इससे बड़ी विडंबना क्या होगी कि माता-पिता यह चाहते हैं कि उनका बच्चा पढ़ाई-लिखाई पूरी कर जिंदगी में ऊंचा मुकाम हासिल करे, लेकिन इसके लिए जो दबाव की स्थितियां पैदा की जाती हैं, उसमें कई बच्चों की जिंदगी तक छिन जाती है। पिछले कुछ सालों से यह हकीकत लगातार सामने आ रही है कि इंजीनियरिंग या चिकित्सा की पढ़ाई करने के लिए बच्चों का दाखिला राजस्थान के कोटा जैसे कुछ खास शहरों में कराया जाता है, मगर वहां उपजे दबाव को नहीं सह पाने की वजह से कई बच्चे आत्महत्या तक कर ले रहे हैं।
ऐसी घटनाओं में इजाफे ने हर तरफ चिंता पैदा की है, मगर आज भी बहुत सारे अभिभावक यह समझ पाने में नाकाम हैं कि अपना सपना पूरा करने निकले बच्चे आखिर क्यों मौत को चुन लेते हैं। इस मसले पर अब सुप्रीम कोर्ट ने भी चिंता जताई है कि वक्त के साथ ज्यादा सख्त होते प्रतिस्पर्धा के मानदंड के समांतर अभिभावकों की ओर से पैदा किए गए अत्यधिक दबाव को कई बच्चे नहीं झेल पाते हैं और आत्महत्या का रास्ता अख्तियार कर लेते हैं।
अदालत की टिप्पणी एक याचिका पर सुनवाई के दौरान सामने आई, जिसमें तेजी से बढ़ते कोचिंग संस्थानों के विनियमन का अनुरोध किया गया है और विद्यार्थियों की आत्महत्या के आंकड़ों का हवाला दिया गया है। इसमें कोई संदेह नहीं कि मेडिकल या इंजीनियरिंग की शिक्षा के लिए उच्च शिक्षण संस्थानों में दाखिले के लिए जो पाठ्यक्रम तैयार किया गया है, उसकी जटिलता के मद्देनजर बच्चों को सामान्य से ज्यादा पढ़ाई करने की जरूरत पड़ती है।
इसके लिए उनके अभिभावक वैसे कोचिंग संस्थानों में बच्चों का दाखिला कराते हैं, जिनके बारे में आम धारणा होती है कि वहां से पढ़ाई करने वाले विद्यार्थी आसानी से परीक्षा पास कर जाते हैं। मगर इसके बरक्स हाल के वर्षों में यह हकीकत भी सामने आई है कि इस क्षेत्र में बढ़ती भीड़ की वजह से कड़ी प्रतिस्पर्धा खड़ी हुई है, पैमाने ज्यादा सख्त हुए हैं। कोचिंग संस्थान अपनी छवि चमकाने की मंशा से विद्यार्थियों पर परीक्षा में खुद को सबसे बेहतर साबित करने के लिए जरूरत से ज्यादा दबाव डालते हैं। इसी दबाव से उपजे तनाव को कई बार कुछ बच्चे नहीं झेल पाते हैं और जिंदगी से हार जाते हैं।
हालांकि कोचिंग संस्थानों की हकीकत किसी से छिपी नहीं है और आए दिन वहां से बच्चों की आत्महत्या की घटनाएं सामने आती रहती हैं। इसके बावजूद ऐसे तमाम अभिभावक हैं, जो अपने बच्चों को चिकित्सक या इंजीनियर बनाने के लिए वहां पढ़ाई करने भेजते हैं। कई बार ऐसा भी होता है कि जिन बच्चों की रुचि किसी अन्य विषय में पढ़ाई करने की होती है, उन्हें भी उनके अभिभावक मेडिकल या इंजीनियरिंग की तैयारी करने भेज देते हैं।
इस होड़ में शामिल अभिभावकों की ओर से उपजे दबाव और तनाव का सामना बच्चों को करना पड़ता है। कोचिंग संस्थानों की अव्यवस्था से लेकर उनके पढ़ाई के स्वरूप निश्चित रूप से कठघरे में हैं और उन्हें जिम्मेदारी से मुक्त नहीं किया जा सकता। मगर अपनी महत्त्वाकांक्षा का बोझ बच्चों से पूरा कराने की होड़ में शामिल अभिभावकों को क्या यह सोचने की जरूरत नहीं है कि इस होड़ का हासिल क्या है?
किसी भी समस्या का हल निकालना तभी संभव हो पाता है, जब उसके मुख्य कारणों की पहचान कर ली जाती है। कोटा या कहीं भी पढ़ाई के क्रम में उपजे तनाव का बोझ अगर बच्चों की जिंदगी पर ही भारी पड़ रहा है तो अभिभावकों को यह सोचने की जरूरत है कि आखिर उनका चुनाव क्या है- बच्चों की जिंदगी या फिर ऐसी पढ़ाई, जो उन्हें जानलेवा तनाव के संजाल में झोंक दे!