खेलों में बने कीर्तिमान सबका ध्यान खींचते हैं। हालांकि इसके साथ ही कीर्तिमान अगले किसी मजबूत इच्छाशक्ति रखने वाले खिलाड़ी के लिए चुनौती होते हैं कि क्या वह इसे अपने हिस्से कर सकता है। भारतीय ग्रैंडमास्टर गुकेश दोम्माराजू शतरंज में जब कोई भी चाल चलने से पहले अपनी आंखें बंद कर अपने भीतर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो यह एक संकेत होता है कि वे किसी भी चुनौती को पार सकते हैं या कोई भी चुनौती पेश कर सकते हैं। सिंगापुर में काफी उतार-चढ़ाव से भरे एक खिताबी मुकाबले में गुकेश ने जिस तरह पिछले विश्व चैंपियन चीन के डिंग लिरेन को अंतिम बाजी में मात दी, वह गुकेश के साथ-साथ भारत के हिस्से में एक ऐसी जीत के रूप में दर्ज हुई, जिसका इंतजार सभी देशवासियों को अरसे से था।
भारत में शतरंज की राजधानी माने जाने वाले चेन्नई के रहने वाले गुकेश जीत के इस मुकाम तक इसके बावजूद पहुंचने में कामयाब रहे कि उनके परिवार में किसी ने उन्हें यह नहीं सिखाया या प्रेरित किया था। हालांकि इस खेल के प्रति उनकी प्रतिभा, दीवानगी और लगातार कई प्रतियोगिताओं में जीत के सफर के समांतर उनके माता-पिता ने अपनी सीमा में सब कुछ किया। दरअसल, गुकेश ने शतरंज की विश्व प्रतियोगिता में यह उपलब्धि सिर्फ अठारह वर्ष की उम्र में हासिल की है और यही इस बार की जीत का सबसे खास पहलू है। गुकेश फिलहाल सबसे कम उम्र के विश्व चैंपियन हैं।
इससे पहले नार्वे के मैगनस कार्लसन ने बाईस वर्ष की उम्र में विश्व प्रतियोगिता जीती थी। गुकेश को मिली खिताबी जीत का यह मुकाबला इस लिहाज से भी ऐतिहासिक था कि इसके एक सौ अड़तीस वर्ष के इतिहास में आमने-सामने दोनों एशियाई खिलाड़ी थे। इस खेल में दोनों पक्षों की ओर से टक्कर कितनी जबर्दस्त थी, इसे सिर्फ इससे समझा जा सकता है कि खेले गए चौदह दौर की बाजियों में से तेरहवें दौर तक मुकाबला बराबरी पर चलता रहा। यही नहीं, हर चक्र को पूरा होने में कई घंटे का वक्त लगा। खेल में टक्कर के इस स्तर का ही नतीजा था कि समूची प्रतियोगिता में इसे देखने वालों की दिलचस्पी कायम रही।