भारत की आर्थिक वृद्धि दर को लेकर रेटिंग एजेंसियों ने एक बार फिर अपने अनुमान घटा दिए हैं। फिच का नया अनुमान कह रहा है कि वित्त वर्ष 2022-23 में भारत की आर्थिक वृद्धि दर साढ़े आठ फीसद तक रह सकती है। पहले यह अनुमान नौ फीसद से ऊपर का था। पिछले हफ्ते मूडीज ने भी आर्थिक वृद्धि का अनुमान साढ़े नौ फीसद से घटा कर 9.1 फीसद कर दिया। इसी तरह एसऐंडपी ने वृद्धि दर 7.8 फीसद रहने की बात कही। मौजूदा हालात को देखते हुए सबके अपने-अपने अनुमान हैं।
वैसे भी घरेलू और अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों और बाजारों की दशा को देखते हुए रेटिंग एजंसियों के अनुमानों में घट-बढ़ होते रहना नई बात नहीं है। पर इन अनुमानों से एक बात साफ है कि अर्थव्यवस्था के सामने अभी चुनौतियां बड़ी हैं। इसकी पुष्टि राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय यानी एनएसओ की ओर से जारी चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही (अक्तूबर-दिसंबर 2021) की वृद्धि दर से भी होती है जो महज 5.4 फीसद रही थी। इन आंकड़ों से देश के औद्योगिक उत्पादन से लेकर अन्य आर्थिक गतिविधियों तक का पता चलता है। जाहिर है, अभी अर्थव्यवस्था गति नहीं पकड़ पा रही है।
भारत की आर्थिक वृद्धि को लेकर रेटिंग एजंसियों के ताजा अनुमान महंगे होते कच्चे तेल पर टिके हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल एक सौ दस डालर प्रति बैरल से ऊपर ही चल रहा है। इस बात की भी कोई संभावना नजर नहीं आती कि इस संकट का जल्द ही कोई समाधान निकल आएगा। ऐसे में कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस के दाम कहां जाकर रुकेंगे, कोई नहीं जानता। सरकार भी कह रही है कि महंगे र्इंधन की चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार रहना है।
भारत में पेट्रोल, डीजल से लेकर रसोई गैस और सीएनजी तक के दाम बढ़ते जा रहे हैं और इसका असर हर क्षेत्र में बेहताशा महंगाई के रूप में देखने को मिल रहा है। थोक महंगाई और खुदरा महंगाई चिंताजनक स्तर पर हैं। औद्योगिक उत्पादन से लेकर खाने-पीने तक की चीजों की लागत अगर बढ़ रही है तो इसका बड़ा कारण र्इंधन की महंगाई है। ऐसी हालत में रेटिंग एजंसियों का आकलन गलत नहीं लगता कि इसका सीधा असर आर्थिक वृद्धि पर पड़ेगा। दरअसल, महंगाई की मार से आम आदमी बुरी तरह त्रस्त है। लोगों के लिए खर्च चला पाना मुश्किल हो रहा है। रोजगार की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। आमद हो नहीं रही। देश की आबादी का बड़ा हिस्सा गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा है। ऐसे में आर्थिक गतिविधियां सामान्य स्थिति में कैसे आ पाएंगी, यह बड़ा सवाल है।
राहत की बात फिलहाल इतनी ही है कि अर्थव्यवस्था कोरोना महामारी और ओमीक्रान के संकट से उबरने लगी है। हालांकि जनवरी और फरवरी में सेवा क्षेत्र के पीएमआइ सूचकांक में मंदी रही। प्रमुख क्षेत्रों का उत्पादन भी रफ्तार पकड़ने लगा है। कोयला, सीमेंट, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, बिजली, इस्पात और उवर्रक जैसे क्षेत्रों में तेजी का रुख बनता दिख रहा है। लेकिन इन सब पर महंगे कच्चे तेल का असर तो पड़ने ही लगा है। महंगाई बढ़ने का सिलसिला यहीं से शुरू हो जाता है। रिजर्व बैंक पहले ही कह चुका है कि 2022-23 में भी महंगाई दर पांच फीसद के ऊपर ही रहने की संभावना है। मतलब साफ है कि अर्थव्यवस्था के लिए महंगाई गंभीर संकट के रूप में सामने है। ऐसे में आर्थिक वृद्धि दर पर असर पड़ने की आशंका से इनकार कैसे किया जा सकता है!