मदन गुप्ता सपाटू

21 दिसंबर को बादल नहीं छाए तो चांदनी रात में चांद के आसपास दो और सितारों का अद्भुत और खूबसूरत मिलन देखने लायक होगा। ये दो ग्रह हैं गुरु ओैर शनि जो 17 जुलाई 1623 के बाद इस दिन इतने करीब होंगे कि दोनों के मध्य दूरी मात्र 0.1 डिग्री की रह जाएगी। इन्हें नंगी आखों से भी देखा जा सकता है और दूरबीन या टेलीस्कोप से भी। दोनों ग्रह एक दूसरे के गले मिलते दिखेंगे, हालांकि 800 साल पहले भी ऐसा दृश्य दिखाई दिया था परंतु उस समय इनकी आपसी दूरी 13 डिग्री थी। अब यह नजारा 15 मार्च 2080 में फिर दिखाई देगा।

यह क्रिसमस के आस पास की दुर्लभ खगोलीय घटना होगी जिसे जनमानस में क्रिसमस स्टार भी कहा जाएगा और खगोलशास्त्र में डबल प्लेनट। ज्योतिष में यह गुरु- शनि का महासंयोग कहलाएगा। ज्योतिष के अनुसार गुरु और शनि दोनों 10 वीं अर्थात मकर राशि में चल रहे हैं। गुरु इस समय नीच हैं यानी कमजोर हैं और शनि अपनी ही राशि में बलवान हैं। यदि लोक भविष्य की बात करें तो गुरु जो सरकार को दर्शाता है वह लगभग हर देश में कमजोर पड़ती दिख रही है।

शनि जो जनता का भी कारक ग्रह है, वह इस समय बली होकर जनता को सरकारों पर हावी बना रहा है… चाहे भारत हो या पाकिस्तान हो या अन्य कोई देश। इन दोनों ग्रहों की जुगलबंदी से राजनीतिक दलों में बिखराव, जन आंदोलनों में आक्रोश, ठंड के बरसों पुराने टूटते कीर्तिमान, आर्थिक मंदी आदि परिलक्षित होंगे। गुरु-शनि जब तक दूर नहीं होते, यह गतिरोध बना रहेगा।

चूंकि गुरु नवंबर से मकर की नीच राशि में कमजोर हो गया है और शनि अपनी ही मकर राशि में बलवान हो गया है, इसलिए सरकार को नर्म होना पड़ेगा। धीरे-धीरे कुछ संशोधन होंगे। अभी किसान आंदोलन चलेगा। दोनों ओर से दबाव बनेगा। आपसी टकराव चलता रहेगा।

अप्रैल में 6 तारीख से जब गुरु शनि से अलग होंगे तब जाकर कोरोना और किसान समस्या का ठीक से हल निकलेगा। परंतु इससे पहले फरवरी में जब पांच ग्रह मकर राशि में होंगे तब एक बार फिर ऐसा जन आक्रोश किसी भी कारण से देखने को मिल सकता है। शनि न्यायाधीश की भूमिका निभाएंगे और न्यायालयों को जनता की समस्याओं को सुलझाने के लिए बार-बार आगे आना पड़ेगा।

धनु और मीन राशियों के स्वामी गुरु हैं तो मकर व कुंभ के शनि हैं। ये चारों राशियों के लोगों पर इस गुरु-शनि के महासंयोग का प्रभाव व्यक्तिगत रुप से भी पड़ सकता है। धनु, मकर तथा कुंभ राशि वाले वैसे भी साढ़ेसाती के प्रभाव में हैं। ऐसे जातकों को क्रमश: ओम गुरुवाय नम: तथा ओम श्नैश्चरायै नम: का पाठ करते रहना चाहिए।

दिसंबर संक्रांति ने प्राचीन काल से आज तक दुनिया भर की संस्कृतियों में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस साल, दिसंबर में ही 19 तारीख को श्रीराम विवाहोत्सव श्रीपंचमी, 25 को मोक्षदा एकादशी, गीता जयंती, क्रिसमस तथा 29 को मार्गशीर्ष पूर्णिमा पड़ रही हैं। भारत में 25 दिसंबर को यीशू के जन्म दिवस के कारण धार्मिक तौर पर इसे बड़ा दिन कहा जाता है जबकि दिन छोटे ही होते हैं। यहां तक

आज साल का सबसे छोटा दिन और सबसे लंबी रात

21 दिसंबर, साल का सबसे छोटा दिन और सबसे लंबी रात होगी। पृथ्वी के सबसे पास होने की वजह से सूर्य की मौजूदगी आठ घंटे ही रहती है, जिसके अस्त होने के बाद रात 16 घंटों की साल की सबसे लंबी रात होती है। सूर्य इस दिन कर्क रेखा से मकर रेखा की ओर उत्तरायण से दक्षिणायन की ओर प्रवेश करता है।

इसे विंटर सोलस्टाइस कहा जा रहा है। विंटर सोलस्टाइस का मतलब है कि हर साल 21 दिसंबर साल का सबसे छोटा दिन होता है। इसकी वजह है कि सूरज से धरती काफी दूर रहती है और चांद की रोशनी आज के दिन ज्यादा देर तक पड़ती रहेगी। इस दिन के बाद से ही ठंड बढ़ जाती है। इस दिन सूर्य पृथ्वी पर कम समय के लिए उपस्थित होता हैं तथा चंद्रमा अपनी शीतल किरणों का प्रसार पृथ्वी पर अधिक देरी तक करता हैं। इसे दिसंबर दक्षिणायन कहा जाता है।

पृथ्वी अपने अक्ष पर 23.5 डिग्री झुकी हुई हैं जिसके कारण सूर्य की दूरी पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध से अधिक हो जाती हैं और सूर्य की किरणों का प्रसार पृथ्वी पर कम समय तक हो पाता हैं। वहीं विंटर सोलस्टाइस के ठीक विपरीत 20 से 23 जून के बीच समर सोलस्टाइस भी मनाया जाता है। तब दिन सबसे लंबा और रात सबसे छोटी होती है तो वहीं 21 मार्च और 23 सितंबर को दिन और रात का समय बराबर होता है। इस दिन सूर्य की किरणें मकर रेखा के लंबवत होती हैं और कर्क रेखा को तिरछा स्पर्श करती हैं। इस वजह से सूर्य जल्दी डूबता है और रात जल्दी हो जाती है।

उत्तरी गोलार्ध में 23 दिसंबर से दिन की अवधि बढ़ने लग जाती है। इस दौरान उत्तरी ध्रुव पर रात हो जाती है, जबकि दक्षिणी ध्रुव पर 24 घंटे सूर्य चमकता है। सूर्य 21 मार्च को भूमध्य रेखा पर सीधा चमकेगा, इसलिए दोनों गोलार्ध में दिन-रात बराबर होते हैं। सोलस्टाइस एक लैटिन शब्द है, इसका मतलब स्थिर सूरज होता है।

आज के दिन सूर्य कैप्रिकॉन सर्कल में पहुंचता है। दिन के धीरे-धीरे बड़े होने की शुरुआत 25 दिसंबर के बाद होने लगती है। आज चांद की किरणें धरती पर काफी देर तक रहती हैं और समय से पहले ही सूरज अस्त हो जाता है।