अगर डोनाल्ड ट्रम्प अमेरिकी समाज का दर्पण हैं, तो हिलेरी क्लिंटन संस्थागत राजनीति का आईना हैं। दोनों मिल कर सारी दुनिया को अमेरिकन वे आॅफ लाइफ (जीवन-शैली) का वह अक्स दिखा रहे हैं, जिसे देख कर सभी अचंभित हैं। हां, इससे पहले भी असली अमेरिका की यदाकदा झलक मिलती रही है, पर यह पहली बार है कि हमाम का पर्दा पूरी तरह से उठ गया है। अमेरिका खुद कुछ खिसिया-सा गया है। उसको उम्मीद न थी कि उसके शीर्ष नेता सत्ता पाने के लिए एक-दूसरे पर कीचड़ उछालने पर इस कदर अमादा हो जाएंगे।
ट्रम्प और क्लिंटन नवंबर में होने वाले राष्ट्रपति पद के चुनाव के उम्मीदवार हैं। ट्रम्प को रिपब्लिकन पार्टी ने नामांकित किया है, तो क्लिंटन को डेमोक्रेटिक पार्टी ने। मजे की बात यह है कि डेमोक्रेटिक पार्टी का चुनाव चिह्न गधा है। गधा पार्टी का चुनाव चिह्न इसीलिए बना, क्योंकि 1828 के राष्ट्रपति पद के निर्वाचन में पार्टी की तरफ से एंड्रू जैक्सन उमीदवार थे और लोग उनके लोक-लुभावन चुनावी वादों को गधेपन के विशेषण से विभूषित करते थे। जैक्सन ने गधेपन को गंभीरता से लिया और गधे का चित्र अपने चुनावी पोस्टरों पर छपवा दिया।
पर गधा डेमोक्रेटिक पार्टी का चुनाव चिह्न तब बना, जब थॉमस नस्ट नाम के कार्टूनिस्ट ने 1870 में हार्पर वीकली में गधे को उन लोगों के प्रतीक के रूप में दर्शाया, जो अमेरिकन सिविल वार के खिलाफ थे। लोगों को कार्टून खूब पसंद आया और 1880 आते-आते गधा डेमोक्रेटिक पार्टी से पूरी तरह जुड़ गया। वह आम आदमी का प्रतीक बन गया।
रिपब्लिकन पार्टी का हाथी भी थॉमस नस्ट की ही देन है। उन्होंने हार्पर वीकली (1874) में एक गधे को शेर की खाल पहने दिखाया, जो चिड़ियाघर के अन्य जानवरों को डरा रहा है। जीव विहार के एक जानवर हाथी को उन्होंने रिपब्लिकन वोट का कैप्शन दिया। बस यहीं से हाथी रिपब्लिकन पार्टी से जुड़ गया। डेमोक्रेट्स के गधे के सामने वह आज भी चिंघाड़ रहा है। हाथी मस्त होता है। कभी-कभी मदमस्त भी हो जाता है। अपने ढंग से चलता है और जिस जंगल से गुजरता है उसमें तोड़-फोड़ करता जाता है। चाहे कोई भी भौंके उसे परवाह नहीं होती। दूसरी तरफ गधे को बोझ उठाने और हांके जाने से परहेज नहीं है। वह मेहनती होता है, पर अड़ियल भी। कभी-कभी दुलत्ती भी मार देता है। आज के चुनाव के परिप्रेक्ष्य में दोनों ही चिह्नों की खूबियां उम्मीदवारों पर कुछ-कुछ रेखांकित हो रही हैं।
दरअसल, ट्रम्प क्या हैं और क्यों हैं इस पर माइकल डी-अंतोनियो अपनी नई किताब द ट्रुथ अबाउट ट्रम्प में लिखते हैं कि ट्रम्प- हम और आप का ही रूप हैं- विकराल रूप। उनका कहना है कि ट्रम्प का व्यक्तित्व असल में एक आम अमेरिकी का व्यक्तित्व है। उनके अनुसार सामान्य अमेरिकी सिर्फ पैसे से प्यार करता है और वह जो कुछ भी सहज भाव से करता हुआ दिखता है, उसके पीछे धन प्राप्ति ही एकमात्र प्रेरणा होती है। धन पिपासा ही अमेरिका के लोगों के जीवन की धुरी है। ट्रम्प भी उसी धुरी पर घूमते हैं।
माइकल मानते हैं कि धनवान व्यक्ति ही अमेरिकियों के हमेशा से हीरो रहे हैं। अभी तक सेठ लोग अपनी चारदिवारी में किसी अन्य को नहीं घुसने देते थे। उनका एक क्लब था- रईस लोगों का क्लब- जिसे दूर से देखा और पूजा तो जा सकता है, पर छुआ और महसूस नहीं किया जा सकता। ट्रम्प ने इस व्यवस्था को अचानक बदल दिया। वे खुद बाहर आ गए और फिर मीडिया को क्लब की चकाचौंध से परिचित कराया। 1980 से ही डोनाल्ड ट्रम्प अपने पैसे और शानो-शौकत की डींगें हांक-हांक कर आम लोगों को इस कदर प्रभावित करते रहे हैं कि वे जनता के सबसे पसंदीदा व्यक्तियों की फेहरिस्त में लगातार बने रहे हैं।
ट्रम्प ने कैसे पैसे कमाए, इससे अमेरिकी जनता को कोई मतलब नहीं है। उनको तो सिर्फ इससे मतलब है कि उन्होंने बहुत पैसे कमाए हैं। परोक्ष रूप से ट्रम्प वह सब साकार करते हैं, जो कि हर अमेरिकी नागरिक की मूलभूत इच्छा है। लोग उनकी इज्जत करते हैं, यह जानते हुए भी कि ट्रम्प के पिता ने विश्व युद्ध के सैनिकों के लिए सरकारी आवास योजना में बड़ा घोटाला किया था। बेटे ने भी उसी से प्रेरणा लेकर कई बार निवेशकों से लेकर बैंकों तक से बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी की और हर बार साफ बच निकले।
माइकल की किताब की विशेष बात यह है कि ट्रम्प ने जो कुछ किया, उसको वे ट्रम्प के निजी फैसले नहीं मानते, बल्कि यह कहते हैं कि उनके निर्णय उस समाज के संदर्भ में हैं और थे, जो शेखीबाजों, अहंकारी आत्म प्रचारियों, महत्त्वाकांक्षी सेलेब्रिटी बने लोगों को पुरस्कृत करता है। ट्रम्प वास्तव में अपने समय और समाज की देन हैं और अगर किसी को उन पर गुस्सा आता है तो वह पहले अपने पर गुस्सा करे और फिर अपने समाज पर। माइकल मानते हैं कि डोनाल्ड ट्रम्प आम अमेरिकी का ही बड़ा-सा प्रतिबिंब हैं, और कुछ नहीं।
दूसरी तरफ हिलेरी क्लिंटन सत्ता का संस्थागत रूप हैं। वे पॉवर क्लब की विशिष्ट सदस्य हैं। ट्रम्प के विपरीत वे पैसे से सत्ता तक नहीं पहुंची हैं, बल्कि सत्ता के जरिए अपनी महंगी जरूरतें पूरी करती हैं। पैसा ट्रम्प को ड्राइव करता है। सत्ता क्लिंटन को। वैसे क्लिंटन आम लोगों की पहली पसंद नहीं हैं। आम अमेरिकी के लिए पैसा ही पावर है।
पर दूसरा सच यह भी है कि जब तक सत्ता मजबूत नहीं होगी, तब तक पैसा कमाने के अवसर भी मजबूत नहीं होंगे। यह बात अमेरिका का पॉवर क्लब समझता है और इसीलिए कॉरपोरेट से लेकर प्रभावशाली राजनीतिक विचारक तक क्लिंटन के साथ खड़े हैं। उनके लिए प्रभाव, चाहे राष्ट्रीय स्तर पर हो या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, सर्वोपरि है।
डेमोक्रेटिक पार्टी प्रभाव पर अड़ी हुई है- अपने चुनाव चिह्न की तरह। वह दुनिया भर का बोझ उठाने को तैयार है। रिपब्लिकन पार्टी हाथी के माफिक अमेरिकी जंगल को तोड़ते-फोड़ते पॉवर पॉलिटिक्स के धरातल को रौंद रही है। दोनों अपने-अपने अहंकार में चूर हैं।
इस गधे और हाथी के टकराव में किसकी जीत होगी यह अभी तय नहीं है, पर इतना तय जरूर है कि आखिरकार उल्लू जनता को ही बनना है।

