भाजपा का एक सवाल: रिश्वत देने वाला जेल में है, लेकिन लेने वाला कहां है? एक चैनल पर एक इतालवी पत्रकार कहती है: अगस्ता वेस्टलैंड की कहानी पर इतालवी सैनिकों की कहानी भारी पड़ रही है! एक चैनल पहला सवाल जोरदार तरीके से उठाता है, दूसरी खबर का जिक्र तक नहीं आने देता! राज्यसभा में दूसरा दिन भी सुबहमण्यम स्वामी के नाम रहा। कांग्रेस के गुलाम नबी आजाद ने चुटकी ली: सड़क की भाषा बोलते हैं स्वामी! कितनी बार कार्रवाई से निकालेंगे?

एक अंगरेजी चैनल हर शाम कुछ ऐसा हल्ला मचाता है कि लगता है, कांग्रेस अब गई, तब गई। बहसों में भाजपा प्रवक्ताओं के नए-नए तर्क सिद्ध कर देते हैं कि कांग्रेस तो ‘सीरियल घोटालेबाज’ है। एक दिन एंकर कहता है कि मेरे पास ऐसे दस्तावेज हैं, जो गोपनीय थे, जो अगस्ता वाले ले गए। कांग्रेस के पल्लम राजू इस मल्लयुद्ध में आकर फंस जाते हैं। वे सिर्फ इतना कहते हैं कि मुझे टेंडर के बारे में जानकारी है। एंकर कहता है कि उसके पास वे सारे गोपनीय कागजात हैं। यह सिर्फ रिश्वत लेने का नहीं, यह तो राष्ट्र की सुरक्षा को दांव पर लगाना है। यह राष्ट्र की सुरक्षा में सेंध है।

एंकर बताता है कि यह तो डील ही जाली थी। अगस्ता तो टेंडर के लिए क्वालीफाइड ही नहीं था। क्या कांग्रेस को टेंडर करना भी नहीं आता? मंत्री कहता है: मैं सड़क पर हूं। मैंने ये कागज नहीं देखे। एंकर कागज दिखाता रहता है, सड़क पर खड़ा मंत्री कैसे यकीन करे कि क्या है?
उधर एनडीटीवी चिदंबरम के बेटे कार्ती की फर्म के ओवरप्राइस्ड शेयरों को लेकर पूछ रहा है कि धन कहां गया? कार्ती कहते हैं कि उनको नहीं मालूम! एनडीटीवी का एंकर कह रहा है कि अब तक अगस्ता कांड कांग्रेस के पीछे पड़ा था, अब कार्ती के धन की कहानी भी पीछे पड़ जानी है!
टाइम्स नाउ ने कांग्रेस का कार्टून ही बना दिया।

अगस्ता वेस्टलैंड के रिश्वत कांड पर बुलाने पर भी जब कांग्रेस का कोई प्रवक्ता सात दिन तक नहीं आया, तो कांग्रेस को लज्जित करने के लिए टाइम्स नाउ के एंकर ने उसके लिए एक खाली कुर्सी छोड़ दी और जब भी वक्त मिलता वह उस खाली कुर्सी पर कटाक्ष करने से नहीं चूकता! उसका हल्ला इतना जोरदार रहा कि आखिरकार सोनिया को खुद कैमरों के आगे आना पड़ा। उनने कहा कि वे किसी से नहीं डरतीं। ये आरोप बेबुनियाद हैं, उनके चरित्र हनन की कोशिश है। दो साल से सरकार इस पर चुप बैठी है।
सुरजेवाला ने जोरदार तरीके से बोला: झूठ के पांव नहीं और सांच को आंच नहीं। हम पीएम मोदीजी से पूछेंगे कि वे कब तक दोहरी चाल से अपने पापों पर परदा डालेंगे? इस बीच अमित शाह ने सोनियाजी पर चुटकी ली कि वे किसी से नहीं डरतीं, तो बताएं कि रिश्वत के पैसे किसने लिए?

टाइम्स नाउ का एंकर अगर अपने इस हल्ले पर न इतराए तो और कौन इतराए? शायद उसी का दबाव रहा कि जो कभी पब्लिक में नहीं आते उन अहमद पटेल को अपना पक्ष रखने आना पड़ा। टाइम्स नाउ का एंकर बार-बार पूछता रहा कि एपी का मतलब अहमद पटेल है क्या? अहमद पटेल कहते रहे कि वो वे नहीं हैं। और वे अपनी लीडर, अपनी पार्टी और अपने को डिफेंड करने आए हैं। इसके बाद अहमद पटेल एनडीटीवी पर सफाई देने आए और फिर इंडिया टुडे पर भी आए! वे बार-बार कहते रहे कि सरकार दो साल तक इस केस पर बैठी क्यों रही, जांच करा ले, सच पता कर ले! यह क्या कि इस तरह के आरोप लगा कर चरित्र हनन करती रहे? अहमद पटेल ने साफ किया कि वे सिर्फ अपने और कांग्रेस के और अपने नेता के बचाव में बोलने आए हैं! लाख सफाई देते रहिए, जिसे चिपकाना था, चिपका गया!

कांग्रेस के पक्ष में शुरू-शुरू में जो बोलने आए वे एनसीपी और जेडीयू के प्रवक्ता थे। वे एक ही बात कहते रहे कि आप चैनल पर हल्ला करने की जगह जांच करो और सजा दो, चैनलों पर आरोप लगाते रहने से क्या होगा? और चैनल जानते हैं कि आरोपों को सच की तरह बता कर उछालो, जितना उछालोगे उतना ही आरोप बिकेंगे और आपका चैनल हिट होगा। इसीलिए सच की चिंता में कोई दुबला नहीं होता।
यह चिपकाने की कला है। आपके पास आरोप हैं तो उनको इस तरह से मारो कि निशाने पर चिपकें। आप मारते जाइए, कुछ तो चिपकेगा। और अगर कुछ चिपका तो उसे ही छुड़ाने में बंदों की उम्र निकल जाएगी, इसलिए आप चिपकाते जाओ, देर-सबेर कुछ तो चिपकेगा! अपने कुछ चैनल इस पुण्यकर्म में खुद को गुलेल की तरह पेश करते हैं!

अपने समाज की कलह-प्रियता के क्या कहने? सलमान खान का नाम आया ही था कि सब लठ्ठ लेकर पिल पड़े। सलमान को पहले ब्रांड एंबंसेडर कहा गया। फिर जब दबाव पड़ा तो उनको गुडविल एंबेसडर बना दिया गया और मिल्खाजी ने सलमान के चयन पर आपत्ति क्या कर दी कि सलमान के पिताश्री ही मुकदमा लड़ने आ गए और सीधे डायलाग मार दिए कि बालीवुड ने मिल्खा को नई जिंदगी दी! आदरणीय पिताश्री, अगर मिल्खा नहीं दौड़े होते तो आप किसकी फिल्म बनाते? अहसान मानिए कि अपनी कहानी का मिल्खा ने सिर्फ एक रुपया लिया, करोड़ों तो बॉलीवुड ने बनाए!

लगता है कि अपने कन्हैयाजी को भी खबर बनाने की बीमारी लग गई है। ऐसी भी क्या नजाकत कि किसी ने टच क्या कर दिया कि एकदम टच मी नॉट हो गए। भगतसिंह की पदवी ली है तो कामरेडजी जरा-सी बात पर रोते क्यों हो? क्या भगतसिंह कभी रोए?अपनी नहीं तो उनकी खातिर ही सोचो।

इस बार आॅड-इवन एकदम आइसक्रीम बन कर आई। एक मास्टरनीजी अपनी कोलगेटी मुसकान मार कर चॉकलेटी बच्चों से आड-इवन खेलने लगीं और आश्चर्य कि सब बच्चे फर्स्टक्लास लाए, तब मास्टरनीजी ने अपनी कोलगेटी बत्तीसी दिखाते हुए पूछा: बच्चे तो जानते हैं। क्या आप भी जानते हैं कि आड-इवन का खेल कितना मजेदार है? दूसरा विज्ञापन आड-इवन के खेल को क्लासीकल संगीत और पॉप म्यूजिक के बीच कारपूल कराने वाला बना कर दिखाता था, जबकि जमीन पर इस बार आॅड-इवन के खेल ने न धूल कम की, न धुआं!

लीजिए हो गया पंगा। चैनलों ने अचानक पाया कि भगतसिंह को आतंकवादी लिखा गया है, तुरंत एक अंगरेजी चैनल इंटलेक्चुअलाया। दो इतिहासकारों ने कहा कि रिवोल्यूशनरी टेररस्टि के वे माने नहीं, जो लिए जा रहे हैं। भइए! इन दिनों मीनिंग लेने वाले का माने है, लिखने वाले के माने कहां होते हैं?