पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी सही मायने में अजातशत्रु थे। एक बार जिससे मिले उसे अपना बना लिया। अपने 93 साल के जीवन में करीब पैंसठ साल राजनीति में पूरी तरह से सक्रिय रहे। पिछले कुछ सालों से बीमार रहने के कारण सक्रिय राजनीति से दूर हो गए थे। 1999 के लोक सभा चुनाव में लखनऊ से उनके सामने समाजवादी पार्टी ने फिल्म अभिनेता राज बब्बर को उम्मीदवार बनाया और बब्बर के करीबी एक व्यवसायी और मीडिया घराने ने उन्हें हराने के लिए पूरी ताकत झोंक दी। चुनाव में वाजपेयी जीते और प्रधानमंत्री बने। कोई और नेता होता तो उस व्यवसायी घराने को परेशान करता। लेकिन वाजपेयी ने उस घराने के प्रमुख को उसके बाद मिलने का समय दिया। इतना ही नहीं तब वे लखनऊ के साथ गांधीनगर से चुनाव लड़ रहे थे। वहीं चुनाव लखनऊ के तीन दिन बाद था। वे उस मीडिया घराने के ब्यूरो प्रमुख समेत दो पत्रकारों को अपने साथ पूर्व तय कार्यक्रम के तहत अपने साथ चार्टर प्लेन से गांधी नगर ले गए। गुजरात के तब के मुख्यमंत्री सुरेश मेहता ने उस व्यवसायी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करवाई थी ताकि वाजपेयी प्रसन्न हों। उन्होंने ब्यूरो प्रमुख से मजाकिया लहजे में पूछा कि क्या यहां भी हरवाने की तैयारी है? फिर उनको चिंता हुई कि कहीं उनके साथ आने से उसकी नौकरी पर संकट न हो तो साथ में रहे दूसरे वरिष्छ पत्रकार को उनकी चिंता करने को कहा।
वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय बताते हैं कि वाजपेयी को जमीनी समझ थी। आपात काल के आखिरी दिनों में लोकनायक जय प्रकाश नारायण और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से सलाह करके वे चुनाव करवाने में लग गए और सफल हुए। उन्हें पता था कि अगर चुनाव हुआ तो इंदिरा गांधी चुनाव हार जाएंगी। लेकिन तब यह मुद्दा बड़ा ही संवेदनशील था। उन्हें यह पता चला कि अटल जी से मिलने ओम मेहता आए हैं, तो वे उनके घर गए और उनसे पूछा तो अटल जी ने कहा कि वे मिलने नहीं आए बल्कि मैं मिलने गया और हम जल्दी चुनाव चाहते हैं। इसके लिए अगर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के लोगों को सरकार से खेद जताना पड़े तो ऐसा करना चाहिए। राम बहादुर राय उनसे सहमत न होते हुए नाराज हो कर लौटे लेकिन वाजपेयी का आकलन सही था। हवाला घोटाले पर राम बहादुर राय ने काफी लिखा, उसे उजागर किया। रामलीला मैदान में वाजपेयी को इस पर बोलना था तो उन्होंने विस्तार से उनसे इसकी जानकारी ली। राय के मित्र दिवंगत सांसद लालमुनी चौबे को एक संघ के स्थानीय प्रचारक के कहने पर तब के बिहार के संगठन मंत्री ने पार्टी से निलंबित कर दिया था।
यह मामला जब राय और लालमुनी चौबे उनके संज्ञान में लाए तो उन्होंने फौरन संगठन मंत्री से उनकी बहाली के लिए कहा। वाजपेयी पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री थे जिन्होंने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया था। उस दौरान जो राजनेता उनके पास सबसे ज्यादा जाते थे वे उनके धुर राजनीतिक विरोधी भाकपा के महासचिव इंद्रजीत गुप्त थे। जब उनके पुराने साथी भैरों सिंह शेखावत को देश का उपराष्ट्रपति बनाया गया तो वे आसानी से तैयार हो गए लेकिन वे पहले जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूख अब्दुल्ला को उपराष्ट्रपति बनवाना चाहते थे। फारूख के करीबी और दिल्ली के पूर्व विधायक हसन अहमद बताते हैं कि वे उनके साथ अटल जी को घुटने का आॅपरेशन होने के बाद मुंबई देखने गए थे, तब उन्होंने बताया। इसी के कारण फारूख अब्दुल्ला ने अपना राजपाट पहले ही अपने पुत्र को सौंप दिया था। लेकिन संघ के विरोध से चर्चा सिरे नहीं चढ़ पाया।
वाजपेयी कार्यकर्ताओं को कितना महत्त्व देते थे इसकी एक बानगी दिल्ली के वरिष्ठ भाजपा नेता मेवाराम आर्य सुनाते हैं। उनके बेटे की शादी का स्वागत समारोह था। वे अटल जी को निमंत्रण देने गए तो उनके सहयोगी ने बताया कि उस दिन उन्हें ग्वालियर में रहना है। वे बोले कि ग्वालियर तो दूसरे भी दिन जा सकते हैं लेकिन यह समारोह तो दोबारा नहीं होगा।
1980 में भाजपा बनने के बाद हर स्तर पर पार्टी चलाने के लिए चंदा जुटाया जा रहा था। मेरठ के एक बड़े कारोबारी ने भाजपा कार्यकर्ताओं को कहा कि अगर अटल जी फोन कर देंगे तो वे एक लाख रुपए दे देंगे। कार्यकर्ता अटल जी के पास पहुंचे। अटल जी ने कहा कि वे ऐसा करेंगे तो वह व्यवसायी आगे इसका लाभ उठाने के लिए पार्टी पर दबाव डालेगा। इसके बजाए घर-घर से पैसा इकट्ठा करेंगे तो कुछ हमारे साथ जुड़ेंगे, उनसे पार्टी का जनाधार बढ़ेगा।
अपने लोगों का बचाव करना और उनकी सराहना करना उन्हें खूब आता था। केंद्रीय मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन तब दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री थे और उनके पल्स पोलियो कार्यक्रम की धूम पूरे देश में थी। बाद में भारत पोलियो मुक्त हुआ। अटल जी अमेरिका से लौटे तो हर बार की तरह दिल्ली के नेता उनका स्वागत करने के लिए हवाई अड्डे पर मौजूद थे। डॉक्टर हर्षवर्धन पीछे खड़े थे। वाजपेयी उनके पास आए और बोले डॉक्टर साहब, बिल क्लिंटन आपकी सराहना कर रह थे। केंद्रीय मंत्री विजय गोयल हर साल उनका जन्मदिन धूमधाम से मनाते हैं। दिल्ली के पूर्व मुख्य कार्यकारी पार्षद रहे विजय कुमार मल्होत्रा का अटल जी से 70 साल का साथ रहा है।

