किसान खुशी मना सकते हैं। सरकार ने आखिरकार माना कि किसान भारत के अंग हैं, कि कृषिक्षेत्र गहरे संकट में है, और किसानों को मदद की दरकार है। अनेक टिप्पणीकार, खासकर अशोक गुलाटी, कई महीनों से यह बात कहते रहे हैं। किसानों के ध्यान में यह बात थी कि भारतीय जनता पार्टी ने लागत से डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य देने का अपना वादा पूरा नहीं किया। मैंने इस ओर ध्यान खींचा था कि 2015-16 में न्यूनतम समर्थन मूल्य में हुई बढ़ोतरी बहुत मामूली थी। तमाम सांसद उस वक्त भौंचक रह गए जब प्रधानमंत्री ने मनरेगा के प्रति अपनी हिकारत जाहिर की, जो उनके मुताबिक ‘कांग्रेस सरकारों की नाकामी का स्मारक’ था। आलोचकों ने मनरेगा के लिए अपर्याप्त आबंटन पर सरकार को चेताया। सर्वेक्षण बताते हैं कि 2015-16 में कृषि मजदूरी में बहुत मामूली बढ़ोतरी हुई, जिससे संकट और गहरा हुआ है।

प्रधानमंत्री एफडीआई, मेक इन इंडिया, व्यापार को आसान बनाने आदि पर अक्सर और बड़े चाव से बोलते रहे, मगर कृषि पर उन्होंने बहुत कम ध्यान दिया, शायद इसे उन्होंने कृषिमंत्री के लिए छोड़ दिया। हालांकि कृषिमंत्री ने न कुछ किया न कुछ कहा, और लगभग इक्कीस महीने सरकार में रहते हुए भी वे काफी हद तक अनजान ही बने रहे हैं। (वे चाहें तो मानव संसाधन विकास मंत्री से कुछ सीख सकते हैं, जिनकी विद्यार्थियों और शिक्षकों के बीच भले पैठ न हो, पर जिन्होंने ‘राष्ट्रवादी और देशभक्त’ जमात में खास जगह बना ली है।) नतीजतन ‘सूट बूट की सरकार’ होने का लेबल सरकार पर चस्पां रहा है, और इस कारण से कुछ न कुछ करना जरूरी हो गया था। मैं पक्के तौर पर नहीं कह सकता कि ‘किसान समर्थक, ग्रामीण भारत का हिमायती’ बजट लाने का विचार कैसे आया होगा। मंशा जो भी रही हो, मैं कृषिक्षेत्र की समस्याओं से मुखातिब होने के सरकार के कदम का स्वागत करता हूं।

हिसाब लगाएं: ‘वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने’ के प्रधानमंत्री के घोषित लक्ष्य को दोहराना वित्तमंत्री के लिए हिम्मत की बात रही होगी। हमें बताया गया कि बजट इस दिशा में पहला कदम है। सो, इस बजट में ऐसा क्या है? हिसाब लगाएं। छह साल में आय दोगुनी होने का मतलब है कि किसानों की सालाना औसत आय-वृद्धि लगभग बारह फीसद होनी चाहिए। क्या यह संभव है, एक ऐसे देश में, जहां कुल कृषिभूमि का 66 फीसद हिस्सा मानसून पर निर्भर है और जहां सिंचाई को लेकर आश्वस्त नहीं रहा जा सकता। इसके अलावा, वर्ष 2014-15 में कृषिक्षेत्र की वृद्धि दर -0.2 फीसद और 2015-16 में 1.1 फीसद रही। यह कल्पना करना मुश्किल है कि कृषिक्षेत्र की वृद्धि दर या किसानों की आय में बारह फीसद का उछाल आएगा और बाहर फीसद की वृद्धि साल-दर-साल बनी रहेगी।

कृषि आय दो बातों पर निर्भर करती है- उत्पादकता और कीमत। कोई यह दावा नहीं कर सकता कि ऐसे उपाय जारी हैं जो धान, गेहूं, गन्ने या दालों की उत्पादकता में छह साल में नाटकीय बढ़ोतरी कर दें। कुछ चुनिंदा क्षेत्रों में उत्पादकता बढ़ सकती है, या उपज वहां के किसानों की आय में करीब तीन फीसद का इजाफा कर सकती है। फिर बात कीमत की है। क्या सरकार इन फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में हर साल बारह फीसद की बढ़ोतरी करेगी? बजट भाषण में या आबंटनों में इसका कोई साफ जवाब नहीं है।

असलियत जाहिर: बजट भाषण में एक ही जवाब है, और वह है, कृषि तथा किसानों के कल्याण के मद में कुल आबंटन। यह जबर्दस्त इजाफा है, वर्ष 2015-16 में 15,809 करोड़ रुपए (आरई) से 35,984 करोड़ रुपए (बीई)। सरकार ने चकरा देने वाले इस खेल को कैसे साधा? बस आबंटन को इधर से उधर करके। अल्प अवधि के कृषि ऋण पर ब्याज-सबसिडी को वित्त मंत्रालय से हटा कर कृषि, सहकारिता व किसान कल्याण विभाग के खाते में डाल दिया गया! इस स्थानांतरण को हटा कर देखें, तो राजग सरकार के कार्यकाल में कृषि आबंटन इस प्रकार रहा है:

2014-15 – 19,255 करोड़ रु.
2015-16 (आरई) – 15,809 करोड़ रु.
2016-17 (बीई) – 20,984 करोड़ रु.

कुछ भी असाधारण नहीं है। हुआ बस यह है कि आबंटन में 2015-16 में जो कटौती की गई थी उसे 2014-15 के स्तर पर बहाल कर दिया गया। अगर दो साल में रुपए की कीमत में आए फर्क को हिसाब में लें, तो वास्तव में आबंटन में बढ़ोतरी नहीं हुई है।
जिस एक कदम को ‘लीक तोड़ने वाला’ कहा जा रहा है, वह है प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, जिसके लिए 5,500 करोड़ रुपए का आबंटन किया गया है। बजट दस्तावेज खुद बताते हैं कि यह योजना मूल रूप से ‘राष्ट्रीय फसल बीमा योजना है जिसमें फसल बीमा की मौजूदा योजनाएं शामिल’ हैं। पुरानी योजनाओं में से हरेक के पीछे यह मकसद था कि फसल बीमा को किस तरह अधिक लक्ष्य-केंद्रित तथा अधिक कारगर बनाया जाए। हो सकता है कि फसल बीमा योजना, जो पहले की ऐसी सभी योजनाओं को समेटे हुए है, किसानों के लिए ज्यादा लाभकारी सिद्ध हो। मैं तो यही उम्मीद करता हूं। फिर भी यह जरूर कहूंगा कि इसमें कुछ ऐसा नहीं है जिसे लीक तोड़ने वाला कहा जा सके।

गैर-कृषि आय: किसान की आय बेहतर करने का रास्ता यह है कि उसकी गैर-कृषि आय बेहतर की जाए। अधिकतर किसानों के पास, दिहाड़ी मजदूरी के काम को छोड़ कर, गैर-कृषि आय का कोई निर्भर-योग्य जरिया नहीं है। एक किसान परिवार को गैर-कृषि आय तभी हासिल होगी, जब खेती से बाहर रोजगार उपलब्ध हों। सड़क निर्माण और सिंचाई व जल संरक्षण जैसे सार्वजनिक कार्यक्रमों के जरिए ऐसे रोजगार सृजित किए जा सकते हैं, पर वे पर्याप्त नहीं होंगे। इससे ज्यादा कुछ तभी हो सकता है जब छोटे, मझोले और बड़े उद्योगों तथा सेवाओं में निजी निवेश बढ़े। पिछले दो साल में इस तरह के निवेश में कमी का सिलसिला रहा है, फिर पिछले तीन साल से सूखे या सूखे जैसे हालात ने संकट को और बढ़ाया है। वर्ष 2022 तक किसानों की आमदनी दुगुनी करने का लक्ष्य वास्तव में प्रशंसनीय है। लिहाजा, किसानों को मांग करनी चाहिए कि सरकार इस बारे में एक ठोस योजना पेश करे। वरना, यह एक दूसरा चुनावी जुमला ही साबित होगा।