अमेरिका की जवाबी शुल्क नीति का असर अब दुनिया के बाजार में दिखने लगा है। खुद अमेरिकी बाजार का रुख नीचे की तरफ हो गया है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जैसे ही विभिन्न देशों पर लगने वाले जवाबी शुल्क की सूची जारी की, वैश्विक बाजार डगमगाने लगे। शुक्रवार को डाउ जोन्स, नेस्डैक और एसएंडपी 500 में औसतन करीब छह फीसद की गिरावट देखी गई। यह गिरावट सभी क्षेत्रों में जारी रही। उसका असर भारतीय शेयर बाजार में भी दिखा। विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर यही रुख बना रहा, तो दुनिया में बहुत जल्दी मंदी का दौर शुरू हो जाएगा।

वैश्विक शेयर बाजार में इतनी बड़ी गिरावट कोरोना के बाद पहली बार देखी गई है। उधर, जिन देशों पर अमेरिका ने पारस्परिक शुल्क लगाया है, वे भी जवाबी शुल्क लगाने को तत्पर हैं। चीन ने तो तत्काल अपनी प्रतिक्रिया देते हुए उतना ही शुल्क लगा दिया, जितना अमेरिका ने उस पर लगाया है। इस तरह शुल्क संग्राम शुरू होने की आशंका बढ़ गई है। स्वाभाविक ही इस अमेरिकी नीति का वैश्विक अर्थव्यवस्था पर असर पड़ेगा, जिसकी शुरू से आलोचनाएं हो रही हैं।

अमेरिका खुद कई चीजों के उत्पादन में दूसरे देशों पर है निर्भर

शेयर बाजार में गिरावट का अर्थ है कि अर्थव्यवस्था को लेकर निवेशकों का भरोसा कमजोर हुआ है। जिन निवेशकों ने अमेरिकी फेडरल की दरें बढ़ने के चलते भारतीय पूंजी बाजार से पैसे निकाल कर अमेरिकी बाजार में लगाना शुरू किया था, उन्होंने भी पैसे निकालना शुरू कर दिया है। दरअसल, पारस्परिक शुल्क की वजह से अमेरिकी बाजार में पूंजी का प्रवाह ठहर जाने, उत्पादन कमजोर होने और तेजी से महंगाई बढ़ने की आशंका गहराने लगी है।

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खुद अमेरिका कई चीजों के उत्पादन में दूसरे देशों पर निर्भर है। इसलिए उन पर शुल्क बढ़ेगा, तो अंतिम रूप से वस्तुओं की कीमतें बढ़ेंगी। फिर, बहुत सारी अमेरिकी कंपनियों ने विभिन्न देशों में अपनी उत्पादन इकाइयां लगा रखी हैं। कई मामलों में आंशिक रूप से, तो कई में पूर्ण रूप से वे अपना उत्पादन दूसरे देशों में करती हैं। इस तरह वहां से तैयार होकर आने वाले उत्पाद की कीमतें भी बढ़ जाएंगी। यही प्रक्रिया दूसरे देशों में भी शुरू हो जाएगी। जाहिर है, इससे न केवल अमेरिका, बल्कि पूरी दुनिया में महंगाई बढ़ेगी। महंगाई बढ़ने का अर्थ है कि लोग अपने जरूरी खर्चों में भी हाथ पीछे खींचना शुरू कर देंगे। इस तरह बाजार में पूंजी का प्रवाह रुकेगा। इसका सबसे बुरा असर विनिर्माण क्षेत्र पर पड़ेगा।

कोरोना के बाद सारी अर्थव्यवस्थाएं संघर्ष करती नजर आ रही हैं

वैसे ही दुनिया अभी मंदी की मार से पूरी तरह बाहर नहीं निकल पाई थी कि ट्रंप प्रशासन की शुल्क नीति ने एक नया चक्रव्यूह रच दिया। कोरोना के बाद सारी अर्थव्यवस्थाएं संघर्ष करती नजर आ रही हैं। उसकी चपेट में अमेरिका भी रहा है। अब भी वहां महंगाई पर पूरी तरह काबू नहीं पाया जा सका है। अगर संस्थागत निवेशकों ने अपना हाथ पीछे खींचना शुरू कर दिया, तो अमेरिका की अर्थव्यवस्था और लड़खड़ाने लगेगी।

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अभी अमेरिका को लगता है कि वह पारस्परिक शुल्क के जरिए अपनी पूंजी में बढ़ोतरी और अर्थव्यवस्था में मजबूती ला सकेगा, मगर हकीकत यही है कि इसका सबसे बुरा प्रभाव खुद उसी पर पड़ेगा। इसीलिए वहां शुरू से इस नीति का विरोध हो रहा है। आधुनिक अर्थव्यवस्थाएं तन्हा नहीं रह गई हैं, उनमें परस्पर जुड़ाव है। वे अपने लाभ के लिए नए समीकरण और संगठन बनाती रहती हैं। ऐसे में, कहीं अमेरिका अलग-थलग न पड़ता जाए।