेट मंत्री बना दिया गया है। यह बात अलग है कि इस तरक्की का कारण उनकी विदेश सेवा का अफसर होने की पृष्ठभूमि और योग्यता को माना जा रहा है। हरियाणा के रतन लाल कटारिया का इस्तीफा तो ले लिया गया पर यहां से किसी को उनकी जगह मंत्री नहीं बनाया गया।
गोवा से पहले मनोहर पर्रिकर केंद्र में रक्षामंत्री थे। विधानसभा चुनाव के मद्देनजर इस सूबे से कोई नया मंत्री नहीं बनाया गया है। अलबत्ता मणीपुर के राजकुमार रंजन सिंह को मंत्री बनाकर विधानसभा चुनाव के नजरिए से सूबे की महत्ता बढ़ाई गई है। हिमाचल प्रदेश से अनुराग ठाकुर अभी तक राज्यमंत्री थे। उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाकर चुनाव वाले इस राज्य को भी अहमियत दी गई है। चार लोकसभा सीट वाले छोटे राज्य से और ज्यादा मंत्री बनाने का कोई औचित्य हो भी नहीें सकता था।
गुजरात पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया गया हैै। इस राज्य के किसी मंत्री से प्रधानमंत्री ने इस्तीफा नहीं लिया। अलबत्ता मंसूख मंडाविया और पुरूषोत्तम रूपाला को तरक्की देकर कैबिनेट मंत्री बना मोदी ने बड़ा राजनीतिक संदेश दिया है। इसके अलावा तीन राज्य मंत्री बनाकर इस राज्य की पार्टी की नजर में उपादेयता साबित करने की कोशिश की गई है। इनमें पाटीदारों, दलितों और पिछड़ों सभी के बीच संतुलन कायम करने का प्रयास भी है। पंजाब को छोड़कर 2022 में बाकी जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव होंगे, सभी जगह भाजपा की सरकारें हैं। लोकसभा के 2024 के चुनाव के मद्देनजर और पश्चिम बंगाल में जीत का परचम फहराने में सफल नहीं होने को देखते हुए भाजपा इन राज्यों में से किसी को भी गंवाना नहीं चाहेगी। सबसे ज्यादा अहमियत उसके लिए उत्तर प्रदेश और गुजरात की है। इसीलिए मंत्री मंडल के विस्तार में इन्हीें दोनों राज्यों को सबसे ज्यादा तरजीह दी गई है।