सड़क दुर्घटनाओं पर काबू न पाए जा सकने को लेकर केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री की चिंता वाजिब है। इसके लिए वे खराब सड़क निर्माण को जिम्मेदार मानते हैं। संसद में भी उन्होंने कहा था कि विदेश में जब भी भारत में सड़क दुर्घटनाओं और सड़कों के निर्माण को लेकर बात होती है, तो उन्हें शर्म से मुंह छिपाना पड़ता है। अभी भारतीय उद्योग परिसंघ की तरफ से आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि सड़क दुर्घटनाओं के मामले में भारत दुनिया में पहले स्थान पर है। इसका बड़ा कारण सड़कों का खराब ढंग से निर्माण किया जाना है।
उन्होंने कहा कि खराब सड़क निर्माण को गैर-जमानती अपराध बना दिया जाना चाहिए। सड़क निर्माण के ठेकेदारों और इंजीनियरों को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए। निस्संदेह यह सुझाव कठोर लग सकता है। मगर चूंकि सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने संकल्प लिया है कि वह 2030 तक सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों को घटा कर आधा कर देगा, बिना ऐसे कठोर कदम उठाए उसका लक्ष्य तक पहुंचना आसान नहीं होगा। मंत्रालय के अनुसार 2023 में पांच लाख सड़क दुर्घटनाएं हुईं, जिनमें से एक लाख बहत्तर हजार लोगों की मौत हो गई। इनमें से एक लाख चौदह हजार लोगों की उम्र अठारह से पैंतालीस वर्ष के बीच थी।
सड़क दुर्घटनाओं पर काबू पाने के लिए कई उपाय आजमाए जा चुके हैं। यातायात नियमों के उल्लंघन पर भारी जुर्माने का प्रावधान किया गया। जगह-जगह सीसीटीवी कैमरे लगाए गए। मगर इसका कोई उल्लेखनीय असर नजर नहीं आया। सड़क दुर्घटनाएं हर वर्ष कुछ बढ़ी हुई ही दर्ज होती हैं। सड़क दुर्घटनाओं में मौत का सबसे बड़ा कारण सड़कों का खराब ढंग से निर्माण चिह्नित किया गया है। राजमार्गों और द्रुतगामी सड़कों पर चौड़ाई आदि में एकरूपता और मोड़ों पर उचित तकनीक का इस्तेमाल न होने के कारण दुर्घटनाएं और मौतें अधिक होती हैं।
अच्छी बात है कि परिवहन मंत्री ने इस बात की पहचान की और इसे स्वीकार भी किया। सड़कों पर जिन वजहों से दुर्घटनाएं और मौतें होती हैं, उन्हें दूर करने के लिए भारी रकम भी आबंटित की गई है। परिवहन मंत्री ने माना है कि खराब निर्माण सामग्री के इस्तेमाल और अव्यावहारिक डिजाइन की वजह से सड़क दुर्घटनाएं होती हैं। उनकी चिंता वाजिब है, लेकिन इसके लिए जिम्मेदारी तय करने की जवाबदेही किसकी है। उम्मीद है कि इस मसले पर सिर्फ चिंता जताने के बजाय सख्त और स्पष्ट नीति जमीनी स्तर पर लागू करने को लेकर ठोस पहल होगी।
यह उजागर तथ्य है कि सड़क निर्माण में भ्रष्टाचार का पैमाना काफी ऊंचा है। सड़कों के ठेके देने से लेकर उनकी लागत तय करने और फिर तैयार सड़कों की गुणवत्ता का आकलन करने तक अनियमितताएं उजागर होती रहती हैं। इस तरह यह भ्रष्टाचार का एक संगठित तंत्र जैसा बन गया है। ऐसे में अगर ठेकेदारों और इंजीनियरों की कमियों को गैरजमानती अपराध घोषित कर भी दिया जाता है, तो उनमें इसका कितना भय होगा, कहना मुश्किल है। सड़कों की बनावट तय मानकों के अनुरूप नहीं है, इसका आकलन तो संबंधित महकमे को करना होता है। आम लोग लाख शिकायत करते रहें कि सड़कों का निर्माण ठीक नहीं हुआ है, उनकी सुनवाई नहीं हो पाती। यह अकारण नहीं है कि कई जगह उद्घाटन के बाद ही किसी सड़क के बारिश में धंस या बह जाने, पुल के गिर जाने की खबर सुर्खियों में होती है। इसलिए सड़कों की गुणवत्ता मापने वाले तंत्र में भी पारदर्शिता लाने की जरूरत है।