शहरों में बढ़ते प्रदूषण और र्इंधन की किल्लत के मद्देनजर बैट्री से चलने वाले यानी इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा दिया जा रहा है। सरकारें इनकी खरीद पर अनुदान, छूट वगैरह भी दे रही हैं। अब तो महानगरों में बैट्री चालित भाड़े की टैक्सियां भी चलने लगी हैं। इस तरह लोगों में इन वाहनों के प्रति उत्साह बढ़ा है। इस वक्त करीब पौने ग्यारह लाख इलेक्ट्रिक वाहन सड़कों पर चल रहे हैं। मगर इस उत्साह के बीच ऐसे वाहनों में तकनीकी खराबी की वजह से आग लगने और लोगों के जान गंवा देने या गंभीर रूप से घायल हो जाने की घटनाएं चिंता पैदा करने वाली हैं।
आशंका है कि अगर इन वाहनों में इसी तरह आग लगती और हादसे होते रहे, तो लोग इन्हें खरीदने से बचेंगे। ऐसे में केंद्रीय सड़क एवं परिवहन विभाग का इस मामले को गंभीरता से लेना कुछ बेहतरी की उम्मीद जगाता है। सड़क एवं परिवहन मंत्री ने इलेक्ट्रिक वाहन बनाने वाली कंपनियों को सख्त हिदायत दी है कि अगर उनके बनाए वाहनों में तकनीकी खराबी आती है, तो उन पर भारी जुर्माना लगाया जाएगा। कंपनियों को तकनीकी खराबी वाले वाहनों को वापस लेना और सुधार कर ग्राहकों को देना होगा।
अनेक देशों में बहुत बार ऐसा देखा गया है कि अगर किसी माडल के वाहन में तकनीकी खराबी की शिकायत आती है, तो संबंधित कंपनी खुद नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए बाजार से उस माडल के सारे वाहनों को वापस ले लेती है और उनमें सुधार के बाद ही देती है। मगर हमारे यहां जब तक कानून का डंडा न चले, तब तक कंपनियां अपनी जिम्मेदारी नहीं समझतीं। उन्हें तो मुनाफे से मतलब है।
हालांकि हमारे यहां भी सख्त उपभोक्ता कानून हैं और अगर कोई ग्राहक अदालत में अपनी किसी वस्तु की गुणवत्ता को लेकर शिकायत करता है, तो संबंधित कंपनी को भारी जुर्माने का भुगतान करना पड़ता है। मगर अदालती कार्यवाही में वक्त बहुत लगता है और हर ग्राहक वहां तक पहुंच नहीं पाता। इस तरह सरकार का खुद इस मामले में संज्ञान लेना एक सराहनीय पहल है। जिस तरह हमारे देश में वाहनों का उपयोग बढ़ रहा है, वाहन उद्योग दिन पर दिन फल-फूल रहा है, उसमें उनकी नैतिक जवाबदेही तय होना जरूरी है। साथ ही वाहन निर्माता कंपनियों की इस प्रवृत्ति पर भी अंकुश लगना चाहिए कि वे केवल ग्राहकों का रुझान भांपते हुए अधिक से अधिक कमाई करने के मकसद से वाहन निर्माण न करें।
दरअसल, देखा जाता है कि जिस भी वस्तु का उपभोग बढ़ता है, तमाम कंपनियां उस वस्तु के निर्माण में लग जाती हैं। अगर उस वस्तु के निर्माण और उपयोग को सरकार प्रोत्साहित कर रही हो, तब तो एक होड़-सी लग जाती है। उसमें गुणवत्ता का ध्यान नहीं रखा जाता। बैट्री चालित वाहनों के निर्माण में भी यही प्रवृत्ति दिखाई दे रही है। दुपहिया और चार पहिया वाहनों का निर्माण तो फिलहाल कुछ नामी कंपनियां कर रही हैं, जिनकी बाजार में पहचान और साख है। जब उनके वाहनों में इतने बड़े पैमाने पर खामी पैदा हो रही है, तो उन निर्माताओं के बारे में क्या कहें, जिन्होंने महज सरकारी प्रोत्साहन और बाजार में प्रचलन का लाभ उठाने के मकसद से गली-मोहल्लों तक में वाहन निर्माण शुरू कर दिया है। बैट्री चालित रिक्शे अक्सर यही कंपनियां बनाती हैं। अब देश का शायद ही कोई गांव-कस्बा हो, जहां इलेक्ट्रिक रिक्शे नहीं चलते। उनके निर्माण पर भी नजर रखने की जरूरत है।