प्रमोद भार्गव

हर दस साल में की जाने वाली जनता-जनार्दन की गिनती में करीब बीस लाख कर्मचारी जुटते हैं। छह लाख गांवों, पांच हजार कस्बों, सैकड़ों नगरों और दर्जनों महानगरों के रहवासियों के द्वार-द्वार दस्तक देकर जनगणना का कार्य करना कर्मचारियों के लिए जटिल होता है। यह काम तब और बोझिल हो जाता है जब किसी कर्मचारी दल को उसके स्थानीय दैनंदिन कार्य से दूर कर उसे दूरदराज के गांवों में भेजा जाता है।

जनगणना 2021 में नागरिकों को गणना में शामिल होने की एक बेहतर और अनूठी आनलाइन सुविधा दी गई है। भारत सरकार के केंद्रीय गृह मंत्रालय ने भारतीय नागरिकों को आनलाइन स्व-गणना का अधिकार देने के लिए नियमों में बदलाव किए हैं। जनगणना (संशोधन)-2022 के अनुसार परंपरागत तरीके से तो जनगणना घर-घर जाकर सरकारी कर्मचारी करेंगे ही, लेकिन अब नागरिक स्व-गणना के माध्यम से भी अनुसूची प्रारूप भर सकता है।

इसके लिए पूर्व नियमों में ‘इलेक्ट्रानिक फार्म’ शब्द जोड़ा गया है, जो सूचना प्रौद्योगिकी कानून 2000 की धारा-दो की उप धारा (एक) के खंड-आर में दिया गया है। इसके अंतर्गत मीडिया, मैग्नेटिक, कंप्यूटर जनित माइक्रोचिप या इसी तरह के अन्य उपकरण में तैयार कर भेजी या संग्रहित की गई जानकारी को इलेक्ट्रानिक फार्म में दी गई जानकारी माना जाएगा। यानी एंड्रायड मोबाइल से भी अपनी गिनती दर्ज की जा सकेगी, जो कि आजकल घर-घर में उपलब्ध है। इस आनलाइन प्रविष्टिी के अलावा घर-घर जाकर भी जनगणना की जाएगी।

इसके लिए भारत के महापंजीयक और जनगणना आयुक्त द्वारा दस निदेशकों की नियुक्ति भी कर दी गई है। याद रहे, यह जनगणना 2021 में होनी थी, लेकिन कोरोना महामारी के चलते संभव नहीं हो पाई। अब इस आनलाइन गणना के साथ आगे बढ़ाने की पहल की जा रही है, जिससे भारतीय नागरिकों की गिनती जल्द से जल्द हो सके। यदि यह प्रयोग सफल रहता है तो संभव है 2031 की गणना पूरी तरह आनलाइन हो!

इसमें कोई दो राय नहीं कि आनलाइन प्रयोग अद्वितीय हैं। लेकिन देश की जनता के स्थायी और निरंतर गतिशील पंजीकरण के दृष्टिगत अब जरूरी है कि ग्राम पंचायत स्तर पर जनगणना की जवाबदेही सौंप दी जाए। गिनती के विकेंद्रीकरण का यह नवाचार जहां दस साला जनगणना की बोझिल परंपरा से मुक्त होगा, वहीं देश के पास प्रतिमाह प्रत्येक पंचायत स्तर से जीवन और मृत्यु की गणना के सटीक व विश्वसनीय आंकड़े मिलते रहेंगे।

जनगणना की यह तरकीब अपनाना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि तेज भागती यांत्रिक व कंप्यूटरीकृत जिदंगी में सामाजिक, आर्थिक व शैक्षिक बदलाव के लिए सर्वमान्य जनसंख्या के आकार व सरंचना का दस साल तक इतंजार नहीं किया जा सकता। वैसे भी भारतीय समाज में जिस तेजी से लैंगिक, रोजगारमूलक और जीवन स्तर मे विषमता बढ़ रही है, उसकी बराबरी के प्रयासों के लिए भी जरूरी है कि हम जनगणना की परंपरा में आमूलचूल परिपर्तन लाएं।

जनसंख्या के आकार, लिंग और उसकी आयु के अनुसार उसकी जटिल सरंचना का कुछ ज्ञान न हो तो आमतौर पर अर्थव्यवस्था के विकास की कालांतर में प्रगति, आमदनी में वृद्धि, खाध पदार्थों व पेयजल की उपलब्धता, आवास, परिवहन, संचार, रोजगार के संसाधन, शिक्षा, स्वास्थ्य व सुरक्षा के पर्याप्त उपायों के इजाफे के पूवार्नुमान लगा पाना मुश्किल होता है। जनसंख्या में वृद्धि के अनुपात में ही लोकसभा और विधानसभा सीटों को परिसीमन के जरिए बढ़ाया जाता है। जनगणना में निरंतरता इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि देश व दुनिया में जनसंख्या वृद्धि विस्फोटक बताई जा रही है।

संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक दुनिया की जनसंख्या लगभग सात सौ करोड़ हो चुकी है। 2050 में यह आंकड़ा दस अरब तक पहुंच सकता है। इस आबादी का पचास प्रतिशत से भी ज्यादा हिस्सा महज नौ देशों चीन, भारत, अमेरिका, पकिस्तान, बांग्लादेश, नाइजीरिया, कांगो, इथोपिया और तंजानिया में होगा।

जनसंख्या वृद्धि दर का आकलन करने वाले विशेषज्ञों का मानना है कि भारत में प्रति वर्ष एक करोड़ साठ लाख आबादी बढ़ जाती है। इस दर के अनुसार हमें अपने देश की करीब एक अरब तीस करोड़ लोगों की एक निश्चित जनसंख्या प्रारूप में गिनती करनी है, ताकि व्यक्तियों और संसाधनों के समतुल्य आर्थिक व रोजगारमूलक विकास का खाका खींचा जा सके। जनसंख्या का यह आंकड़ा अज्ञात भविष्य के विकास की कसौटी पर खरा उतरे उसका मूलाधार वैज्ञानिक तरीके से की गई सटीक जनगणना ही है।

हर दस साल में की जाने वाली जनता-जनार्दन की गिनती में करीब बीस लाख कर्मचारी जुटते हैं। छह लाख गांवों, पांच हजार कस्बों, सैकड़ों नगरों और दर्जनों महानगरों के रहवासियों के द्वार-द्वार दस्तक देकर जनगणना का कार्य करना कर्मचारियों के लिए जटिल होता है। यह काम तब और बोझिल हो जाता है जब किसी कर्मचारी दल को उसके स्थानीय दैनंदिन कार्य से दूर कर उसे दूरदराज के गांवों में भेजा जाता है।

ऐसे हालात में गिनती की जल्दबाजी में वे मानव समूह छूट जाते हैं, जो आजीविका के लिए मूल निवास स्थल से पलायन कर चुके होते हैं। ऐसे लोगों में ज्यादातर अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजातियों के लोग होते हैं। बीते कुछ सालों में आधुनिक व आर्थिक विकास की अवधारणा के चलते इन्हीं जाति समूह के करीब चार करोड़ लोग विस्थापन के दायरे में हैं। इनसे रोशन गांव तो अब बेचिराग हैं, लेकिन इन विस्थापितों का जनगणना के समय स्थायी ठिकाना कहां है, जनगणना करने आए दल को यह पता लगाना मुशकिल होता है।

इसलिए जरूरी है कि जनगणना की प्रक्रिया के वर्तमान स्वरूप को बदल एक ऐसे स्वरूप में तब्दील किया जाए, जिससे इसकी गिनती में निरंतरता बनी रहे। इसके लिए न भारी भरकम संस्थागत ढांचे की जरूरत है, न ही सरकारी अमले की। केवल गिनती की केंद्रीयकृत जटिल पद्धति को विकेंद्रीकृत करके सरल करना है। गिनती की यह तरकीब ऊपर से शुरू न होकर नीचे से शुरू होगी।

देश की सबसे छोटी राजनीतिक व प्रशासनिक इकाई ग्राम पंचायत है, जिसका त्रिस्तरीय ढांचा विकास खंड व जिला स्तर तक है। हमें करना सिर्फ इतना है कि तीन प्रतियों में एक जनसंख्या पंजी पंचायत कार्यालय में रखनी है। इसी पंजी की प्रतिलिपि कंप्यूटर में दर्ज जनसंख्या प्रारूप पर भी अंकित हो। जिन ग्राम पंचायतों में बिजली व इंटरनेट की सुविधाएं हैं, वहां इसे जनसंख्या संबंधी वेबसाइट से जोड़ कर इन आंकड़ों का पंजीयन सीधे अखिल भारतीय स्तर पर हो सकता है। जैसा कि अब आनलाइन माध्यमों से अपनी गिनती दर्ज करा सकेंगे।

परिवार को इकाई मान कर संरपच, सचिव और पटवारी को यह जबावदेही सौंपी जाए कि वे परिवार के प्रत्येक सदस्य का नाम व अन्य जानकारियां जनसंख्या प्रारूप के अनुसार इन पंजियों में दर्ज करें। इस गिनती को सचित्र भी किया जा सकता है। चूंकि ग्राम पंचायत स्तर का प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे को बखूबी जानते हैं, इसलिए इस गिनती में चित्र व नाम के स्तर पर भ्रम की स्थिति निर्मित नहीं होगी, जैसा कि मतदाता सूचियों और मतदता परिचय-पत्र में देखने को मिलती हैं। गिनती की इस प्रक्रिया से कोई वंचित भी नहीं रहेगा, क्योंकि जनगणना किए जाने वाले जन और जनगणना करने वाले लोग स्थानीय हैं। गांव में किसी भी शिशु के पैदा होने की जानकारी और किसी भी व्यक्ति की मृत्यु की जानकारी तुरंत पूरे गांव में फैल जाती है, अत: इस जानकारी को अविलंब पंजी में दर्ज किया जा सकेगा।

इस तरह से सभी विकास खंडों के आंकड़ों की गणना कर जिले की जनगणना प्रत्येक महीने होती रहेगी। जिला वार गणना के डाटा को प्रदेश स्तर पर सांख्यिकीय कार्यालय में इकट्ठा कर प्रदेश की जनगणना का आंकड़ा भी प्रत्येक महीने सामने आता रहेगा। प्रदेश वार जनसंख्या के आंकड़ों को देश की राजधानी में जनसंख्या कार्यालय में संग्रहीत कर हर महीने देश की जनगणना का वैज्ञानिक व प्रामाणिक आंकड़ा मिलता रहेगा। देश के नगर व महानगर वार्डो में विभक्त हैं, इसलिए वार्ड वार जनगणना के लिए गिनती की उपरोक्त प्रणाली ही अपनाई जाए। इस गिनती में जितनी पारदर्शिता और शुद्धता रहेगी, उतनी किसी अन्य पद्धति से संभव नहीं है।