आधुनिक और शिक्षित माने जाने वाले समाज में अगर दहेज और इसकी वजह से होने वाली हत्या के मामले एक गंभीर समस्या के रूप में आज भी कायम हैं, तो यह सोचने की जरूरत है कि हमारे विकास की दिशा क्या रही है और इसका हासिल क्या है। यों, देश भर से दहेज के लिए किसी महिला की हत्या कर देने या उसे भयानक स्तर पर प्रताड़ित करने के मामले अक्सर सामने आते रहते हैं। मगर उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर जिले से दहेज हत्या का जैसा मामला सामने आया है, वह बताता है कि आज भी कुछ लोग किस तरह की संकीर्णता, जड़ता और पिछड़े मानस से ग्रस्त है और लोभ में कितने अमानुष और क्रूर हो जा सकते हैं।

गौरतलब है कि सिरसा गांव में एक महिला को उसका पति और ससुराल के अन्य लोग लगातार दहेज की मांग करते हुए प्रताड़ित करते थे, जबकि महिला के मायके से ज्यादातर मांग पूरी की गई। मगर जब व्यक्ति पर बेलगाम लालच हावी हो जाता है, तब उसके क्रूर हो जाने की आशंका बहुत बढ़ जाती है। छत्तीस लाख रुपए की नई मांग आखिरकार इस नतीजे तक पहुंची कि महिला को उसके पति ने यातना देते हुए जिंदा जला कर मार डाला।

आए दिन महिलाएं हो रही हैं शिकार

यह घटना एक बार फिर बताती है कि अर्थव्यवस्था के चमकते आंकड़ों और विकास के दावों के बीच समाज में परंपरा के नाम पर ऐसी क्रूरताएं पल-बढ़ रही हैं, जिनका शिकार आए दिन महिलाएं हो रही हैं। सवाल है कि दहेज के खिलाफ बने सख्त कानून के बावजूद एक व्यक्ति कैसे यह साहस कर पाता है कि वह न केवल विवाह में दहेज की ऊंची मांग पूरी करवाता है, बल्कि शादी के बाद भी लगातार धन या सामान की मांग करते हुए वधू को प्रताड़ित करता है और कभी मार भी डालता है।

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ऐसा लगता है कि न तो कानून को अमल में लाने के लिए सरकार की ओर से पर्याप्त संजीदगी बरती जाती है, न ही दहेज के लिए वधू को यातना देने वालों को इस कानून का कोई खौफ सताता है। इसकी वजह इस हकीकत में छिपी है, जिनमें दहेज उत्पीड़न या हत्या के मामले अगर अदालतों में पहुंचते भी हैं, तो मुकदमे की सुनवाई वर्षों तक खिंचती चली जाती है और फिर ऐसे मामलों में सजा की दर काफी कम है।

2022 में दहेज हत्या के दर्ज हुए कुल 6,450 मामले

जाहिर है, दहेज के लिए महिलाओं की हत्या एक अफसोसनाक हकीकत है और इसे रोकने के तरीके अब तक कारगर नहीं रहे हैं। हालांकि एक धारणा यह फैलाई जाती रही है कि दहेज के बहुत सारे मामलों में इससे संबंधित कानून का दुरुपयोग किया जाता है और नाहक ही पति और उसके परिवार को फंसाने की कोशिश की जाती है। इसके समांतर राष्ट्रीय अपराध रेकार्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी के मुताबिक, 2022 में दहेज हत्या के कुल 6,450 मामले दर्ज हुए। इस आधार पर देखें तो देश में दहेज के लिए हर रोज करीब अठारह महिलाओं की हत्या कर दी जाती है। यानी वास्तव में कानून के दुरुपयोग के दावे के बरक्स हकीकत काफी त्रासद और शर्मनाक है।

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इतना तय है कि दहेज के लिए किसी महिला की हत्या के पहले ऐसी स्थिति जरूर बनती है, जिसमें घर के दूसरे सदस्य उसे रोक सकते हैं। मगर परिवार या कई लोगों के बीच में एक अकेली महिला को दहेज के लिए जिंदा जला दिया जाना बताता है कि हत्या कोई भी करे, वहां मौजूद मूकदर्शक लोग भी प्रकारांतर से भागीदार होते हैं। किसी भी व्यक्ति या परिवार में दहेज की बेलगाम भूख यह बताती है कि वह अभी सभ्य और शिक्षित होने या विकास के वास्तविक पैमानों से काफी पीछे है।