शास्त्रीय कलाओं को सीखने और सिखाने में गुरुओं का योगदान अतुलनीय है। इसकी झलक इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित ‘उत्तराधिकार’ समारोह में दिखी। इसका आयोजन रजा फाउंडेशन की ओर से किया गया। समारोह की शुरुआत तीन अक्तूबर को कथक नृत्य से हुई। कथक नृत्य गुरु शोवना नारायण की शिष्या शिवानी ने नृत्य पेश किया। समारोह की दूसरी संध्या में भरतनाट्यम की गुरु सरोजा वैद्यनाथन के शिष्य हिमांशु श्रीवास्तव ने शिरकत की। अगली संध्या यानी छह अक्तूबर को आरुषी मुद्गल ओडिशी नृत्य प्रस्तुत करेंगी। नृत्यांगना आरुषी मुद्गल ने बहुत छुटपन से अपनी गुरु माधवी मुद्गल के सानिध्य में हैं। उन्होंने ओडिशी नृत्य सिर्फ सीखा भर नहीं है, बल्कि उनके अंग-प्रत्यंग में नृत्य की गतियां और भंगिमा सहज समाहित हैं। आज के समारोह में आरुषी गणेश स्तुति पेश करेंगीं। यह राग मुलतानी में निबद्ध होगी। इसके अलावा, वह अष्टपदी ‘रासे हरि’ पर अभिनय पेश करेंगीं। उन्होंने अपनी प्रस्तुति में संत सालवेग की रचना ‘आहे नील सैल’ और भैरवी पल्लवी पेश करना भी तय किया है।

युवा कथक नृत्यांगना शिवानी कई सालों से गुरु शोवना नारायण के संसर्ग में हैं। वह अपनी गुरु के साथ कई सामूहिक नृत्य प्रस्तुति कर चुकी हैं। वे कई समारोह में एकल नृत्य करती रही हैं। इसलिए, उनके अनुभव का अपना एक संसार बन गया है। इसी अनुभव और अपनी तालीम को उन्होंने अपनी प्रस्तुति ‘लीला’ का आधार बनाया। नृत्यांगना शिवानी मानती हैं कि हमारा जीवन जन्म से पूर्व और मृत्यु के बाद अंधकारपूर्ण होता है। अपने जीवन को संवारने के लिए हमलोग प्रेम और खुशी की तलाश करते हैं। जिंदगी की इसी खोज को उन्होंने कामदेव आराधना से आरंभ किया। इसके आरंभ में कामदेव नामाष्टकम पर आधारित कामदेव की वंदना थी। इसके अगले अंश में श्लोक और रचना ‘आप हमें प्रदान करें प्रीति’ को शामिल किया गया।

कथक नृत्यांगना शिवानी ने लखनऊ घराने की तकनीकी बारीकियों को तीन ताल में पेश किया। विलंबित लय में थाट, आमद व तिहाइयों में शृंगार और अभिसारिका नायिका के भावों को दर्शाया। वहीं मध्य में विद्यापति की रचना ‘धनी-धनी चलु अभिसार’ के जरिए अभिसार यानी संकेत स्थल पर नायिका के पहुंचने के अंदाज को बयान किया। फिर, दु्रत लय में बादल के बरसने, बिजली के चमकने और मोर के नृत्य को प्रस्तुत किया। उन्होंने अपने नृत्य में हजरत अमीर खुसरो की रचना ‘सखी पिया को न देखूं’ के माध्यम से नायिका के भावों को विवेचित किया। साथ ही, अपनी गुरु की नृत्य रचना ‘मेरा सफर’ के कुछ अंशों को भी नृत्य में शामिल किया। इसमें शायर व कवि सरदार जाफरी के कुछ नज्मों पर नृत्य प्रस्तुत किया। नृत्य के अंत में राग भैरवी पर आधारित तराना था। इस पर कथक के तकनीकी पक्ष को उभारा गया। तिहाई, चक्रदार तिहाई, सवाल-जवाब का अंदाज समाहित था। शिवानी के नृत्य में सौम्यता और परिपक्वता नजर आती है। यह उनकी सालों की मेहनत और लगन का परिणाम है।