राजधानी क्षेत्र में सम-विषम के दूसरे चर ण के करीब दस दिन बीतने पर ज्यादातर लोगों का अनुभव नकारात्मक ही मिला और जिन लोगों को कार से उतारने की जुगत में दिल्ली सरकार थी वो सरकार की इस योजना से परेशान हैं। उनका कहना है कि प्रदूषण कम करना है तो सरकार पहले दिल्ली को साफ करे फिर सम-विषम करे।
लोगों ने सम-विषम की नापसंदगी को लेकर सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था ठीक नहीं होना भी एक बड़ा कारण गिनाया। लोगों की राय में पहले दिल्ली की सड़कों और गलियों से गंदगी दूर करने की जरूरत है। इन जरूरतों के पूरा होने के बाद दिल्ली में सम-विषम सफल हो सकता है। लोगों का कहना है कि सम और विषम नंबर के नाम पर रोजना कुछ गाड़ियों को चलने से रोका जा सकता है, लेकिन कार से चलने वाले लोग परेशानी नहीं झेल सकते। इसी कारण दिल्ली की सड़कों पर टैक्सी, कैब, मोटरसाइकिल, निजी बसें और सम-विषम नंबर की गाड़ियां कम नहीं दौड़ रही हैं और सम-विषम में सहूलियत के लिए लोगों ने नई गाड़ियां भी खरीदी हैं।
मंगलवार को एक सर्वे के तहत जब दिल्ली के लोगों से सम-विषम पर प्रतिक्रिया लग गई तो कनाट प्लेस पर एक घड़ी दुकान की मालकिन वंदना सिक्का का कहना था सरकार जिस वर्ग पर सम-विषम लगाकर कार का उपयोग कम कराना चाहती थी, उस वर्ग के हरेक घर में गाड़ियों की संख्या बढ़ी है। मेरे घर में दो विषम नंबर की कार थी। पिछले दिनों एक सम नंबर की कार खरीदी। मेरे घर में 77 साल की सास हैं और वो भी कामकाजी हैं। घर में एक सोलह साल के लड़के के अलावा हम दो औरते हैं। सास को सम-विषम में किसी आॅटो, टैक्सी या कैब के सहारे काम पर जाने के लिए नहीं छोड़ सकती। इसी तरह पड़ोस में भी आठ से दस लोगों ने नई कार ली है। सम-विषम के दौरान ही देखा जाए तो गाड़ियों की खरीदी बढ़ी है और ब्लैक में नंबर 20-20 हजार रुपए में बिक रहे हैं।
राजीव चौक पर कार से आए देवेश ने बताया कि सम-विषम से लगता है कि उनके पैर बंध गए हैं। सम-विषम के चक्कर हर दूसरे दिन कैब से आॅफिस आना पड़ता है लेकिन कई बार किसी से मिलने जाने या किसी काम से निकले में बहुत परेशानी होती है। मुझे नहीं लगता कि प्रदूषण या जाम पर किसी तरह का असर पड़ा है। जबकि आॅफिस से छूटने के बाद शाम को आइटीओ को पार करने में जितना पहले समय लगता था आज भी उतना ही समय लगता है।
इसी तरह पंजाबी फिल्मों के निर्माता सब्बी का कहना है कि दिल्ली में जहां-तहां गंदगी के ढेर लगे हैं। पालिथिन और धूल सड़क पर पसरी पड़ी है। सबसे ज्यादा प्रदूषण तो सड़क पर पड़ी धूल से होती है। उनका कहना है कि पहले दिल्ली की सफाई करो फिर सम-विषम लागू करो। पेरिस में सम-विषम लागू है लेकिन वहां की सड़के बिल्कुल साफ हैं और परिवहन की व्यवस्था अच्छी है। केजरीवाल हरेक बसों के पिछे विज्ञापन में अपना फोटो लगाकर प्रचार कर रहे हैं। मुझे दिल्ली में क्लाइंट से मिलने जाना होता है तो मैं टैक्सी या कैब से नहीं जाता क्योंकि ‘शो-अप’ करना होता है। इसलिए मैं तो अपनी कार से ही जाता हूं। भले ही आते-जाते चालान कटे। पिछले दस दिनों में मेरा चार बार चालान कट चुका है।
लॉ की छात्रा रति कौशिक का कहना था कि सरकार ने सम-विषम को लागू तो किया लेकिन सार्वजनिक परिवहन की व्यवस्था नहीं बनाई। जिससे कार से नहीं आने पर बहुत परेशानी उठानी पड़ती है। दिल्ली में सुरक्षा की हालत सबको पता है। महिलाएं कारपूल करने में सुरक्षित नहीं हैं। मैं तो इसी कारण अपने पड़ोसियों के साथ भी कारपूल नहीं करती।