भारत युवाओं का देश है। मगर जब बुनियाद ही खोखली होने लगे, तो देश के उज्ज्वल भविष्य के सामने एक बड़ी बाधा जरूर खड़ी हो जाती है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान युवाओं के बीच जिस रफ्तार से मादक पदार्थों के सेवन की लत बढ़ी है, वह सभी के लिए चिंता का विषय है। मुंबई विश्वविद्यालय की 2019 की एक अनुसंधान रपट के अनुसार पचहत्तर फीसद युवा इक्कीस साल की उम्र से पहले ही नशे का सेवन कर लेते हैं। वहीं अठारह साल या इससे कम उम्र के बच्चे अलग-अलग नशा करते पाए गए हैं। बीते पांच वर्षों में यह आंकड़ा बढ़ा ही है।
यह छिपा नहीं है कि किशोरों और युवाओं तक मादक पदार्थ किस तरह और किनके माध्यम से पहुंचते हैं। इसके बावजूद न तो नशे के सौदागरों के खिलाफ व्यापक स्तर पर कार्रवाई होती है और न ही युवाओं को नशे के जाल से निकालने के लिए ठोस उपाय किए जाते हैं। यहां तक कि सामाजिक और राजनीतिक संगठन भी आमतौर पर इसे आंदोलन का मुद्दा नहीं बनाते हैं। मगर हिमाचल प्रदेश में कुल्लू के आनी विधानसभा क्षेत्र में नशे के अधिक सेवन से एक युवक की मौत के बाद नागरिकों ने सड़क पर उतर कर और जन आक्रोश रैली निकाल कर पूरे देश के भविष्य के लिए एक सकारात्मक और उम्मीदों से भरा संदेश दिया है।
नशा हर दिन युवाओं को मौत के करीब ले जा रहा
भारत के कई राज्यों खासकर उत्तर भारत में बड़ी संख्या में युवा नशे की गिरफ्त में हैं। ज्यादातर ऐसे युवक अपने स्वास्थ्य से तो खिलवाड़ करते ही हैं, वहीं गलत संगत में पड़ कर कभी-कभी अपराध भी कर बैठते हैं। अत्यधिक नशा हर दिन उन्हें मौत के करीब ले जाता है। उन्हें नशीले पदार्थ उपलब्ध न हों, यह सुनिश्चित करने की जवाबदेही किसकी है? कभी-कभी कुछ मात्रा में मादक पदार्थों की जब्ती होने की खबर आती है, लेकिन उसके सौदागर गिरफ्त में क्यों नहीं आते? नतीजा यह है कि मादक पदार्थों को खरीदने और बेचने का धंधा बदस्तूर चलता रहता है।
सभी का रखा ध्यान, मध्यवर्ग से लेकर निचले तबके के लोगों के लिए राहत की राह
इसलिए कुल्लू में लुहरी बाजार से उठी आवाज को ध्यान से सुनने और इस आक्रोश को समझने का यही वक्त है। इसमें महिलाएं बड़ी भूमिका निभा सकती हैं। नशे के विरुद्ध इस तरह के जन-जागरण से ही देश के भविष्य को बचाया जा सकता है।