विद्यार्थियों के सीखने का मूल्यांकन कैसे हो, इस पर दुनिया भर में विचार-विमर्श और प्रयोग होते रहे हैं। हर जगह यह स्वीकार कर लिया गया है कि लिखित परीक्षा ही मूल्यांकन का सबसे व्यावहारिक और कारगर तरीका है। मगर भारत जैसे देश में, जहां बहुत सारे बच्चे समाज के निचले तबके से पढ़ने आते हैं, उनके घर में पढ़ाई-लिखाई का उचित वातावरण नहीं है। उनमें से बहुत सारे बच्चों को स्कूली पढ़ाई के साथ-साथ घर के काम या माता-पिता के काम में हाथ भी बंटाना पड़ता है, लिखित परीक्षा में ऐसे बहुत सारे विद्यार्थी अनुत्तीर्ण हो जाते हैं।

अनेक बच्चे इसीलिए स्कूल नहीं जाते या बीच में पढ़ाई छोड़ देते हैं कि उन्हें परीक्षा का भय सताता है। इसलिए तय किया गया कि पांचवीं तक किसी भी बच्चे को अनुत्तीर्ण नहीं किया जाएगा। उन्हें अगली कक्षा में प्रोन्नत कर दिया जाएगा। आठवीं तक उनका मूल्यांकन केवल पाठ्यपुस्तकों में दिए पाठों के आधार पर नहीं, बल्कि उनके समग्र व्यक्तित्व विकास, जैसे स्कूल में उनके आचरण, खेल-कूद, संगीत, कला आदि में उनकी रुचियों के आधार पर भी किया जाएगा। इस तरह बच्चे अगली कक्षा में आसानी से प्रोन्नत तो होने लगे, मगर सीखने की उनकी क्षमता में गिरावट दर्ज होनी शुरू हो गई।

फेल होने पर दुबारा देनी होगी परीक्षा

इसी के मद्देनजर अब केंद्र सरकार ने फैसला किया है कि पांचवीं और आठवीं कक्षा में किसी भी विद्यार्थी को फेल न करने की नीति को वापस लिया जाए। अब इन कक्षाओं में अगर विद्यार्थी लिखित परीक्षा उत्तीर्ण नहीं करते, तो उन्हें दुबारा परीक्षा देनी होगी। उसके बाद भी वे उत्तीर्ण नहीं होते, तो उसी कक्षा में बैठना पड़ेगा। इस फैसले से निस्संदेह विद्यार्थियों, अभिभावकों और अध्यापकों पर पढ़ाई-लिखाई को लेकर सतर्क रहने का दबाव बनेगा।

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देश में पढ़ाई-लिखाई के स्तर को मापने के लिए हर वर्ष निजी और सरकारी स्तर पर सर्वेक्षण किए जाते हैं। पिछले कुछ वर्षों में इन सर्वेक्षणों में बहुत निराशाजनक परिणाम नजर आए। आठवीं कक्षा के विद्यार्थी पांचवीं-छठवीं कक्षा की पुस्तकें पढ़ने, उस स्तर का गणित हल कर पाने में भी अक्षम पाए गए। इस तरह शिक्षा का मकसद ही हाशिये पर चला जाता है। इसी का नतीजा है कि आगे दसवीं और बारहवीं बोर्ड की परीक्षाओं में बड़े पैमाने पर नकल की प्रवृत्ति बढ़ी है। इसे रोकने का यही तरीका हो सकता था कि शुरू से ही बच्चों में पढ़ाई-लिखाई के प्रति गंभीरता पैदा की जाए, उनके मूल्यांकन में कड़ाई लाई जाए।

विद्यार्थी को प्राथमिक शिक्षा से नहीं किया जाएगा बाहर

हालांकि सरकार ने नए नीतिगत फैसले में यह भी कहा है कि मूल्यांकन के आधार पर किसी भी विद्यार्थी को प्राथमिक शिक्षा से बाहर नहीं किया जाएगा। उन्हें अपना प्रदर्शन बेहतर करने का मौका उपलब्ध कराया जाएगा। मगर इस आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता कि नई व्यवस्था से प्राथमिक स्तर पर ही बीच में पढ़ाई छोड़ने वाले बच्चों की संख्या में बढ़ोतरी दर्ज हो सकती है।

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शिक्षा का अधिकार कानून के तहत चौदह वर्ष तक की आयु के सभी बच्चों को निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा देना सरकार की सांविधानिक बाध्यता है। अगर बच्चे बीच में पढ़ाई छोड़ेंगे, तो यह उद्देश्य पूरा हो पाना मुश्किल बना रहेगा। इसलिए यह अपेक्षा स्वाभाविक है कि न केवल परीक्षा में बदलाव करके जिम्मेदारी पूरी समझ ली जाए, बल्कि स्कूलों और अध्यापकों को भी बच्चों में सीखने का कौशल विकसित करने के लिए जवाबदेह बनाया जाए।