क्या राज है अगस्ता वेस्टलैंड के सौदे में, जिसने कांग्रेस पार्टी के आला नेतृत्व को इतना परेशान कर रखा है? इतना ज्यादा कि पहले सोनिया गांधी मुखातिब हुर्इं टीवी पत्रकारों से पिछले सप्ताह और उसके बाद उनके वे राजदार सामने आए, जो अभी तक कभी टीवी पर दिखे नहीं हैं। अहमद पटेल हैं तो सोनिया गांधी के खास साथी, लेकिन इतने सायों में छिप कर काम किया है उन्होंने कि दिल्ली में कई पत्रकार हैं (जिनमें मैं भी हूं), जिन्होंने उनकी आवाज तक नहीं सुनी है। पिछले हफ्ते लेकिन टीवी पर ऐसे छाए रहे अहमद साहब कि कभी हिंदी में बोलते दिखे, तो कभी अंगरेजी में और जब भी बोले उनका एक ही संदेश था: सोनिया गांधी को इस सौदे में घसीटना गलत है।
मुझे सबसे ज्यादा ताज्जुब हुआ जब सोनियाजी ने टीवी पत्रकारों के सामने कहा कि ‘मुझे किसी का डर नहीं।’ क्या इसलिए कि वे जानती हैं हमसे ज्यादा कि न उनको कुछ होने वाला है और न ही अन्य कांग्रेसी नेता पकड़े जाएंगे अगस्ता वेस्टलैंड से रिश्वत लेने के इल्जाम में। फोन टेप करने से इटली के न्यायाधीशों को पता लगा कि इस इतालवी कंपनी के एक अफसर ने कहा था अपने किसी साथी से कि भारत में रिश्वत देते वक्त पकड़े जाने की कोई संभावना नहीं है, क्योंकि भारतीय जांच संस्थाएं बहुत नालायक हैं। इस बात में सच भी है और झूठ भी। सच यह है कि अक्सर ये किसी बड़ी राजनीतिक हस्ती को जेल भेजने में सफल नहीं होती हैं, लेकिन झूठ यह है कि वे नालायक हैं। पीठ के पीछे हाथ बांध कर उनको जांच करने न भेजा जाता और उस तरह राजनेताओं के घरों में छापे मारने की इजाजत होती उन्हें जो कारोबारियों और बॉलीवुड के सितारों के घरों में छापे मारने की इजाजत है, तो नालायक बिल्कुल न दिखतीं। जरूर साबित कर पातीं कि राजनेताओं और आला अधिकारियों के पास धन ऐसा है, जो उनकी आमदनी से मेल नहीं खाता।
हमारे राजनेता और आला अधिकारी ऐसे छापों से इतने सुरक्षित हैं कि बेझिझक अपनी दौलत का प्रदर्शन करते फिरते हैं। महंगी विदेशी गाड़ियों में घूमते हैं, उनकी बीवियां पहनती हैं बड़े-बड़े हीरे और जब छुट्टी मनाने जाते हैं विदेशों में अपने परिवार को लेकर तो नेताजी या बाबू साहब ठहरते हैं ऐसे फाइव स्टार होटलों में, जहां एक रात का खर्चा लाखों में होता है। ऐसा क्यों करते, अगर उनको डर होता पकड़े जाने का? सोनियाजी खुद इलाज करवाने जाती हैं किसी ऐसे देश में, जिसका नाम तक किसी को मालूम नहीं है और न ही हमको मालूम है कि वे किस उद्योगपति के प्राइवेट विमान में विदेश जाती हैं। तो उनको क्यों होने वाला है किसी का डर?
इस बार चूंकि भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा है कि उनको संविधान से डरना चाहिए, कानून से डरना चाहिए, तो हो सकता है कि उनके खिलाफ थोड़ी-बहुत कार्रवाई होगी, लेकिन नरेंद्र मोदी अगर सच्चे मन से भ्रष्टाचार को समाप्त करने का प्रयास करना चाहते हैं, तो बात सोनिया गांधी तक खत्म नहीं होनी चाहिए। तहकीकात होनी चाहिए नए सिरे से इस पूरे सौदे की, ताकि जनता को मालूम पड़े कि भ्रष्टाचार के कितने रास्ते खुले हैं हमारे राजनेताओं के सामने और इनको बंद करना कितना मुश्किल होगा। भ्रष्टाचार देश की रगों में ऐसा फैल चुका है कि सरपंच से लेकर भारत सरकार के ऊंचे ओहदों तक देखने को मिलता है। यह बात सच है कि मोदी के आने के बाद वे ऊंचे स्तर पर घोटाले, जो सोनिया-मनमोहन के शासनकाल में थे अभी तक सामने नहीं आए हैं, लेकिन नीचे झांक कर प्रधानमंत्री देखेंगे अगर तो उनको वही पुरानी, बुरी आदतें दिखेंगी जो दशकों से चली आ रही हैं।
भ्रष्टाचार के चक्रव्यूह से निकलना है तो एक-दो कदम उठाने होंगे, जो बहुत जरूरी हैं। पहला कदम होना चाहिए भ्रष्टाचार को उन सरकारी महकमों में खत्म करना, जिनका काम है चौकीदारी। मुंबई के उद्योग जगत में घूमते हैं टैक्स विभाग के ऐसे धनवान अधिकारी कि उनके रहन-सहन और उद्योगपतियों के रहन-सहन में उन्नीस-बीस का ही फर्क है। यह बात इतनी आम हो गई है कि जब कोई भ्रष्ट अधिकारी पकड़ा भी जाता है, तो खबर अखबारों के किसी अंदरूनी हिस्से में छपती है।
भ्रष्ट अफसरों में डर पैदा तब होगा जब हमारी न्याय प्रणाली में परिवर्तन आएगा। वर्तमान स्थिति ऐसी है कि वे जानते हैं कि अगर उनके खिलाफ मुकदमा भी चला, तो न्याय होने तक उनकी उम्र गुजर सकती है। राजनेता भी जानते हैं कि उनको न्याय से कोई डर नहीं होना चाहिए, सो जब भी पकड़े जाते हैं, या तो कहते हैं कि उनके खिलाफ राजनीतिक साजिश हो रही है उनको बदनाम करने की या फिर कहते हैं कि जांच कराई जाए। जानते हैं कि जांच होने में लग सकते हैं कई वर्ष और उसके बाद मामला पहुंचता है किसी न्यायालय तक। अगस्ता वेस्टलैंड ने अच्छा मौका दिया है मोदी सरकार को इन चीजों में परिवर्तन लाने का। सो, बहुत जरूरी है कि इस मौके को सोनिया गांधी के पीछे लगने पर न गंवा दिया जाए। जिन्होंने रिश्वत ली है इस इतालवी कंपनी से उनको सजा होनी चाहिए बेशक, लेकिन रास्ता न्याय का होना चाहिए, सियासत का नहीं।
ऐसे मौकों पर जब सिर्फ सियासी फायदा लेने की कोशिश होती है तो नतीजा वही होता है जो किसी दूसरे रक्षा सौदे में किसी दूसरे प्रधानमंत्री का हुआ था। याद है विश्वनाथ प्रताप सिंह का वह चुनावी वादा बोफर्स के चोरों को नब्बे दिनों में पकड़ने का? याद है अगर तो यह भी याद होगा आपको कि प्रधानमंत्री बनने के बाद इस वादे को उन्होंने कितनी जल्दी भुला दिया था।

